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06 April 2015

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म:
बौद्ध धर्म के स्थापक महात्मा बुद्ध शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे। वे 563 ईसा पूर्व तक रहे। उनके महापरिनिर्वाण के अगले 5 शताब्दियों में बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फेला और अगले दो हजार सालों में मध्य पूर्वी और दक्षिणी पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फेल गया।

आज बौद्ध धर्म में तीन सम्प्रदाया है:
1. हीनयान
2. महायान
3. वज्रयान
हीनयान बौद्ध धर्म का प्रमुख सम्प्रदाय है। बौद्ध धर्म को अडतीस करोड से अधिक लोग मानते है और यह दुनिया का चौथा सबसे बडा धर्म है।
दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करने वाला बोधिसत्व कहलाता है। बोधिसत्व जब दस बलो या भूमियों को प्राप्त कर लेते है तब ’’ बुद्ध ’’ कहलाते है।

दस बोधिसत्व:
1. मुदिता  2. विमला  3. दीप्ति  4. अर्चिष्मती  5. सुदुर्जया  6. दूरंगमा  7. अचल  8. साधुमती  10. धम्म-मेधा ।
बुद्ध बनना ही बोधिसत्व के जीवन की पराकाष्ठा है। इस पहचान को बोधि नाम दिया गया है। कहा जाता है कि बुद्ध शाक्यमुनि केवल एक बुद्ध है - उनके पहले बहुत सारे थे और भविष्य मंे और होगे। उनका कहना था कि कोई भी बुद्ध बन सजिा ीक् इबर वी दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करते हुए बोधिसत्व प्राप्त करे और बोधिसत्व के बाद दस बलों या भूमियों को प्राप्त करे। बौद्ध धर्म का अन्तिम लक्ष्य है सम्पूर्ण मानव समाज से दुःख का अंत।

गौतम बुद्ध:
गौतम बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ था वे शाक्य गोत्र के थे। उनका जन्म कपिलवस्तु ( षाक्य महाजनपद की राजधानी ) के पास लुंबिनी जो वर्तमान में दक्षिण मध्य नेपाल में है हुआ था। इसी स्थान पर तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मंे सम्राट अषोक ने बुद्ध की स्मृति में एक स्तम्भ बनाया था। सिद्धार्थ के पिता शाक्यों के राजा शुद्धोदन थे। परंपरागत कथा के अनुसार सिद्धार्थ की माता महामाया उनके जल्म के कुछ देर बाद मर गयी थी। कहा जाता है कि उनका नाम रखने के लिये 8 ऋषियों को आमन्त्रित किया गया था सभी ने 2 सम्भावनाये बताई थी 1. वे एक महान राज बनेगे  2. एक साधु या परिवाजक बनेगे। इस भविष्य वाणी को सुनकर राजा शुद्धोदान ने अपनी योग्यता की हद तक सिद्धार्थ को साधु न बनने देने की बहुत कोषिष की। शाक्यों का अपना एक संध था। बीस वर्ष की आयु होने पर हर शाक्य तरुण को शाक्यसंध में दीक्षित होकर संध का सदस्य बनना होता था। सिद्धार्थ गौतम जब बीस वर्ष के हुए तो उन्होने भी शाक्यसंध की सदस्यता ग्रहण की और शाक्यसंध के नियमानुसार सिद्धार्थ का सदस्य बने हुए आठ वर्ष व्यतीत हो चुके थे। वे संध के अत्यन्त समर्पित सदस्य थे। संध के मामलों में वे बहुत रुचि रखते थे। संध के सदस्य के रुप में उनका आचरण एक उदाहरण था और उन्होने स्वयं को सबका प्रिय बना लिया था। संध की सदस्यता के आठवे वर्ष में एक ऐसी धटना धटी जो शुद्धोदन के परिवार के लिये दुखद बन गयी और सिद्धार्थ के जीवन में संकटपूर्ण स्थिति पैदा हो गयी।

शाक्यों के राज्य की सीमा से सटा हुआ कोलियों का राज्य था। रोहणी नदी दोनो राज्यों की विभाजक रेखा थी। शाक्य और कोलि दोनो ही रोहिणी नदी के पानी से अपने अपने खेत सीचते थे। हर फसर पर उनका आपस में विवाद होता था कि कौन रोहिणी के जल का पहले और कितना उपयोग करेगा। ये विवाद कभी-कभी झगडे और लडाईयों में बदल जाते थे। जब सिद्धार्थ 28 वर्ष के थे रोहणी के पानी को लेकर शाक्य और कोलियों के नौकरों में झगडा हुआ जिसमें दोनो और के लोग धायल हुए। झगडे का पता चलने पर शाक्यों और कोलियों ने सोचा कि क्यों न इस विवाद को युद्ध द्वारा हमेशा के लिये हल कर लिया जाये। शाक्यों के सेनापति ने कोलियों के विरुद्ध युद्ध की धोषणा के प्रशन पर विचार करने के लिये शाक्यसंध का एक अधिवेशन बुलाया और संध के समक्ष युद्ध का प्रस्ताव रखा। सिद्धार्थ गौतम ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और कहा युद्ध किसी प्रशन का समाधान नहीं होता, युद्ध से किसी उदेशय की पूर्ति नहीं होगी, इससे एक दूसरे युद्ध का बीजारोपण होगा। सिद्धार्थ ने कहा मेरा प्रस्ताव है कि हम अपने में से दो आदमी चुने और कोलियों से भी दो आदमी चुनने को कहे। फिर ये चारों मिलकर एक पांचवा आदमी चुने। ये पांचो आदमी मिलकर झगडे का समाधान करे। सिद्धार्थ का प्रस्ताव बहुमत से अमान्य हो गया साथ ही शाक्य सेनापति का युद्ध का प्रस्ताव भारी बहुमत से पारित हो गया। शाक्यसंध और शाक्य सेनापति से विवाद न सुलझने पर अन्ततः सिद्धार्थ के पास तीन विकल्प आये। तीन विकल्पो में से उन्हे एक विकल्प चुनना था - 1. सेना में भर्ती होकर युद्ध में भाग लेना   2. अपने परिवार के लोगो का सामाजिक बहिष्कार और उनके खेतो की जब्ती के लिए राजी होना  3. फॉसी पर लटकना या देश निकाला स्वीकार करना।

उन्होने तीसरा विकल्प चुना और परिवाजनक बनकर देश छोडने के लिए राजी हो गए। परिवाजनक बनकर सर्वप्रथम सिद्धार्थ ने पॉच ब्राहा्रणों के साथ अपने प्रशनों के उत्तर ढूढंने शुरु किये। वे उचित ध्यान हासिल कर पाए परंतु उन्हे अपने प्रशनों  के उत्तर फिर भी नहीं मिल। उन्होने कुछ साथी लिए और चल दिये अधिक कठोर तपस्या करने। ऐसे करते करते 6 वर्ष बाद बिना अपने प्रशनों  के उत्तर पाये भूख के कारण मृत्यु के करीब से गुजरे वे फिर कुछ और करने के बारे में सोचने लगे। इस समय उन्हे अपने बचपन का एक पल याद आया जब उनके पिता खेत तैयार करना शुरु कर रहे थे। उस समय वे एक आनंद भरे ध्यान में पड गये थे और उन्हे ऐसा महसूस हुआ था कि समय स्थिर हो गया है।

कठोर तपस्या छोडकर उन्होने अष्टांगिक मार्ग ढूंढ निकाला जो बीच का मार्ग भी कहलाता है क्योंकि यह मार्ग दोनो तपस्या और असंयम की पराकाष्ठाओं के बची में है। अपने बदन में कुछ शाक्ति डालने के लिये उन्होने एक बकरी वाले से कुछ दूघ ले लिया। वे एक पीपल के पेड जो अब बोधि पेड कहलाता है के  नीचे बैठ गये प्रतिज्ञा करके कि वे सत्य जाने बिना उठेगे नहीं। 35 वर्ष की उम्र में उन्होने बोधि पाई और वे बुद्ध बन गये। उनका पहला धर्मोपदेश वाराणसी के पास सारनाथ में हुआ।

सिद्धांत:
प्रतीत्यसमुत्पाद  का सिद्धांत कहता है कि कोई भी धटना केवल दूसरी धटनाओं के कारण ही एक जटिल कारण परिणाम के जाल में विद्यमान होती है। प्राणियों के लिये इसका अर्थ है कर्म और कर्म के परिणाम के अनुसार अनंत संसार का चक्र। क्योंकि सब कुछ अनित्य और बिना आत्मा के होता है। कुछ भी सच में विद्यमान नहीं है। हर धटना मूलतः शुन्य होती है परन्तु मानव जिनके पास ज्ञान की शक्ति है तृष्णा को जो दुःख का कारण है त्यागकर तृष्ण में नष्ट की हुई शक्ति को ज्ञान और ध्यान में बदलकर निर्वाण पा सकते है।
चार आर्य सत्य:
1. दुःख:  इस दुनिया में दुःख है। जन्म में, बुढे होन में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, नापसंद चीजों के साथ में, चाहत को न पाने में, सब में दुःख है।
2. दुःख कारण: तृष्णा, चाहत दुःख का कारण है और फिर से सषरीर करके संसार को जारी रखती है।
3. दुःख निरोध: तृष्ण से मुक्ति पाई जा सकती है।
4. दुःख निरोध मार्ग: तृष्ण से मुक्ति अष्टांगिक मार्ग के अनुसार जीने से पाई जा सकती है।

बुद्ध का पहला धर्मोपदेष जो उन्होने अपने साथ के कुछ साधुओं को दिया था इन चार आर्य सत्यों के बारे में था।
आर्य अष्टांग मार्ग:
1. सम्यक दृष्टि चार आर्य सत्य में विष्वास करना
2. सम्यक संकल्प मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
3. सम्यक वाक हानिकारक बातें और झूठ न बोलना
4. सम्यक कर्म हानिकारक कर्म न करना
5. सम्यक जीविका कोई भी स्पष्टतः या अस्पष्टतः हानिकारक व्यापार न करना
6. सम्यक प्रयास अपने आप सुधरने की कोशिश करना
7. सम्यक स्मृति स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना
8. सम्यक समाधि निर्वाण पाना और स्वयं का गायब होना

कुछ लोग आर्य अष्टांग मार्ग को पंथ की तरह समझते है, जिसमें आगे बढने के लिए, पिछले स्तर को पाना आवशयक है और लोगो को लगता है कि इस मार्ग के स्तर सब साथ-साथ पाये जाते है। मार्ग को तीन हिस्सों में वर्गीकृत किया जाता है:  1. प्रज्ञा  2. शील  3. समाधि ।

बोधि:
गौतम बुद्ध से पाई गई ज्ञानता को बोधि कहते है। ऐसा माना जाता है कि बोधि पाने के बाद ही संसार से छुटकारा पाया जा सकता है। सारी पूर्णताओं की निष्पतित्त, चार आर्य सत्यों की पूरी समझ और कर्म के निरोध से ही बोधि पाई जा सकती है इस समय लोभ, दोष, मोह, अविद्या, तृष्णा और आत्मा में विशवास सब गायब हो जाते है।

बोधि के तीन स्तर होते है: 1. श्रावकबोधि  2. प्रत्येकबोधि  3. सम्यकसंबोधि।  सम्यकसंबोधि बौध धर्म की सबसे उन्नत आदर्ष मानी जाती है।


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