नेशनल लॉ कॉन्फ्रेस होती है और खत्म हो जाती है, परन्तु कोर्ट में केस पेंडेंसी का मुद्दा कायम रहता हैै।
लेकिन लोक अदालतें रच रही है फैसलों का रिकॉर्ड क्यों ?
प्रदेश में पहली लोक अदालत 1985 में शुरु हुई थी, लगभग पिछले चार साल में इन अदालतों ने 17 लाख मुक्दमों का निपटारा किया। सुप्रीम कोर्ट के जज मानते है इन अदालतों की वजह से पेडेंसी धट रही है। अब लोक अदालतें हर माह के दूसरे शनिवार को लगाई जाती है।
सच्चाई यह है कि लोक अदालतों में वही जाते है जो कोर्ट के धक्के खा-खा कर परेशान हो चुके होते है व न्याय मिलने की उम्मीद खत्म हो जाती है तो दोनो पक्ष राजीनामा कर लोक अदालत में पेश हो जाते है। अर्थात दोनो पक्षों का राजीनामा कहा जा सकता है। इसे न्याय प्राप्त हुआ नहीं कह सकते है।
सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जजों से एंव कानून के ज्ञाताओं से निवेदन है कि - अगर इन बिन्दुओं पर अगर ध्यान दिया जाये तो अदालतों में केस पेंडेसी बहुत कम हो सकती है और न्याय पाने आये व्यक्ति को समय पर न्याय मिल सके -
1. वादी अथवा प्रतिवादी वकीलों द्वारा केस को लिंगर-आन करने के उद्देश्य से दी गई अर्जी के निस्तारण पर भारी जुर्माना कम से कम 10,000रुपयें पहली बार और दूसरी बार अधिक से अधिक 50,000रुपयें तक होना चाहिये। जुर्माना राशि अर्जीदार से लिया जाना चाहिये एंव जुर्माना राशि को न्यायालय में जमा कर लेनी चाहिये।
ज्यादातर केसों में वकील वाद को लिंगर-आन करने के लिए बेमतलब की अर्जीयां पेश कर समय की बर्बादी करते है। उनका उदेशय एक ही होता है कि वाद को लम्बे समय तक चलाया जाये।
इस तरह की हरकतों के कारणा न्याय पाने की उम्मीद से आये के साथ अन्याय ही होता है।
2. बेमतलब तारीख पेशी लेने पर भारी कास्ट (जुर्माना) कम से कम 5000रुपयें और अगली बार में जुर्माना बढा कर 10,000रुपये लगाया जाये। जुर्माना राशि को न्यायालय में जमा कर लेनी चाहिये।
प्रतिवादी या वादी तारीख पेशी लेने की हिम्मत नहीं करेगे।
3. वाद में प्रार्थी या अप्रार्थी की तरफ से पेश हलफनामें में अगर झूठ लिखा हो तो उसे कठोर कारावास कम से कम 6माह का दिया जाये एंव कारावास का खर्च भी उससे वसूला जाना चाहिये।
4. टरब्युनल कोर्ट में हलफनामें को ही सहीं माना जाना चाहिये। उसमें वकीलों द्वारा क्रास नहीं किया जाना चाहिये। अगर क्रास की ज्यादा ही आवशयकता हो तो ही करना चाहिये।
अनावशयक क्रास करने वाले पर भारी जुर्माना लगना चाहिये। समय नष्ट करने के लिए आजकल वकील क्रास कर रहे हे।
अनावशयक क्रास करने वाले पर भारी जुर्माना लगना चाहिये। समय नष्ट करने के लिए आजकल वकील क्रास कर रहे हे।
5. क्रीमनल केसों में अगर मुल्जिम छुटता है तो पुलिस के आई0आे0 पर पहली बार में हल्की आैर उसके बाद कठोर कार्यवाही की जानी चाहिये।
6. कोर्ट की अवमानना करने पर वादी को कई साल न्याय के लिए फिर से लग जाते है -
उपाय : कार्ट अवमानना करने पर एक सुनवाई कर कम से कम 2वर्ष का कठोर कारावास एंव भारी जुर्माना लगाना चाहिये। कारावास का खर्च उसी से लेना चाहिये।
प्राप्त हुए जुर्माने से कोर्ट का अधुनीकारण हो सकता है। जो हमारे देशा के लिए गौरव की बात होगी।
सेशन कोर्ट तक की कोर्टो में कैमरे लगाये जाने चाहिये। जिससे पता चलता रहे कि कितना काम हो रहा है आैर कोर्ट बाबु क्या कर रहे है उनसे मिलने के लिए कौन-कौन आते है।
6. कोर्ट की अवमानना करने पर वादी को कई साल न्याय के लिए फिर से लग जाते है -
उपाय : कार्ट अवमानना करने पर एक सुनवाई कर कम से कम 2वर्ष का कठोर कारावास एंव भारी जुर्माना लगाना चाहिये। कारावास का खर्च उसी से लेना चाहिये।
प्राप्त हुए जुर्माने से कोर्ट का अधुनीकारण हो सकता है। जो हमारे देशा के लिए गौरव की बात होगी।
सेशन कोर्ट तक की कोर्टो में कैमरे लगाये जाने चाहिये। जिससे पता चलता रहे कि कितना काम हो रहा है आैर कोर्ट बाबु क्या कर रहे है उनसे मिलने के लिए कौन-कौन आते है।
मेरा पूर्ण विशवास से मानना है कि इस प्रक्रिया के लागू होते ही केस की काफी हद तक पेंडेसी खत्म हो जायेगी एंव प्राप्त जुर्माना राशि से न्यायालय को आर्थिक लाभ होगा।
ज्यादातर लोग कोर्ट में तारीख पर तारीख आैर बेमतलब की अर्जीयों से परेशान है।
आप से आशा की जाती है की इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में जनहित में लगाये।
जिससे न्याय का हनन न हो आैर समय पर न्याय मिल सके
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