आज की तारीख में देश में आम जनता दो चीजों से बहुत ही ज्यादा बदहाल आैर परेशान है - भ्रष्टाचार Corruption आैर मंहगाई !
भ्रष्टाचार Corruption पर तो लोगों में थोडी जागरुकता आई है परन्तु सरकार चला रहे नेताआें को करप्शन खत्म करने में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं है।
कौन कहता है की करप्शन खत्म नहीं हो सकता ? बडा करप्शन खत्म हो जाएगा तो छोटे भ्रष्टों को खत्म होते समय नहीं लगेगा।
सरकार चाहे तो इस तरह का फार्मुला " formula " लागू कर सकती है -
परन्तु सरकार में बैठे लोग इसे लागू होने ही नहीं देगे क्यों की कारण आप सभी जानते है !
परन्तु सरकार में बैठे लोग इसे लागू होने ही नहीं देगे क्यों की कारण आप सभी जानते है !
1. देश में धोषणा करवाई जावे की भ्रष्ट लोकसेवक को पकडवाने वाले को 20 प्रतिशत ईनाम दिया जायेगा एंव नाम गुप्त रखा जायेगा। 20 से ज्यादा भ्रष्ट लोकसेवक को पकडवाने वाले को राष्टीय सम्मान दिया जायेगा।
2. भ्रष्ट लोकसेवक की सारी सम्पती चाहे व वैध हो या अवैध हो जब्त कर ली जावे।
3. भ्रष्ट लोकसेवक पर देशद्रोह का मुक्दमा चलाया जाए।
4. किसी भी हाल में उसके मुक्दमें का निस्तारण 120 दिवस में हो जाना चाहिए आैर उसे सुनवाई के दौरान जमानत नहीं मिले। जिससे की वो भ्रष्ट लोकसेवक खरीद फरोख्त न कर सके।
5. यदि कोर्ट से दोषी मुक्त हो जावे तो कायर्वाही करने वाले अधिकारी के खिलाफ कठोर कायर्वाही की जावे।
मेरा पूर्ण विशवास है कि भ्रष्टाचार पर काफी हद तक अंकुश लग जाएगा।
मंहगाई कीमतों में निरन्तर वृद्धि एक दहशतकारी मोड़ ले रही है। कालाधन, जमाखोरी, राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार, राष्ट्रीयकृत उद्योगों में घाटा, सरकारी कुव्यवस्था, रुपये का अवमूल्यन, मुद्रास्फीति इत्यादि ऐसे कारक हें जो निरन्तर महंगाई को बढ़ाये जा रहे हैं ।
एक फिल्मी गाना वयंग्योक्ति भरा नहीं लगता जिसमें कहा गया है की “पहले मुट्ठी भर पैसे से झोली भर शक्कर लाते थे, अब झोले भर पैसे जाते हैं, मुट्ठीभर शक्कर लाते हैं , हाय मंहगाई - मंहगाई तुझे मौत न आई।”
महंगाई को लेकर जनता अपना दुखडा किसके सामने रोए ? सरकार आैर उसके मंत्री कोई आशवासन देने की बजाय कहते है कि मंहगाई पर उनका कोई वश नहीं है। एक झूठ का पुलिन्दा फेक देते है कि तेज विकास की देन है यानी उसे तो लोगों को झेलना ही पडेगा। परन्तु सच्चाई यह है कि -
एक फिल्मी गाना वयंग्योक्ति भरा नहीं लगता जिसमें कहा गया है की “पहले मुट्ठी भर पैसे से झोली भर शक्कर लाते थे, अब झोले भर पैसे जाते हैं, मुट्ठीभर शक्कर लाते हैं , हाय मंहगाई - मंहगाई तुझे मौत न आई।”
महंगाई को लेकर जनता अपना दुखडा किसके सामने रोए ? सरकार आैर उसके मंत्री कोई आशवासन देने की बजाय कहते है कि मंहगाई पर उनका कोई वश नहीं है। एक झूठ का पुलिन्दा फेक देते है कि तेज विकास की देन है यानी उसे तो लोगों को झेलना ही पडेगा। परन्तु सच्चाई यह है कि -
1. कुछ वर्षो से सरकारी घाटा बेतहाशा बढा है
2. अच्छा उत्पादन होने के बावजूद खाने की चीजों की कीमतों पर नियंत्रण नहीं रखा गया है।
सन् 1961 में टमाटर की कीमत 10 पैसे किलो थी । आज यह 20 से 40 रूपय किलो है । इसी तरह तब दूध एक रूपय में ढाई से तीन किलों मिल जाता था, आज यह 40 से 45 रुपए लीटर है किलों नहीं । अरहर की दाल तब 80 पैसे में 1 रुपये किलो उपलब्ध थी । आज यह 100-120 रुपए किलो मिल रही है, आटा 75पैसे था जो आज 20 से 25रुपये किलो हो गया। एेसा क्या हो गया कि कीमते इतनी बढ गई ?
सन् 1961 में टमाटर की कीमत 10 पैसे किलो थी । आज यह 20 से 40 रूपय किलो है । इसी तरह तब दूध एक रूपय में ढाई से तीन किलों मिल जाता था, आज यह 40 से 45 रुपए लीटर है किलों नहीं । अरहर की दाल तब 80 पैसे में 1 रुपये किलो उपलब्ध थी । आज यह 100-120 रुपए किलो मिल रही है, आटा 75पैसे था जो आज 20 से 25रुपये किलो हो गया। एेसा क्या हो गया कि कीमते इतनी बढ गई ?
बेलगाम सरकारी घाटा क्यों -
सरकार कहती है की ग्लोबल मंदी से देश की इकानमी को बचाने आैर वित्तीय संकट से बचने के लिए स्टिमुलस का जो उपाय किया गया, यह पैसा उसी में लगा।
सरकारी घाटा बढने का मतलब साफ यह है कि इतने लाखो करोडो रुपये महंगाई की की वजह से जनता की जेब से निकल गए।
एक दफा मान ले कि स्टिमुलस के असर से डिमांड बढती है आैर बढी हुई मांग की आपूर्त्ति के लिए बाजार में सामान आता है। पर क्या एेसा हुआ ?
उलट इसके सामनों की कीमतें इतनी ज्यादा हो गई कि वे उन्हे खरीद ही नहीं सकतें। इनकी इन बेकुफीयों की वजह से मांग आैर आपूर्ति का स्वाभविक संतुलन बिगड गया। सरकार को यह संतुलन बनाने का उपाय करना चाहिए था। जो नहीं रखा सिर्फ आैर सिर्फ सत्ता का सुख भोगने की ललक बनी रही।
मंहगाई का दूसरा सबसे बडा कारण -
मंहगाई का दूसरा प्रमुख कारण देश में खाधान्नों की कीमतों का बेकाबू हो जाना है।
उल्लेखनीय है कि देश में आनाज के उत्पादन में कोई कमी नहीं आई है। हमारे भंडार भरे हुए है लेकिन अनाज अगर भंडार में हो आैर उसे बाजार में नहीं उतारा जाए तो इससे खाधान्नों की महंगाई बढती है। आज भंडारों में लगभग 7 करोड टन अनाज मौजूद होने की बात कही जाती है। रोज खबरे आती है कि यह अनाज गोदामों में आैर उनके बाहर पडा सड रहा है। अगर इसमें से ढाई करोड टन आनाज भी निकाल कर बाजार में भेज दिया जाए तो मंहगाई पर फौरन काबू पाया जा सकता है लेकिन सरकार यह काम नहीं कर रही है क्यों ?
क्या बैठे मंत्री आैर बडे उच्चाधि कारीयों को इतनी भी समझ नहीं है कि अनाज एेसा स्टाक नहीं है जिसे लंबे समय तक रोककर रखा जा सके। उसे तो हर साल गोदाम में नए सिरे से भरना पडता है। जब फूड इंफलेशन चरम पर हो तब अनाज को बाजार में नहं भेज कर गोदाम में रखकर सडाने का कोई अर्थ नहीं है।
हिन्दोस्तान की जनता को बेवकूफ बनाने के लिए अंत्योदय आैर अन्नपूर्णा योजनाए शुरु कर रहे है। जो आम आदमी के लिए धातक है यह योजना भीष्णतम सूखे के समय चालू की गई थी बाद में इसका राजनेता अपने स्वार्थ के लिए उपयोग में लाने लग गये।
मंहगाई को आैर मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के सबसे पहले खाधान्न की कीमतों को सभालना चाहिए।
मुद्रास्फीति संभालने का काम रिजर्व बैंक आफ इंडिया पर छोड दिया है जो गलत है। वह महंगाई रोकने के मौद्रि क उपाय कर रहा है। यानी ब्याज दरें बढा रहा है आैर आम आदमी की जेब को काट रहा है। जबकी वास्त में महंगाई का मौजूदा कारण खाधान्नों की उची कीमते है।
मर्ज कुछ आैर है इलाज कुछ आैर तो भला राहत कैसे मिल सकती है।
आम जनता की खीझ बढी है उसका कारण एक चीज आैर है। उससे कहा जा रहा है कि महंगाई तेज विकास के कारण है। यह गलत तर्क है।
मंहगाई के कारण देश में 5 करोड लोग एक झटके में गरीबी रेखा के नीचे चले जाए तो एेसा विकास किस काम का ?
चीन को ही ले चीन ने भारत से उची दर पर वि कास किया है पर वहा मुद्रास्फीति काबू मे है। यदि ग्रोथ की वजह से गरीबी बढे आैर महंगाई अनियंत्रित हो जाए तो भारत को एेसे वि कास की जरुरत नहीं है।
महांगाई की मुख्य वजह वायदा कारोबार भी है - यह मात्र कुछ धनी सम्पन्न लोगो को ही फायदा दे रहा है मुख्य रुप से सरकार को इससे अच्छी आमदनी हो रही है बाकी आम जनता जाए भाड में।
वर्ष 2005 में एनडीए के शासनकाल में जब वायदा कारोबार खोला गया था तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आरोप लगाया था की उसी के कारण महंगाई बढी है। तो फिर जब एनडीए आई तो उसने यह सब बंद क्यों नहीं किया ?
आज इकानमी आफ शार्टज का दौर है चीजों की कमी पड रही है तो यह सरकार वायदा कारोबार को बंद क्यों नहीं कर रही है ?
मंहगाई का एक आैर कारण - रीटेलर दूकानदार ठेलेवाले का मनमाना भाव जिसपर कोई भी अंकुश नहीं है न ही कोई लगाने का प्रयास किया जा रहा है।
सरकार कहती है की ग्लोबल मंदी से देश की इकानमी को बचाने आैर वित्तीय संकट से बचने के लिए स्टिमुलस का जो उपाय किया गया, यह पैसा उसी में लगा।
सरकारी घाटा बढने का मतलब साफ यह है कि इतने लाखो करोडो रुपये महंगाई की की वजह से जनता की जेब से निकल गए।
एक दफा मान ले कि स्टिमुलस के असर से डिमांड बढती है आैर बढी हुई मांग की आपूर्त्ति के लिए बाजार में सामान आता है। पर क्या एेसा हुआ ?
उलट इसके सामनों की कीमतें इतनी ज्यादा हो गई कि वे उन्हे खरीद ही नहीं सकतें। इनकी इन बेकुफीयों की वजह से मांग आैर आपूर्ति का स्वाभविक संतुलन बिगड गया। सरकार को यह संतुलन बनाने का उपाय करना चाहिए था। जो नहीं रखा सिर्फ आैर सिर्फ सत्ता का सुख भोगने की ललक बनी रही।
मंहगाई का दूसरा सबसे बडा कारण -
मंहगाई का दूसरा प्रमुख कारण देश में खाधान्नों की कीमतों का बेकाबू हो जाना है।
उल्लेखनीय है कि देश में आनाज के उत्पादन में कोई कमी नहीं आई है। हमारे भंडार भरे हुए है लेकिन अनाज अगर भंडार में हो आैर उसे बाजार में नहीं उतारा जाए तो इससे खाधान्नों की महंगाई बढती है। आज भंडारों में लगभग 7 करोड टन अनाज मौजूद होने की बात कही जाती है। रोज खबरे आती है कि यह अनाज गोदामों में आैर उनके बाहर पडा सड रहा है। अगर इसमें से ढाई करोड टन आनाज भी निकाल कर बाजार में भेज दिया जाए तो मंहगाई पर फौरन काबू पाया जा सकता है लेकिन सरकार यह काम नहीं कर रही है क्यों ?
क्या बैठे मंत्री आैर बडे उच्चाधि कारीयों को इतनी भी समझ नहीं है कि अनाज एेसा स्टाक नहीं है जिसे लंबे समय तक रोककर रखा जा सके। उसे तो हर साल गोदाम में नए सिरे से भरना पडता है। जब फूड इंफलेशन चरम पर हो तब अनाज को बाजार में नहं भेज कर गोदाम में रखकर सडाने का कोई अर्थ नहीं है।
हिन्दोस्तान की जनता को बेवकूफ बनाने के लिए अंत्योदय आैर अन्नपूर्णा योजनाए शुरु कर रहे है। जो आम आदमी के लिए धातक है यह योजना भीष्णतम सूखे के समय चालू की गई थी बाद में इसका राजनेता अपने स्वार्थ के लिए उपयोग में लाने लग गये।
मंहगाई को आैर मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के सबसे पहले खाधान्न की कीमतों को सभालना चाहिए।
मुद्रास्फीति संभालने का काम रिजर्व बैंक आफ इंडिया पर छोड दिया है जो गलत है। वह महंगाई रोकने के मौद्रि क उपाय कर रहा है। यानी ब्याज दरें बढा रहा है आैर आम आदमी की जेब को काट रहा है। जबकी वास्त में महंगाई का मौजूदा कारण खाधान्नों की उची कीमते है।
मर्ज कुछ आैर है इलाज कुछ आैर तो भला राहत कैसे मिल सकती है।
आम जनता की खीझ बढी है उसका कारण एक चीज आैर है। उससे कहा जा रहा है कि महंगाई तेज विकास के कारण है। यह गलत तर्क है।
मंहगाई के कारण देश में 5 करोड लोग एक झटके में गरीबी रेखा के नीचे चले जाए तो एेसा विकास किस काम का ?
चीन को ही ले चीन ने भारत से उची दर पर वि कास किया है पर वहा मुद्रास्फीति काबू मे है। यदि ग्रोथ की वजह से गरीबी बढे आैर महंगाई अनियंत्रित हो जाए तो भारत को एेसे वि कास की जरुरत नहीं है।
महांगाई की मुख्य वजह वायदा कारोबार भी है - यह मात्र कुछ धनी सम्पन्न लोगो को ही फायदा दे रहा है मुख्य रुप से सरकार को इससे अच्छी आमदनी हो रही है बाकी आम जनता जाए भाड में।
वर्ष 2005 में एनडीए के शासनकाल में जब वायदा कारोबार खोला गया था तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आरोप लगाया था की उसी के कारण महंगाई बढी है। तो फिर जब एनडीए आई तो उसने यह सब बंद क्यों नहीं किया ?
आज इकानमी आफ शार्टज का दौर है चीजों की कमी पड रही है तो यह सरकार वायदा कारोबार को बंद क्यों नहीं कर रही है ?
मंहगाई का एक आैर कारण - रीटेलर दूकानदार ठेलेवाले का मनमाना भाव जिसपर कोई भी अंकुश नहीं है न ही कोई लगाने का प्रयास किया जा रहा है।
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