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11 April 2015

नमाज

नमाज फारसी शब्द है, जो उर्दू में अरबी शब्द सलात का पर्याय है। कुरान शरीफ में सलात शब्द बार-बार आया है। इस्लाम के आरंभकाल से ही नमाज की प्रथा और उसे पढ़ने का आदेश है। यह मुसलमानों का कर्तव्य है और इसे नियमपूर्वक पढ़ना पुण्य तथा त्याग देना पाप माना जाता  है।

मुसलमान के लिए प्रति दिन पाँच समय की नमाज पढ़ने का विधान है। 
पांच नमाजें :
  1. नमाज -ए-फजर (उषाकाल की नमाज) - यह पहली नमाज है जो प्रात: काल सूर्य के उदय होने के पहले पढ़ी जाती है
  2. नमाज-ए-जुह्ल (अवनतिकाल की नमाज) - यह दूसरी नमाज है जो मध्याह्न सूर्य के ढलना शुरु करने के बाद पढ़ी जाती है
  3. नमाज -ए-अस्र (दिवसावसान की नमाज) - यह तीसरी नमाज है जो सूर्य के अस्त होने के कुछ पहले होती है।
  4. नमाज-ए-मगरिब (पश्चिम की नमाज) - चौथी नमाज जो सूर्यास्त के तुरंत बाद होती है।
  5. नमाज-ए-अशा (रात्रि की नमाज) - अंतिम पाँचवीं नमाज जो सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद पढ़ी जाती है।
अन्य नमाजें
पाँचों समय की नमाज़ों के सिवा कुछ अन्य नमाज़ें हैं, जो समूहबद्ध हैं।
  • पहली नमाज़ जुम्मा (शुक्रवार) की है, जो सूर्य के ढलने के अनंतर नमाज़ जुह्र के स्थान पर पढ़ी जाती है। इसमें इमाम नमाज़ पढ़ाने के पहले एक भाषण देता है, जिसे खुतबा कहते हैं।
  • दूसरी नमाज ईदुलफित्र के दिन पढ़ी जाती है। यह मुसलमानों का वह त्योहार है, जिसे उर्दू में ईद कहते हैं और रमजान के पूरे महीने रोजे (दिन भर का उपवास) रखने के अनंतर जिस दिन नया चंद्रमा (शुक्ल द्वितीया का) निकलता है उसके दूसरे दिन मानते हैं।
  • तीसरी नमाज़ ईद अल् अजा के अवसर पर पढ़ी जाती है। इस ईद को कुर्बानी की ईद कहते हैं। इन दिनों के अवसरों पर निश्चित नमाज़ों का समय सूर्योदय के अनंतर लगभग बारह बजे दिन तक रहता है। ये नमाज़ें सामान्य नमाज़ों की तरह पढ़ी जाती हैं। विभिन्नता केवल इतनी रहती है कि इनमें पहली रकअत में तीन बार और दूसरी रकअत में पुन: तीन बार अधिक कानों तक हाथ उठाना पड़ता है। नमाज़ के अनंतर इमाम खुतबा देता है, जिसमें नेकी व भलाई करने के उपदेश रहते हैं।
कुछ नमाजें ऐसी भी होती हैं जिनके न पढ़ने से कोई दोषी नहीं होता। इन नमाजों में सबसे अधिक महत्व 
  • तहज्जुद नमाज़ को प्राप्त है। यह नमाज़ रात्रि के पिछले पहर में पढ़ी जाती है।
  • नमाज़ जनाज़ा जब किसी मुसलमान की मृत्यु हो जाती है तब उसे नहला धुलाकर श्वेत वस्त्र से ढक देते हैं, जिसे कफन कहते हैं और फिर जिनाज़ा को मस्जिद में ले जाते हैं।  वहाँ इमाम जिनाज़ा के पीछे खड़ा होता है और दूसरे लोग उसके पीछे पंक्ति बाँधकर खड़े हो जाते हैं। नमाज़ में न कोई झुकता है और न सिजदा करता है, केवल हाथ बाँधकर खड़ा रह जाता है तथा दुआ पढ़ता है।
नमाजों की अहमियत :
कुरान अपनी एक आयत मे कहा गया है  "वस्तअ-ईनू बिस्सबरे वस्स्लात"  जिसका अर्थ है ऐ ईमान वालों सब्र और नमाजों से काम लो।

साफ जाहिर है नमाज़ खालिस बन्दे की आसानी के लिए अल्लाह की नेमत है। 5 नमाजों की मिसाल ऐसी है, मानो आपके द्वार पर 5 पवित्र नहरे॥ दिन मे 5 बार आप उनमे स्नान कर के क्या अपवित्र रह सकते हैं? वैसे ही आप अपने मन को इन नहरों मे स्नान करवा दुनिया द्वारा दी गई कलिख और मैल को धो डालते हैं। 
अल्लाह का डर और उसकी मदद आप को कामयाब इन्सान बनाने में मदद देतें हैं।

पढे
 धर्म किसे कहते है।        
    खलीफा व खिलाफत किसे कहते है।
       नबी व रसूल किसे कहते है।
          मोहम्द साहब।
             इस्लाम



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