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18 February 2017

केन्द्रीय सूचना आयोग का आदेश - विचार रोके नहीं जा सकते !

नाथूराम गोडसे के कोर्ट में दिए गए बयान सार्वजनकि हो - यह आदेश केन्द्रीय सूचना आयोग के सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने आर.टी.आई याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
राष्टीय अभिलखागार भारत  " National Archives of India आवेदक को गांधी मर्डर केस की चार्जशीट आैर गोडसे के बयानों की प्रमाणित प्रति 20 दिनों में देने को कहा है।

श्रीधर ने कहा कोई गोडसे आैर सह-आरोपी से इत्तेफाक भले न रखे, लेकिन हम उनके विचार रोक नहीं सकते।

नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी, 1948 को गांधी की हत्या कर दी थी। गांधी की हत्या के पश्चात गोडसे ने आत्मसमर्पण कर कहा की - गांधी की हत्या नहीं वध किया है। न्यायालय में इसे हत्या नहीं वध करार देते हुए अपने पक्ष को न्यायालय के सामने रखा।
नाथूराम गोडसे  ने सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखने के दौरान न्यायालय से कहा की वे अपने बयानों को न्यायालय में पढकर सुनाना चाहते है, जिसकी मंजूरी न्यायालय ने दी। 
न्यायालय में काफी भीड थी न्यायालय कक्ष में एंव बाहर आमजन का भारी समूह मौजुद था इसलिए न्यायालय के आदेश से माइक की व्यवस्था करवाई गई थी।   मैने गांधी को क्यों मारा ? से बयान की शुरुवात की, इसके बाद नाथूराम गोडसे ने गांधी के वध करने के 150 बिन्दू  बतलाए।


 नाथूराम गोडसे के यह अंतिम बयान -  इसे सुनकर अदालत में उपस्थित सभी लोगो की आँखे गीली हो गई थी और कई तो रोने लगे थे  जज महोदय ने अपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्तित लोगो को जूरी बना जाता और उनसे फेसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमत से नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते |
नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा – सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमे अहिंसा के सिधांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है | में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का शसस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है | प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो एअसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना , में एक धार्मिक और नेतिक कर्तव्य मानता हु | मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे | या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये | वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे .महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे |
गाँधी ने मुस्लिमो को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सोंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया | गाँधी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी | उसीने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया |
मुस्लिम तुस्टीकरण की निति के कारन भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देशका एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई |  इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई स्वंत्रता कहते है किसका बलिदान ? 
जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया | में साहस पूर्वक कहता हु की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गय उन्होंने स्वय को पकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया |
में कहता हु की मेरी गोलिया एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नित्तियो और कार्यो से करोडो हिन्दुओ को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला ऐसे कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके इस्सलिये मेने इस घातक रस्ते का अनुसरण किया | में अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मेने किया उस पर मुझे गर्व है | मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्या कन करेंगे |
यह वाक्य कौन कह सकता है
नाथूराम गोडसे को व उनके सह-अभियुक्त नारायण आप्टे को पंजाब की अम्बाला जेल में फांसी पर लटकने से पहले उन्होने अन्तिम शब्दों में कहा था - इन अंतिम वाक्य से आप ही फैसला करे की क्या नाथूराम जी देशभक्त थे या कातिल ?
  • मेरी अस्थियां तब तक नहीं प्रवाहित करना जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के तले न बहने लगे ! 
  • यदि अपने देश के प्रति भक्तिभाव रखना कोई पाप है तो मैने वह पाप किया है आैर यदि यह पुण्य है तो उसके द्वारा अर्जित पुण्य पद पर मै अपना नम्र अधिकार व्यक्त करता हूं !


यदि 30 जनवरी का गांधी का वध रुक जाता तो 3फरवरी 1948 को देश का एक आैर विभाजन होना पक्का था। जिसका स्वरुप इस प्रकार था -

लेकिन कांग्रेस सरकार ने डर से नाथूराम गोडसे के गांधी वध के कारणों पर एंव उनके भाई गोपाल गोडसे की किताब " गांधी वध क्यों " प्रतिबंध लगा दिया जिससे उनके द्वारा दिए गये बयान जनता तक किसी भी कीमत में न पहुच पाये। 

पढे - कांग्रेस ( नेहरु s/o मोतीलाल ) ने कशमीर में धारा 370 क्यों लगाई एंव पाकिस्तान  बनने पर स्वीकृति क्यों जाहिर की ?  
आपकी समझ में सब कुछ आ जाएगा।।

यदि न्यायालय में दिये गये बयान जनता तक पहुच जाते तो नाथूराम जी गोडसे देश के हीरों बन जाते।

वैसे भी मेरा मानना है की जिसका प्रचार-प्रसार होता है वे ही आजकल देश भक्त होते है।।







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