हिन्दु
धर्म
दुनिया के सभी धर्मो में सबसे पुराना
धर्म
है हिन्दू धर्म का 1960853110 साल का इतिहास है ये वेदो पर आधारित धर्म है।
इसमें कई देवी देवता है पर उनको एक ईश्वर के विभिन्न रुप में माना जाता है। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बडा धर्म है। यह सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म है।
इस धर्म को हिन्दू धर्म क्यों कहा जाने लगा -
भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने हिन्दुस्थान नाम दिया था जिसका अपभ्रंष हिन्दुस्तान है। ’’ वृहस्पति आगम ’’ के अनुसार ’ हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ’।।
अर्थात हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।
हिमालय के प्रथम अक्षर ’’ हि ’’ एवं इन्दु का अन्तिम अक्षर ’’ न्दु ’’ इन दोनो अक्षरों को मिलाकर शब्द बना ’’ हिन्दु ’’ और यह भूभाग हिन्दुस्थान कहलाया।
हिन्दू शब्द उस समय धर्म की बजाय राष्ट्रीयता के रुप में प्रयुक्त होता था चूॅकि उस समय भारत में केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे। वह केवल वैदिक धर्मावलम्बियों के बसने के कारण कालान्तर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म के सन्दर्भ में प्रयोग करना शुरु कर दिया। जब अरब से हमलावर भारत में आये, तो उन्होने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू कहना शुरु कर दिया।
इन सिद्धान्तों में से पहले वाले प्राचीन काल में नामकरण को इस आधार पर सही माना जा सकता है कि ’’ वृहस्पति आगम’’ सहित अन्य आगम ईरानी या अरबी सभ्यताओं से बहुत प्राचीन काल में लिखा जा चुके थे। अतः उसमें हिन्दुस्थान का उल्लेख होने से स्पष्ट है कि हिन्दूस्थान नाम प्राचीन ऋषियों द्वारा दिया गया था। यह नाम बाद में अरबों/ईरानियों एंव ब्रिटिश शासकों द्वारा प्रयुक्त होने लगा।
जब ब्रिटिश शासन को ईसाई, मुस्लिम आदि धर्मो के मानने वालो का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिये जनगणना करने की आवशकता पडी तो सनातन शब्द से अपरिचित होने के कारण उन्होने यहा के धर्म का नाम सनातन धर्म के स्थान पर हिन्दू धर्म रख दिया। जबकि सनातन धर्म हिन्दू धर्म का वास्तविक नाम है।
मुख्य सिद्धान्त:
हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है जो अपने मन, वचन, कर्म, हिंसा से दूर रहे वह हिन्दू है और जो कर्म अपने हितो के लिए दूसरों को कष्ट दे वह हिंसा है।
मनु ने धर्म के दस लक्षण बतालाये है:-
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शोचमिन्द्रियनिग्रहः ।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दषकं धर्म लक्षणम् ।।
धृतिः (धैर्य) , क्षमा ( दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना ) , दमो ( अपनी वापसनाओं पर नियन्त्रण करना ) , अस्तेय ( चोरी न करना ) , शोच ( अंतरड्ग और ब्राह्रा शुचिता ) , इन्द्रिय निग्रहः ( इन्द्रियों को वष में रखना ) , धी ( बुद्धिमत्ता का प्रयोग ) , विद्या ( अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा ) , सत्य ( मन वचन कर्म से सत्य का पालन ) , अक्रोध ( क्रोध न करना ) यह दस धर्म के लक्षण है।
श्रूण्तां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम् ।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् ।।
( धर्म का सर्वस्व है, सुनो और सुनकर उस पर चलो। अपने को जो आचरण अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नहीं करना चाहिये )।
जो व्यवहार अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरे के साथ न करना चाहिये यह धर्म की कसौटी है।
हिन्दू धर्म वेदो पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियॉ, मत, सम्प्रदाय और दर्षन समेटे हुए है। इसके ज्यादातर उपासक भारत में है और विश्व का सबसे ज्यादा हिन्दुओं का प्रतिशत नेपाल में है। इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है परन्तु असल में ये एकेशरवादी धर्म है।
’’ हिन्सायाम दूयते या सा हिन्दु ’’
अर्थात जो अपने मन वचन कर्म से हिंसा से दूर रहे वह हिन्दु है और जो कर्म अपने हितों के लिए दूसरो को कष्ट दे वह हिंसा है।
इन सिद्धान्तों में से पहले वाले प्राचीन काल में नामकरण को इस आधार पर सही माना जा सकता है कि ’’ वृहस्पति आगम’’ सहित अन्य आगम ईरानी या अरबी सभ्यताओं से बहुत प्राचीन काल में लिखा जा चुके थे। अतः उसमें हिन्दुस्थान का उल्लेख होने से स्पष्ट है कि हिन्दूस्थान नाम प्राचीन ऋषियों द्वारा दिया गया था। यह नाम बाद में अरबों/ईरानियों एंव ब्रिटिश शासकों द्वारा प्रयुक्त होने लगा।
जब ब्रिटिश शासन को ईसाई, मुस्लिम आदि धर्मो के मानने वालो का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिये जनगणना करने की आवशकता पडी तो सनातन शब्द से अपरिचित होने के कारण उन्होने यहा के धर्म का नाम सनातन धर्म के स्थान पर हिन्दू धर्म रख दिया। जबकि सनातन धर्म हिन्दू धर्म का वास्तविक नाम है।
मुख्य सिद्धान्त:
हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है जो अपने मन, वचन, कर्म, हिंसा से दूर रहे वह हिन्दू है और जो कर्म अपने हितो के लिए दूसरों को कष्ट दे वह हिंसा है।
मनु ने धर्म के दस लक्षण बतालाये है:-
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शोचमिन्द्रियनिग्रहः ।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दषकं धर्म लक्षणम् ।।
धृतिः (धैर्य) , क्षमा ( दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना ) , दमो ( अपनी वापसनाओं पर नियन्त्रण करना ) , अस्तेय ( चोरी न करना ) , शोच ( अंतरड्ग और ब्राह्रा शुचिता ) , इन्द्रिय निग्रहः ( इन्द्रियों को वष में रखना ) , धी ( बुद्धिमत्ता का प्रयोग ) , विद्या ( अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा ) , सत्य ( मन वचन कर्म से सत्य का पालन ) , अक्रोध ( क्रोध न करना ) यह दस धर्म के लक्षण है।
श्रूण्तां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम् ।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् ।।
( धर्म का सर्वस्व है, सुनो और सुनकर उस पर चलो। अपने को जो आचरण अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नहीं करना चाहिये )।
जो व्यवहार अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरे के साथ न करना चाहिये यह धर्म की कसौटी है।
हिन्दू धर्म वेदो पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियॉ, मत, सम्प्रदाय और दर्षन समेटे हुए है। इसके ज्यादातर उपासक भारत में है और विश्व का सबसे ज्यादा हिन्दुओं का प्रतिशत नेपाल में है। इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है परन्तु असल में ये एकेशरवादी धर्म है।
’’ हिन्सायाम दूयते या सा हिन्दु ’’
अर्थात जो अपने मन वचन कर्म से हिंसा से दूर रहे वह हिन्दु है और जो कर्म अपने हितों के लिए दूसरो को कष्ट दे वह हिंसा है।
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