14 अगस्त 1947 कि रात 12 बजे यानि 15अगस्त1947 को आजादी नहीं मिली थी बल्कि सत्ता हस्तांतरण की संधि "Transfer of Power Agreement" का एग्रीमेंट हुआ था। यह एग्रीमेंट नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में हुआ था। " भारत की आज़ादी का कानून-1947 " ब्रिटेन की संसद द्वारा पास किया गया था, यह अधिनियम 18 जुलाई 1947 को स्वीकृत हुआ। युनाइटेड किंगडम की पार्लियामेंट द्वारा पारित वह विधान है जिसके अनुसार ब्रिटेन शासित भारत का दो भागों (भारत तथा पाकिस्तान) में विभाजन किया गया। जिससे यह देश कभी तरक्की न कर सके।
यह वही कानून जिसकी वजह से भारत का बटवारा हुआ और इसके बारे में हमें कभी भी नहीं बताया गया। इसमे साफ-साफ़ लिखा है कि इंडिया और पाकिस्तान ब्रिटेन की सत्ता के अधीन होंगे और इसी में लिखा है कि इन अधीन राज्यों का गठन 15 अगस्त-1947 को किया जायेगा। इसी के आधार पर "ट्रांसफर ऑफ़ पॉवर अग्रीमेंट" हुआ था जिस पर नेहरू और माउन्ट बेटन ने 14 अगस्त 1947 की रात को हस्ताक्षर किया था।
तारीख 15 अगस्त ही क्यों चुनी गयी - लार्ड माउंटबैटन 15 अगस्त की तारीख़ को शुभ मानते थे, क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के समय 15 अगस्त, 1945 को जापानी आर्मी ने आत्मसमर्पण किया था और उस समय लार्ड माउंटबैटन अलाइड फ़ोर्सेज़ के कमांडर थे।
तारीख 15 अगस्त ही क्यों चुनी गयी - लार्ड माउंटबैटन 15 अगस्त की तारीख़ को शुभ मानते थे, क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के समय 15 अगस्त, 1945 को जापानी आर्मी ने आत्मसमर्पण किया था और उस समय लार्ड माउंटबैटन अलाइड फ़ोर्सेज़ के कमांडर थे।
स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है। Transfer of Power और Independence ये दो अलग चीजे है ।
सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ?
आप देखते होंगे क़ि एक पार्टी की सरकार है, वो चुनाव में हार जाये, दूसरी पार्टी की सरकार आती है तो दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण करता है, तो वो शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है। उसी रजिस्टर को ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर की बुक कहते है और उस पर हस्ताक्षर के बाद पुराना प्रधानमन्त्री नए प्रधानमन्त्री को सत्ता सौंप देता है ।
यही नाटक हुआ था 14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे यानि 15अगस्त 1947 के दिन । लार्ड माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता नेहरु के हाथ में सौंपी थी, और हमने कह दिया कि स्वराज्य आ गया।
कैसा स्वराज्य और काहे का स्वराज्य ?
अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ?
हमारे लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ?
अंग्रेज कहते थे क़ि हमने स्वराज्य दिया, माने अंग्रेजों ने अपना राज हमको सौंपा है ताकि तुम लोग कुछ दिन इसे चला लो जब जरुरत पड़ेगी तो हम दुबारा आ जायेंगे। ये अंग्रेजो का Interpretation (व्याख्या) थी।
इस संधि के अनुसार ही भारत के दो टुकड़े किये गए और भारत और पाकिस्तान नामक दो Dominion States बनाये गए हैं। Dominion State का हिंदी में अर्थ होता है एक बड़े राज्य के अधीन एक छोटा राज्य।
अंग्रेजी में इसका एक अर्थ है
"One of the self-governing nations in the British Commonwealth"
और दूसरा
"Dominance or power through legal authority "।
"One of the self-governing nations in the British Commonwealth"
और दूसरा
"Dominance or power through legal authority "।
Dominion State और Independent Nation में जमीन आसमान का अंतर होता है। मतलब सीधा है क़ि भारत और पाकिस्तान आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत हैं।
ये जो आज़ादी आयी, इसका कानून अंग्रेजों के संसद में बनाया गया और इसका नाम रखा गया Indian Independence Act (भारत के स्वतंत्रता का कानून)।
कैसे मान ले की जिसने हमे गुलाम बना कर रखा वह ही हमारे लिए कोई अच्छा कानून बनाये।
सत्ता के लालची लोगों ने बिना सोचे समझे या आप कह सकते हैं क़ि पुरे होशो हवास में इस संधि को मान लिया। गांधी व अन्य समझदार लोगों ने इसका विरोध भी किया था यहा तक की गांधी ने नोआखाली (बंगाल)से प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की थी उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी ने ये कहा -
कि मै हिन्दुस्तान के उन करोडो लोगों को ये सन्देश देना चाहता हुं कि ये जो तथाकथित आजादी (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया। ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये है, मै मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई है। सबसे बडी बात की 14 अगस्त 1947 की रात को गाँधी दिल्ली में नहीं नोआखाली में थे। क्यों ? जिसका बहाना कांग्रेस ने बनाया कि वहा दंगे हो रहे थे, दंगे का आज तक कोई भी सबूत नहीं मिला है।
कि मै हिन्दुस्तान के उन करोडो लोगों को ये सन्देश देना चाहता हुं कि ये जो तथाकथित आजादी (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया। ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये है, मै मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई है। सबसे बडी बात की 14 अगस्त 1947 की रात को गाँधी दिल्ली में नहीं नोआखाली में थे। क्यों ? जिसका बहाना कांग्रेस ने बनाया कि वहा दंगे हो रहे थे, दंगे का आज तक कोई भी सबूत नहीं मिला है।
Commonwealth Nations यानि समान सम्पति यह समान सम्पति किसकी है - इस संधि की शर्तों के मुताबिक हम आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं। एक शब्द अकसर सुनते हैं Commonwealth Nations इसका मतलब है समान सम्पति। यह किसकी समान सम्पति है ? यह है ब्रिटेन की रानी की समान सम्पति।
आप जानते हैं आज भी ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की नागरिक है और हमारे जैसे 53 देशों की महारानी है वो। Commonwealth में 53 देश है और इन सभी 53 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को वीजा की जरूरत नहीं होती है स्पष्ट है - वो अपने ही देश में जा रही है।
कामनबेल्थ का उद्देश्य :
राष्ट्रमंडल के उद्देश्यों और अन्य पक्षों के निर्धारण के लिये कोई औपचारिक संविधान, घोषणा-पत्र या संधि की व्यवस्था नहीं है। राष्ट्रमंडल के आदेशों और सिद्धांतों का निर्धारण सदस्य देशों के शिखर सम्मेलन में होता है। घनिष्ठता की भावना को अभिव्यक्त करना तथा पूर्व में या वर्तमान में ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति निष्ठा प्रदर्शित करने वाले सदस्यों को प्रोत्साहित करना संगठन के मुख्य उद्देश्य हैं।
कामनबेल्थ का उद्देश्य :
राष्ट्रमंडल के उद्देश्यों और अन्य पक्षों के निर्धारण के लिये कोई औपचारिक संविधान, घोषणा-पत्र या संधि की व्यवस्था नहीं है। राष्ट्रमंडल के आदेशों और सिद्धांतों का निर्धारण सदस्य देशों के शिखर सम्मेलन में होता है। घनिष्ठता की भावना को अभिव्यक्त करना तथा पूर्व में या वर्तमान में ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति निष्ठा प्रदर्शित करने वाले सदस्यों को प्रोत्साहित करना संगठन के मुख्य उद्देश्य हैं।
लेकिन भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन में जाने के लिए वीजा की जरूरत होती है क्यों? स्पष्ट है क्योंकि वो दुसरे देश में जा रहे हैं।
मतलब इसका निकाले तो ये हुआ कि -
1. ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक है। इसलिए ब्रिटेन की रानी को पासपोर्ट वीजा की जरुरत नहीं होती है।
2. या फिर भारत आज भी ब्रिटेन का उपनिवेश है।
सबसे बडा एक आैर सबूत -
देश में प्रोटोकोल है की जब भी नए राष्ट्पति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अलावा किसी को नहीं। तो फिर..... ब्रिटेन की महारानी आती है तो उसको भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है। क्यों ?
पिछली बार ब्रिटेन की महारानी यहाँ आयी थी तो एक निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटेन की महारानी का था और उसके नीचे भारत के राष्ट्रपति का नाम था, फिर हम कैसे माने क़ि हम एक स्वतंत्र देश में रह रहे हैं ।
एक शब्द जो सुनते है High Commission ये अंग्रेजों का एक गुलाम देश दुसरे गुलाम देश के यहाँ खोलता है लेकिन इसे Embassy नहीं कहा जाता।
अख़बारों में आप देखते होंगे क़ि कैसे शब्द प्रयोग होते हैं - (ब्रिटेन की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ, (ब्रिटेन के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स चार्ल्स , (ब्रिटेन की प्रिंसेस नहीं) प्रिंसेस डैना।।
संधि की कुछ शर्ते जो आज तक बतलाई ही नहीं गई - क्यों
1. भारत का नाम INDIA रहेगा और सारी दुनिया में भारत का नाम इंडिया प्रचारित किया जायेगा और सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित किया जायेगा हिन्दुस्तान या भारत नहीं कहा जाएगा।। अंग्रेजों के राज से पहले यह इण्डिया नहीं था। अब क्यों ?
पढे - इण्डिया नाम कैसे हुआ
संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है : " India that is Bharat " जब क़ि होना ये चाहिए था "Bharat that was India " लेकिन दुर्भाग्य इस देश का क़ि ये हिन्दुस्तान, भारत के जगह इंडिया हो गया। क्या इण्डिया लिखने से चार चांद लग गये। जबकी हर देश भक्ति के गीत में हिन्दुस्तान आैर भारत कहा गया है।
2. भारत के संसद में वन्दे मातरम नहीं गया जायेगा अगले 50 वर्षों तक यानि 1997 तक, 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस मुद्दे को संसद में उठाया तब जाकर पहली बार इस तथाकथित आजाद देश की संसद में वन्देमातरम गाया गया। 50 वर्षों तक नहीं गाया गया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है।
3. देश की आवाम को गुमराह किया गया की वन्दे मातरम गाने से मुसलमानों को आपत्ति है इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मुसलमानों के दिल को ठेस पहुचाये। धर्म के आधार पर जब देश के टुकडे कर दिये गये तो फिर यह आपत्ति क्यों हुई ?
आपत्तिजनक तो जन,गण,मन (जोर्ज पंचम का स्तुती गान है) में है जिसमे एक शख्स जोर्ज पंचम को भारत भाग्यविधाता यानि भारत के हर व्यक्ति का भगवान बताया गया है या कहें भगवान से भी बढ़कर।
पढे - जन,गण,मन क्या है
3. सुभाष चन्द्र बोस को जिन्दा या मुर्दा अंग्रेजों के हवाले करना था, यही वजह रही क़ि सुभाष चन्द्र बोस जो अपने देश के लिए लडे वह लापता रहे।भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी अपने ही देश के लिए बेगाने हो गये।
सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है क़ि ये 1942 में बनाई गयी थी और उसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोस ने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से मदद ली थी जो कि अंग्रेजो के दुश्मन थे और आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया था। जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों की वजह से ये द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था और दोनों देश एक दुसरे के कट्टर दुश्मन थे | एक दुश्मन देश की मदद से सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने चबवा दिए थे। एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी तरफ उन्हें भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था इसलिए अंग्रेज सुभाष चन्द्र बोस के दुश्मन थे।
3. इस संधि की शर्तों के अनुसार कोई भी कानून चाहे वो किसी क्षेत्र में हो नहीं बदला जायेगा | इसलिए आज भी इस देश में 34735 कानून वैसे के वैसे चल रहे हैं जैसे अंग्रेजों के समय चलता था।
- Indian Police Act, पढे - पुलिस किसकी देन है।
- Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil Administrative Act),
- Indian Penal Code (Ireland में भी IPC चलता है और Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वही भारत के IPC में "I" का मतलब Indian है बाकि सब के सब कंटेंट एक ही है, कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है)
- Indian Citizenship Act,
- Indian Advocates Act,
- Indian Education Act,
- Land Acquisition Act,
- Criminal Procedure Act,
- Indian Evidence Act,
- Indian Income Tax Act,
- Indian Forest Act,
- Indian Agricultural Price Commission Act सब के सब आज भी वैसे ही चल रहे हैं बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले हुए
4. अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे। शहर का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे ही रखे जायेंगे। आज देश का संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति भवन कितने नाम गिनाए सब के सब वैसे ही खड़े हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं।
5. हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है, अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी और अपने यहाँ अलग किस्म क़ि शिक्षा व्यवस्था रखी है हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है और अंग्रेजों के यहाँ ठीक उल्टा है।
अगर आपके पास ज्ञान है और आप कोई अविष्कार करते है तो भारत में पूछा जायेगा क़ि तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ? उनके यहाँ ऐसा बिलकुल नहीं है आप अगर कोई अविष्कार करते हैं और आपके पास ज्ञान है लेकिन कोई डिग्री नहीं हैं तो कोई बात नहीं आपको प्रोत्साहित किया जायेगा | नोबेल पुरस्कार पाने के लिए आपको डिग्री की जरूरत नहीं होती है |
हमारे शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्री में बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है । ये जो 30 नंबर का पास मार्क्स आप देखते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था क़ि देन है, मतलब ये है क़ि आप भले ही 70 नंबर में फेल है लेकिन 30 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसा शिक्षा तंत्र से सिर्फ गदहे ही पैदा हो सकते हैं और यही अंग्रेज चाहते थे
6. इस संधि के हिसाब से हमारे देश में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जायेगा। हमारे देश के समृद्धि और यहाँ मौजूद उच्च तकनीक की वजह ये गुरुकुल ही थे। और अंग्रेजों ने सबसे पहले इस देश की गुरुकुल परंपरा को ही तोडा था।
यहाँ लार्ड मेकॉले की एक उक्ति को पढिये जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में दिया था, उसने कहा था चाहे तो RTI के जरीये यह निकलवा सकते है।
" I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and
cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation"
English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation"
गुरुकुल का मतलब अब हम लोग केवल वेद, पुराण, उपनिषद ही समझते हैं जो की मुर्खता है वास्तव में ये गुरुकुल जो होते थे वो सब के सब Higher Learning Institute हुआ करते थे।
7. हमारे देश की (भारत के) अदालत में कोई ऐसा मुक़दमा आ जाये जिसके फैसले के लिए कोई कानून न हो इस देश में या उसके फैसले को लेकर संबिधान में भी कोई जानकारी न हो तो साफ़ साफ़ संधि में लिखा गया है क़ि वो सारे मुकदमों का फैसला अंग्रेजों के न्याय पद्धति के आदर्शों के आधार पर ही होगा, भारतीय न्याय पद्धति का आदर्श उसमे लागू नहीं होगा।
8. इस संधि में ये भी है क़ि ईस्ट इंडिया कम्पनी तो जाएगी भारत से लेकिन बाकि 126 विदेशी कंपनियां भारत में रहेंगी और भारत सरकार उनको पूरा संरक्षण देगी। और उसी का नतीजा है क़ि ब्रुक बोंड, लिप्टन, बाटा, हिंदुस्तान लीवर (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) जैसी 126 कंपनियां आज़ादी के बाद इस देश में बची रह गयी और लुटती रही और आज भी वो सिलसिला जारी है |
9. हमारे देश में आजादी के 50 साल बाद तक संसद में वार्षिक बजट शाम को 5:00 बजे पेश किया जाता था, जानते है क्यों ?
क्योंकि जब हमारे देश में शाम के 5:00 बजते हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30 बजते हैं और अंग्रेज अपनी सुविधा से उनको सुन सके और उस बजट की समीक्षा कर सके।
10. भारत सरकार को संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में संशोधन करने का अधिकार नहीं है।
11. संविधाने के अनुच्छेद 348 के अंतर्गत उच्चतम व उच्च न्यायलय तथा संसद की कार्यवाही अपनी राष्टभाषा हिंदी में होने के बजाय अंग्रेजी में होगी। (संविधान की धारा 348 कहती है कि सर्वोच्च न्यायालय और सभी उच्च न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी ही रहेगी। न तो न्यायाधीश अपने निर्णय हिंदी में या किसी भारतीय भाषा में दे सकेंगे और न ही वकील भारतीय भाषाओं में बहस कर सकेंगे। उन्हें अपना सारा काम-काज अंग्रेजी में करना होगा। यदि कोई जज या वकील किसी भारतीय भाषा का प्रयोग करना चाहे तो उसे अनुमति नहीं मिलेगी)।
12. सन 1948 में बने बर्तानिया कानून के अंतर्गत भाग 1 (1) 1948 के बर्तानिया के कानून के अनुसार हर भारतवासी बर्तानिया की रियाया है और यह कानून भारत के गणराज्य प्राप्त कर लेने के पश्चात भी लागू है l
13. भारत सरकार के संविधान के अनुच्छेद नं. 366, 371, 372 एवं 392 को बदलने या रद्द करने की क्षमता भारत सरकार को नहीं है l
14. डंकल व् गैट, साम्राज्यवाद को भारत में पीछे के दरवाजों से लाने का सुलभ रास्ता बनाया है ताकि भारत की सत्ता फिर से इनके हाथों में आसानी से सौंपी जा सके l
क्योंकि जब हमारे देश में शाम के 5:00 बजते हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30 बजते हैं और अंग्रेज अपनी सुविधा से उनको सुन सके और उस बजट की समीक्षा कर सके।
10. भारत सरकार को संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में संशोधन करने का अधिकार नहीं है।
11. संविधाने के अनुच्छेद 348 के अंतर्गत उच्चतम व उच्च न्यायलय तथा संसद की कार्यवाही अपनी राष्टभाषा हिंदी में होने के बजाय अंग्रेजी में होगी। (संविधान की धारा 348 कहती है कि सर्वोच्च न्यायालय और सभी उच्च न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी ही रहेगी। न तो न्यायाधीश अपने निर्णय हिंदी में या किसी भारतीय भाषा में दे सकेंगे और न ही वकील भारतीय भाषाओं में बहस कर सकेंगे। उन्हें अपना सारा काम-काज अंग्रेजी में करना होगा। यदि कोई जज या वकील किसी भारतीय भाषा का प्रयोग करना चाहे तो उसे अनुमति नहीं मिलेगी)।
12. सन 1948 में बने बर्तानिया कानून के अंतर्गत भाग 1 (1) 1948 के बर्तानिया के कानून के अनुसार हर भारतवासी बर्तानिया की रियाया है और यह कानून भारत के गणराज्य प्राप्त कर लेने के पश्चात भी लागू है l
13. भारत सरकार के संविधान के अनुच्छेद नं. 366, 371, 372 एवं 392 को बदलने या रद्द करने की क्षमता भारत सरकार को नहीं है l
14. डंकल व् गैट, साम्राज्यवाद को भारत में पीछे के दरवाजों से लाने का सुलभ रास्ता बनाया है ताकि भारत की सत्ता फिर से इनके हाथों में आसानी से सौंपी जा सके l
ऐसी हजारों शर्तें हैं मतलब यही है क़ि इस देश में जो कुछ भी अभी चल रहा है वो सब अंग्रेजों का है हमारा कुछ नहीं है।
हमारे देश में, संसद में, न्यायपालिका में, कार्यालयों में हर कहीं अंग्रेजी और अंग्रेजी है जब क़ि इस देश में 99% लोगों को अंग्रेजी नहीं आती है। देश की मूल भाषा हिन्दी संस्कृत को लगभग खत्म कर दिया।।
भारत में आज़ादी की लड़ाई हुई तो वो ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ थी और संधि के हिसाब से ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत छोड़ के जाना था और वो चली भी गयी लेकिन अंग्रेजी का स्थान अंग्रेजों के जाने के बाद वैसे ही रहेगा भारत में जैसा क़ि अभी (1946 में) है और ये भी इसी संधि का हिस्सा है |
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में राशन कार्ड का सिस्टम शुरू किया क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों को अनाज क़ि जरूरत थी और वे ये अनाज भारत से चाहते थे। इसीलिए उन्होंने यहाँ जनवितरण प्रणाली और राशन कार्ड क़ि शुरुआत क़ि वो प्रणाली आज भी लागू है इस देश में क्योंकि वो इस संधि में है। और इस राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल उसी समय शुरू किया गया और वो आज भी जारी है। जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार होता था। आज भी देखिये राशन कार्ड ही मुख्य पहचान पत्र है इस देश में।
मुगलों के समय तो ये कानून था क़ि कोई अगर गाय को काट दे तो उसका हाथ काट दिया जाता था। अंग्रेज यहाँ आये तो उन्होंने पहली बार कलकत्ता में गाय काटने का कत्लखाना शुरू किया, पहला शराबखाना शुरू किया, पहला वेश्यालय शुरू किया और इस देश में जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी वहां वहां वेश्याघर बनाये गए, वहां वहां शराबखाना खुला, वहां वहां गाय के काटने के लिए कत्लखाना खुला। ऐसे पुरे देश में 355 छावनियां थी उन अंग्रेजों की। अंग्रेजों के जाने के बाद ये सब ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन नहीं हुआ, क्यों ?
हमारे देश में जो संसदीय लोकतंत्र है वो दरअसल अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टर सिस्टम है। ये अंग्रेजो के इंग्लैंड क़ि संसदीय प्रणाली है । ये कहीं से भी न संसदीय है और न ही लोकतान्त्रिक है। लेकिन इस देश में वही सिस्टम है क्यों ? और इसी वेस्टमिन्स्टर सिस्टम को हर समझदार बाँझ और वेश्या कहते थे।
पहले के राजाओं को तो अंग्रेजी नहीं आती थी तो वो खतरनाक संधियों के जाल में फँस कर अपना राज्य गवां बैठे लेकिन आज़ादी के समय वाले नेताओं को तो अच्छी अंग्रेजी आती थी फिर वो कैसे इन संधियों के जाल में फँस गए।
साफ कारण है -
क्योंकि आज़ादी के समय वाले नेता अंग्रेजों को अपना आदर्श मानते थे ( जिसका उदाहरण नेहरु उसका परिवार , गांधी , जिन्ना व अन्य कई अनगिनत नाम है जिन्होने विदेश में शिक्षा ली ) इसलिए उन्होंने जानबूझ कर ये संधि क़ि थी। वो मानते थे क़ि अंग्रेजों से बढियां कोई नहीं है इस दुनिया में भारत की आज़ादी के समय के नेताओं के भाषण आप पढेंगे तो आप पाएंगे क़ि वो केवल देखने में ही भारतीय थे लेकिन मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे।
वे कहते थे क़ि सारा आदर्श है तो अंग्रेजों में, आदर्श शिक्षा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श अर्थव्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श चिकित्सा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कृषि व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श न्याय व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कानून व्यवस्था है तो अंग्रेजों की | हमारे आज़ादी के समय के नेताओं को अंग्रेजों से बड़ा आदर्श कोई दिखता नहीं था और वे ताल ठोक ठोक कर कहते थे क़ि हमें भारत अंग्रेजों जैसा बनाना है। अंग्रेज हमें जिस रस्ते पर चलाएंगे उसी रास्ते पर हम चलेंगे | इसीलिए वे ऐसी संधियों में फंसे।
साफ कारण है -
क्योंकि आज़ादी के समय वाले नेता अंग्रेजों को अपना आदर्श मानते थे ( जिसका उदाहरण नेहरु उसका परिवार , गांधी , जिन्ना व अन्य कई अनगिनत नाम है जिन्होने विदेश में शिक्षा ली ) इसलिए उन्होंने जानबूझ कर ये संधि क़ि थी। वो मानते थे क़ि अंग्रेजों से बढियां कोई नहीं है इस दुनिया में भारत की आज़ादी के समय के नेताओं के भाषण आप पढेंगे तो आप पाएंगे क़ि वो केवल देखने में ही भारतीय थे लेकिन मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे।
वे कहते थे क़ि सारा आदर्श है तो अंग्रेजों में, आदर्श शिक्षा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श अर्थव्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श चिकित्सा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कृषि व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श न्याय व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कानून व्यवस्था है तो अंग्रेजों की | हमारे आज़ादी के समय के नेताओं को अंग्रेजों से बड़ा आदर्श कोई दिखता नहीं था और वे ताल ठोक ठोक कर कहते थे क़ि हमें भारत अंग्रेजों जैसा बनाना है। अंग्रेज हमें जिस रस्ते पर चलाएंगे उसी रास्ते पर हम चलेंगे | इसीलिए वे ऐसी संधियों में फंसे।
अगर आप अभी तक उन्हें देशभक्त मान रहे थे तो ये भ्रम दिल से निकाल दीजिये। और आप अगर समझ रहे हैं क़ि पार्टी के नेता ख़राब थे या हैं तो आज की कोई भी पार्टी के नेता भी दूध के धुले नहीं हैं।
तथाकथित आज़ादी के बाद के इन 64 सालों में सब ने चाहे वो राष्ट्रीय पार्टी हो या प्रादेशिक पार्टी, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता का स्वाद तो सबो ने चखा ही है। हम थक हार कर कहते है की सत्ता बदलनी हे लेकिन यह कहावत तो सोचे चोर-चोर मौसेरे भाई सत्ता बदलने से कुछ नहीं होगा। हमे सरकार नहीं व्यवस्था बदलनी होगी जो सिर्फ जनशक्ति ही बदल सकती है।
आप अगर सोच रहे हैं क़ि कोई मसीहा आएगा और सब बदल देगा तो ग़लतफ़हमी हैं यही सोच कर आमजन ने मोदी को वोट दिया क्या हुआ देश की महंगाई कम हुई, देश से भ्रष्टाचार खत्म हुआ, आंतकवादीयों खत्म हुए या उनके सहयोगियों के साथ में कोई भय आया।
अगर यह सब बाते सही है तो 15 अगस्त 1947 को हमारी आज़ादी की बात कही जाती है वो झूठ है।
आप अगर सोच रहे हैं क़ि कोई मसीहा आएगा और सब बदल देगा तो ग़लतफ़हमी हैं यही सोच कर आमजन ने मोदी को वोट दिया क्या हुआ देश की महंगाई कम हुई, देश से भ्रष्टाचार खत्म हुआ, आंतकवादीयों खत्म हुए या उनके सहयोगियों के साथ में कोई भय आया।
अगर यह सब बाते सही है तो 15 अगस्त 1947 को हमारी आज़ादी की बात कही जाती है वो झूठ है।
इस सच को सभी हिन्दुस्तानीयों तक पहुँचा कर अपना राष्ट्र धर्म निभाना है।
अंगेजों की एक आैर करतुत जिसे देश के नेता भुना रहे है। पढे
आरक्षण अंग्रेजो द्वारा हिन्दुआें को तोडने एंव संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्य की प्राप्ति का एक साधन है।
वन्देमातरम !
अंगेजों की एक आैर करतुत जिसे देश के नेता भुना रहे है। पढे
आरक्षण अंग्रेजो द्वारा हिन्दुआें को तोडने एंव संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्य की प्राप्ति का एक साधन है।
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