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21 June 2016

पुलिस क्या है और आपके कानूनी अधिकार क्या है

पुलिस कौन है ?
  
पुलिस एक ऐसे व्यक्तियों का समूह है जिनका चयन और प्रशिक्षण कानून और व्यवस्था तथा जनता की सुरक्षा और सेवा के लिए किया जाता है ।

पुलिस के काम क्या है -

कानून और व्यवस्था बनाए रखना,  अपराध का निवारण करना,   अपराध की जांच करना,  संज्ञेय अपराध करने वाले अभियुक्त की गिरफ्तारी करना, किसी व्यक्ति के जान माल  औऱ  आजादी की सुरक्षा करना,   किसी सक्षम अधिकारी द्वारा जारी किए गए हर कानूनी आदेश और वारंट को निष्पादित करना।

पुलिस का प्रशासनिक ढांचा

एस.एच.ओ -  पुलिस थाने का इंचार्ज होता है ।

डी.एस.पी - सब डिविजन का पुलिस अधिकारी होता है जबकि मेट्रोपोलिटन शहरों में असिस्टेंट कमिश्नर कहा जाता है , एसएचओ के काम की देखरेख करता है।

एस.पी -  एक जिले की कानून और व्यवस्था में डीएम की मदद करता है

एस.एस.पी - एक जिले के पुलिस प्रशासन का इंचार्ज होता है , जो जिला मजिस्ट्रेट के मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण में काम करता है, जबकि मेट्रोपोलिटन शहरों में डिप्टी कमिश्नर इंचार्ज होता है, इसकी मदद असिस्टेंट कमिश्नर करता है ।

डी.आई.जी.पी - एक राज्य के तीन चार जिलों का इंचार्ज होता है ।

आई.जी.पी. या डी.जी.पी. -  राज्य स्तर के पुलिस प्रशासन का इंचार्ज होता है।

संघ शासित पुलिस प्रशासन

संघ शासित क्षेत्र में पुलिस प्रणाली की देखरेख केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी द्वारा किया जाता है । ये अधिकारी आई.जी.पी के सारे अधिकारों का इस्तेमाल कर सकता है ।

प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आऱ.)

पुलिस थाने या चौकी में दर्ज की  गयी ऐसी पहली अपराध की रिपोर्ट को प्रथम सूचना रिपोर्ट या एफ.आई.आर. कहा जाता है।

हर व्यक्ति अपने तरीके से अपराध के उस समय ज्ञात ब्योरे देते हुए रिपोर्ट लिखवा सकता है । पुलिस इस एफ.आई.आऱ को अपने रिकॉर्ड जिसे रोजनामचा कहा जाता है में दर्ज कर लेगी और पावती के रुप में एक प्रति रिपोर्ट दर्ज कराने वाले को देगी जिसकी कोई फीस नहीं होती है। 

पुलिस सभी प्रकार के अपराधों की रिपोर्ट दर्ज करती है  - 

संज्ञेय अपराधों (Cognizable offense) - के मामलों में ही पुलिस स्वयं जांच पड़ताल कर सकती है ।

असंज्ञेय अपराधों (Non-cognizable offenses) - के मामलों में पुलिस पहले मामले को मजिस्ट्रेट को पेश करती है और उससे आदेश प्राप्त होने के बाद ही वह जांच-पड़ताल शुरु कर सकती है । 

अगर थाने में मौजूद पुलिस कर्मचारी/अधिकारी रिपोर्ट लिखने से मना कर दे तो  -

शिकायतकर्ता उस क्षेत्र के  पुलिस अधीक्षक  या  उप पुलिस अधीक्षक को मिल कर शिकायत कर सकता है  या  डाक से रिपोर्ट भेज सकता है । अगर फिर भी कोई सुनवाई नहीं होती है तो न्यायालय में  धारा 156(3) के तहत इस्तगासा पेश कर रिपोर्ट लिखवाई जा सकती है।

अगर रिपोर्ट लिखवाने वाला/वाली अनपढ़ हो तो ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारी उसके बताए विवरण के मुताबिक उसकी ओर से रिपोर्ट लिखेगा और उसे पढ़कर सुनाएगा।  ऐसी एफ.आई.आर. को सुनकर शिकायतकर्ता करने वाला/वाली रिपोर्ट पर अपने अंगूठे का निशान लगा सकता/सकती है। 
अगर शिकायतकर्ता को लगता है कि रिपोर्ट में तथ्य ठीक नहीं लिखे गये हैं तो वह रिपोर्ट लिखने वाले पुलिस अधिकारी से आवश्यक संशोधन करने को कह संशोधन करवा लेना चाहिए ।

एफ.आई.आर. में निम्नलिखित विषय होने चाहिए -
 
अभियुक्त का नाम और पता,  अपराध होने की तारीख ,  स्थान , समय , अपराध करने का तरीका , उसके पीछे नीयत , साक्षी का परिचय हो अपराध से सम्बद्ध सभी विशेषताएं लिखनी चाहिए।

गिरफ्तारी के कानून

पुलिस किसी भी व्यक्ति पर अपराध का आरोप होने पर ही उसे गिरफ्तार कर सकती है । केवल शिकायत अथवा शक के आधार पर किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है । 

पुलिस अगर बगैर वजह किसी को अपनी हिरासत में रखे तो क्या करे -

अकसर कई बार देखा गया है की  पुलिस कई दिनों तक बगैर किसी आधार के आरोपित व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को या उसके शुभचिंतक को थाने में बैठा लेती है। 
उनको चाहिए की बगैर डर के एेसे कर्मियों के खिलाफ उच्चाधिकारीयों को शिकायत करे नहीं सुनवाई होने पर न्यायालय में इस्तासे द्वारा शिकायत करे। 

गिरफ्तारी के संबध में उच्चतम न्यायालय के निर्देश

गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी औऱ हिरासत में लिए जाने की सूचना अपने मित्र, संबंधी या किसी अन्य व्यक्ति को देने का पूर्ण अधिकार है।गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर थाने ले जाते समय उसे सूचना देने के अधिकार की अवश्य जानकारी देनी चाहिए जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति ने अपनी गिरफ्तारी की जानकारी दी है , उसका नाम पुलिस डायरी में दर्ज किया जाना चाहिए।
अन्यथा  उस पुलिस अधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की करने का अधिकार प्राप्त है।

बिना वारंट के गिरफ्तारी
  • अभियुक्त पर संज्ञेय अभियोग हो या उसके खिलाफ ठोस शिकायत की गयी या 
  • ठोस जानकारी मिली हो या अपराध में उसके शामिल होने का ठोस शक हो 
  • अभियुक्त के पास सेंध लगाने का कोई औजार पकड़ा जाए और वह ऐसे औजार के अपने पास होने का समुचित कारण नहीं बता सके  
  • अभियुक्त के पास ऐसा सामान हो जिसे चोरी का समझा जाने के कारण हो अथवा जिस व्यक्ति पर चोरी करने या चोरी के माल खरीद-फरोख्त करने का शक करना वाजिब लगे।
  • अभियुक्त घोषित अपराधी हो ,
  • अभियुक्त किसी पुलिस अधिकारी के कर्तव्य पालन में बाधा पहुंचाए,
  • अभियुक्त पुलिस/कानूनी हिरासत से फरार हो जाए,
  • अभियुक्त के खिलाफ पक्का संदेह हो कि वह सेना का भगोड़ा है,
  • अभियुक्त छोड़ा गया अपराधी हो, लेकिन उसने फिर कानून तोड़ा हो,
  • अभियुक्त संदेहास्पद चाल-चलन का हो या आदतन अपराध करने वाला हो,
  • अभियुक्त पर असंज्ञेय अभियोग हो और वह अपना नाम-पता नहीं बता रहा हो।

गिरफ्तारी के समय
  • व्यक्ति को किसी भी मामले में गिरफ्तार करने के दौरान उसका अपराध तथा गिरफ्तारी का आधार बताया जाना चाहिए। 
  • उसे यह भी बताया जाना चाहिए कि उस अभियोग पर उसे जमानत पर छोड़ा जा सकता है या नहीं 
  • गिरफ्तारी के समय व्यक्ति पुलिस से वकील की मदद लेने की इजाजत मांग सकता है । 
  • उसके मित्र, संबंधी भी उसके साथ थाने तक जा सकते हैं। अगर व्यक्ति गिरफ्तारी का प्रतिरोध नहीं कर रहा हो तो गिरफ्तारी के समय पुलिस उससे दुर्व्यवहार नहीं कर सकती है,  ना ही मारपीट कर सकती है ।
  • गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को हथकड़ी नहीं पहनाई जा सकती है, जब तक कोर्ट आदेश न करे ।
  • अगर किसी महिला को गिरफ्तार किया जाना है , तो पुलिस का सिपाही उसे छू तक नहीं सकता है
  • गिरफ्तारी के तुरंत बाद व्यक्ति को थाने के प्रभारी अथवा मजिस्ट्रेट के पास लाया जाना है।
  • किसी भी स्थिति में , गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। ( इसमें गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के पास लाए जाने का समय शामिल नहीं है) किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना, 24 घंटे से ज्यादा समय तक पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता है।
  • गिरफ्तार व्यक्ति डॉक्टर द्वारा अपने शरीर की चिकित्सा परीक्षण की मांग कर सकता है ।

पुलिस हिरासत के कानून
  • अगर कोई पुलिसकर्मी हिरासत में किसी व्यक्ति को सताता है या यातना देता है तो उस व्यक्ति को पुलिसकर्मी की पहचान कर उसके खिलाफ आपराधिक आरोप दर्ज करवाना चाहिए।
  • अगर हिरासत मे महिला के साथ बलात्कार तथा यौन संबंधी अन्य दुर्व्यवहार होता है तो उसे तुरंत डॉक्टरी जांच की मांग करनी चाहिए तथा मजिस्ट्रेट से शिकायत करनी चाहिए।
  • किसी महिला को केवल महिलाओं वाले लॉक अप में रखा जाना चाहिए। अगर किसी थाने में ऐसी व्यवस्था नहीं है तो हिरासत में ली गयी महिला को मांग करनी चाहिए कि उसे ऐसे थाने में भेजा जाए जहां महिलाओं के लिए लॉक अप हो।

पुलिस की जांच

अपराध की जांच के दौरान पुलिस आपसे पूछताछ करे तो आपको अपनी जानकारी की बातें सही-सही बताते हुए पुलिस के साथ सहयोग करना चाहिए। संभव हो तो आपको अपराध का सुराग भी पुलिस को देना चाहिए और जुबानी पूछताछ का उचित जवाब देना चाहिए। आपके लिए न तो किसी लिखित बयान (धारा 161 के तहत) पर दस्तखत करना जरुरी है, न ही आपको वे सब बातें लिखकर देनी होती हैं जो आपने जुबानी बताई हैं । 

पुलिस पूछताछ के दौरान क्या करना चाहिए
  • अभियुक्त को पूछताछ के दौरान पुलिस से सहयोग करना चाहिए।
  • अभियुक्त को सावधान भी रहना चाहिए कि पुलिस उसे झूठे मामले में न फंसाए। 
  • अभियुक्त को किसी कागज पर बिना पढ़े अथवा उसमें लिखी बातों से सहमत हुए बिना हस्ताक्षर नहीं करने चाहिए।
  • किसी महिला और 15 साल से छोटे पुरुष को पूछताछ के लिए घर से बाहर नहीं ले जाया जा सकता है । उनसे घर पर ही पूछताछ की जा सकती है । 
  • व्यक्ति मजिस्ट्रेट से अनुरोध कर सकता है कि उससे पूछताछ का उचित वक्त दिया जाए।
  • पूछताछ के दौरान व्यक्ति ऐसे किसी सवाल का जवाब देने से मना कर सकता है , जिससे उसे लगे कि उसके खिलाफ आपराधिक मामला बनाया जा सकता है ।
  • व्यक्ति पूछताछ के दौरान कानूनी या अपने किसी मित्र की सहायता की मांग कर सकता है ।

तलाशी के लिए वारंट

अदालत या मजिस्ट्रेट के तलाशी वारंट के बिना पुलिस किसी के घर की तलाशी नहीं ले सकती है। 
आमतौर पर चोरी के सामान,  फर्जी दस्तावेज,  जाली मुहर,  जाली करेंसी , अश्लील सामग्री, मादक पदार्थ तथा  साहित्य की बरामदगी के लिए तलाशी ली जाती है । 
पुलिस अधिकारी को तलाशी के स्थान पर मौजूद संदिग्ध व्यक्तियों और वस्तुओं की तलाशी  ली जानी चाहिए। 
तलाशी और माल की बरामदगी इलाके के दो निष्पक्ष तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियों की उपस्थिति में की जानी चाहिए (कई बार पुलिस निष्पक्ष गवाह न मिलने का बहाना बना कर खुद ही गवाह बन जाती है जो बिल्कुल गलत है)।  पुलिस को जब्त सामान की ब्योरा देते हुए पंचनामा तैयार करना चाहिए।  
इस पर  दो स्वतंत्र गवाहों  के भी हस्ताक्षर होने चाहिए स्वतंत्र गवाह पुलिस कर्मचारी नहीं होना चाहिए।  इसकी एक प्रति उस व्यक्ति को भी दी जानी चाहिए  जिसके घर/इमारत  की तलाशी ली गयी हो (जो पुलिस अकसर नहीं देती है)।  
तलाशी लेने वाले अधिकारी की भी , तलाशी शुरु करने से पहले,  जरुर लेनी चाहिए। 
कोई पुरुष किसी महिला की शारीरिक तलाशी नहीं ले सकता है, लेकिन वह महिला के घऱ या कारोबार के स्थान की तलाशी ले सकता है ।

परिवाद क्या है ?

किन्ही व्यक्ति या व्यक्तियों (जानकार या अनजान) के विरुद्ध मौखिक या लिखित रुप में मजिस्ट्रेट को किया गया आरोप है ताकि मजिस्ट्रेट उनके विरुद्ध  विधिक कार्यवाही कर सकें। जब पुलिस अधिकारी एफ.आई.आर. के आधार पर कार्यवाही नहीं करता है,  तब व्यथित व्यक्ति उस मजिस्ट्रेट को परिवाद कर सकता है , जिसे उस अपराध पर संज्ञान लेने की अधिकारिता है ।

वारंट क्या है ?

वारंट न्यायालय द्वारा जारी किया गया तथा न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित एक लिखित आदेश है। हर वारंट तब तक लागू रहेगा जब तक वह उसे जारी करने वाले न्यायालय द्वारा रद्द नहीं कर दिया जाता या जब तक वह निष्पादित नहीं कर दिया जाता है ।

जमानती वारंट क्या है?

जमानती वारंट न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए जारी किया गया वारंट है, जिसमें यह पृष्ठांकित है कि जमानत की शर्तें पूरी करने के बाद उसे जमानत दी जा सकती है । इस मामले में पुलिस जमानत देने की हकदार है , अगर गिरफ्तार व्यक्ति शर्तें पूरी करे।

गैर-जमानती वारंट क्या है ?

गैर-जमानती वारंट किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए न्यायालय द्वारा जारी वारंट है । इस मामले में पुलिस अधिकारी जमानत देने के लिए प्राधिकृत नहीं है । जमानत प्राप्त करने के लिए गिरफ्तार व्यक्ति को सम्बद्ध न्यायालय में आवेदन करना होगा।

न्यायालय का समन

समन न्यायालय द्वारा जारी लिखित आदेश है । जिसके द्वारा न्यायालय किसी विवाद या आरोप से संबद्ध प्रश्नों का उत्तर देने के लिए किसी व्यक्ति को न्यायालय में उपस्थिति होने के लिए बाध्य कर सकता है ।अगर व्यक्ति समन स्वीकार करने से मना करे या न्यायालय के समक्ष अनुपस्थित हो तो न्यायालय गिरफ्तारी का वारंट जारी कर सकता है ।


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