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28 October 2016

देश को सही रास्ते पर चलाने के लिए - क्या आपतकाल गलत था या सही ?

25 जून 1975  की तपती गर्मी के दौरान अचानक भारतीय राजनीति में भी बेचैनी दिखी।

जय प्रकारश नारायण ने 1971 में रायबरेली में इंदिरा गांधी के हाथों हारने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मामला दाखिल कराया था -  जिसमें 14 आरोप लगाये गये
इस मामले में  सुनवाई कर रहे जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने 2 जून 1975  को इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया और उन पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया -  लेकिन इंदिरा गांधी ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की।

सर्वोच्च न्यायालय ने -
24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी।

25 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के इस्तीफा देने तक देश भर में रोज प्रदर्शन करने का आह्वाहन किया।

और भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर  तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन 25 जून 1975 को राष्ट्रपति के अध्यादेश पास करने के बाद सरकार ने  26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी।

आपातकाल क्यों लगा ? 

  • क्या इसलिए कि जे.पी. ने सेना-पुलिस तक से सरकार का आदेश न मानने के लिए उकसाया जा रहा था ?
  • क्या आम आदमी को सरकार के विरुद्ध उकसाया जा रहा था ?
इन दोनो बिन्दुआें से स्पष्ट है कि बगावत का अंदेशा था ?

इमरजेंसी के बहुत बाद एक इंटरव्यू में इंदिरा ने कहा था कि उन्हें लगता था कि भारत को शॉक ट्रीटमेंट की जरूरत है।  लेकिन, इस शॉक ट्रीटमेंट की योजना 25 जून की रैली से छह महीने पहले ही बन चुकी थी। 

8 जनवरी 1975 को सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा को एक चिट्ठी में आपातकाल की पूरी योजना भेजी थी। चिट्ठी के मुताबिक ये योजना तत्कालीन कानून मंत्री एच आर गोखले, कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ और बांबे कांग्रेस के अध्यक्ष रजनी पटेल के साथ उनकी बैठक में बनी थी।  
                      
आपतकाल से जनता को जो फायदे  हुए -

  • आपातकाल में सभी सरकारी दफ्तर 9.30 सुबह ही खुल जाया करते थे, आैर कर्मचारी शाम तक अपना काम पूरा करके ही धर जाया करते थे। कोई भी संगठन हडताल नहीं कर सकते थे।    
आज क्यों नहीं कर्मचारी काम कर रहे है ? जरा-जरा सी बात पर हडताल कर देशवासियों के करोडों रुपये को फुंक देते है, आम जनता को हैरान परेशान कर देते है।   क्या यह सहीं है ?
  • अधिकारी जनता के काम प्राथमिकता से करते थे ।   
आज क्यों नहीं अधिकारी जनता के काम को प्राथमिकता दे रहे है ?
  • रेल सही समय पर चलने लग गई थी 1 मिनट भी लेट नहीं हो रही थी।    
आज लगभग सारी रेलगाडियां अपने स्थान पर लेट पहुच रही है क्यों ?
  • सफाई ढग से होने लग गई थी।    
आज हर जगह कूडा रहता है सफाई कही नजर नहीं आती क्यो ?
  • दवा-इलाज समय पर मिलता था ।   
आज बगैर फीस के कोई सरकारी डाक्टर मरीज को देखता नही । दवाईया वह लिखता है जो कम्पनी उसे अच्छा कमीशन दे।
  • हिन्दुस्तान की सबसे बडी बीमारी  रिश्वतखोरी बिलकुल बंद हो गयी थी ।  
आज बगैर रिश्वत या जानपहचान के कार्य होना अंसभव हो गया है।

  • जमा खोरी बंद हो गई जिससे मंहगाई पर काफी हद तक काबू आ गया ।
आज चाहे होलसेल व्यपारी हो या खुदरा व्यापारी हो भाव मनमर्जी के होते है जमाखोरी का नतीजा दाले एंव अन्य खाने पीने की वस्तुए मंहगी हो गई है। 

देश को चलाने वाले भष्टों का कहना है कि -   पूंजीवादी  अर्थ व्यवस्था के  लिए भष्ट आचरण आैर भ्रष्टाचार एक अनिवार्य आवशयकता है।।
  • छुटभैयों नेताओं की गन्दी आैर आेछी राजनीति बिलकुल बंद हो गयी । 
आज गली कुचे के छुटभैयों नेताओं ने लोगों का जीना हराम कर दिया है  
  • आम जनता के लिए शान्ति से जीना आसान हो गया था , क्योंकि 
अराजक व अपराधी तत्व "मीसा" व "डी आई आर" जैसे कठोर क़ानून के अंतर्गत जेल में बंद कर दिए गए थे ।
  • मीडिया पर सख्ती कर दी।    
आज का हर हिन्दुस्तानी जानता है कि मीडिया Paid हो गई है। झूठी खबरों का अंबवार लगा रखा है।

"मीसा" क्या है -
आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (Maintenance of Internal Security Act (MISA)) सन १९७१ में भारतीय संसद द्वारा पारित एक विवादास्पद कानून था। इसमें कानून व्यवस्था बनाये रखने वाली संस्थाओं को बहुत अधिक अधिकार दे दिये गये थे। आपातकाल के दौरान (1975-1977) इसमें कई संशोधन हुए और बहुत से राजनीतिक बन्दियों पर इसे लगाया गया। अन्ततः १९७७ में इंदिरा गांधी की पराजय के बाद आयी जनता पार्टी की सरकार द्वारा इसे समाप्त किया गया।

कुछ बाते   -   Paid Media  (बिक रहे है पत्रकार )   -   
आज तो पत्रकारों को अपने कार्यालय से केवल परिचय पत्र ही मिले तो वे उसमें भी राजी है।  कमा तो वे खुद लेगें।  सारी सरकारें इनकों खरीदने में जुटी है।  जमीने , टेलीफोन , पत्रकार कल्याण , कोष , यात्रा , ठहरने के मुफत रास्ते शुरू कर दिए। ये जितने रास्ते सरकारे पैदा कर रही है उसमें  निजी स्तर पर प्राय:पत्रकार बकि जाता है।   एेसे पत्रकार का व्यवहार स्वत: सरकार की तरफ झुक जाता है।  वही सरकार मालकि से कोई पैकेज अथवा कोई "सहमति" कर ले तो एेसे में तो पत्रकार को मानो खुली छूट ही मिल जाती है। फिर वह सरकार की चार गुणा वाहवाही करता है।
प्रेस क्लबों को ही देख ले किस तरह की गतिविधयां चल रहीं है। लेनेदेन के मामले होते है। सम्भवत यही एक एेसा क्लब होगा जहां सदस्य अपने परिवार को ले जाना पसंद नहीं करता।
सरकारों के पास काला धन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, उसको खरीदने में जोर ही नहीं लता।
इन पत्रकारों में इतनी हैसियत नहीं कि करोड दो करोड जैसी बडी रकम पचा सके। सस्ते में ही निपटने को तैयार बैठे है।

।। कठोर आैर प्रभावी कानून व्यवस्था का होना अति-आवश्यक  है ।।
जब तक कठोर कानून का भय नहीं होगा तब तक देश उन्नति नहीं कर सकता।।

आपातकाल के दौरान 26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक हिन्दुस्तान को सुधारने के लिए यह बहुत ही जरुरी था परन्तु  इसे  " लोकतंत्र होगा या तानाशाही "  जैसे शब्द कह कर स्वार्थी लोगों ने जनता को गुमराह कर दिया -  क्योंकि उनकी  मक्कारी , भ्रष्ट आदते , आैछी राजनीति , गुण्डागर्दी , सब खत्म हो गई थी।

आज फिर से देश को  शॉक ट्रीटमेंट की आवश्यकता है। हो सकता है की कईयाें को यह बात बहुत ही बुरी लगे , यदि आप वास्तव में देशभक्त है तो आज देश को एक बार फिर से शॉक ट्रीटमेंट की बहुत ही ज्यादा आवश्यकता है।।
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