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03 April 2016

AK 47

AK 47
AK 47 दुनिया की सबसे पहली और शायद सबसे अच्छी अस्सौल्ट राइफल मानी जाती है। इसका विकास सोवियत संघ के मिखाइल कलाशनिकोव ने किया था। 

डिजाइनिंग का इतिहास
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मन सेना ने कल्पना विकसित की उन्होंने देखा की ज्यादातर मुठभेडे ३०० मीटर के दायरे के भीतर ही होती है, जबकि उस जमाने में जो राइफले और कारतूस मिलते थे उनकी शक्ति इतनी कम दूरी की लड़ाई के हिसाब से ज्यादा होती थी।
इस लिए सेना ने इस प्रकार की राइफल और कारतूस की मांग की जिसमे सब मशीन के गुण " बड़ी मैगजीन और कई मोड़ पे गोली चलाने की सुविधा हो " भी हो और ३०० मीटर के दायरे में काम करती हो। इसके परिणाम स्वरुप जर्मन सेना की एस टी जी 44 राइफल सामने आयी हालांकि ये इस प्रकार की पहली राइफल नही थी। इटली की सेना भी सेई-रिगोटी और सोवियत सेना की फेदारोव एव्तामोट राइफल भी इसी श्रेणी की थी। लेकिन जर्मन सेना ने ये राइफले बड़े पैमाने पर प्रयोग की थी, जिस से उन्हें इनका मूल्यांकन करने का मौका मिल गया। सोवियत सेना भी जर्मन सेना के सिद्धान्तो और दर्शन से प्रभावित हुई और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इनका पालन शुरू कर दिया।

मिखाइल क्लाशिनिकोव ने अपना हथियार डिजाइनर का कैरियर हास्पिटल में जख्मी मरीज के रूप मे भर्ती होने के बाद शुरू किया था। उनके द्वारा विकसित किए गए पहले कार्बाइन डिजाइन को अस्वीकार कर दिया गया लेकिन उन्होंने १९४५ में हुए असाल्ट राइफल डिजाइन प्रतियोगिता में भाग लिया। उनका माडल ३० गोलियो वाला गैस बेस डिजाइन था। इसे ए.के १ और ए.के २ का कोड नाम दिया गया था। 1946 में उनके एक सहायक अलेक्जेंडर जाय्स्तेव ने इसमे कई सुधर सुझाए जो उन्होंने आनाकानी के बाद मान लिए। अंत में उनके 1947 माडल में सादगी, भरोसेमंदी और हर हाल में काम करने की विशेषता थी, 1949 में उनके इस माडल को सोवियत सेना ने 7.62 कलाश्निकोव राइफल के रूप में स्वीकार कर लिया।

नया प्रतिरूप
कलाश्निकोव राइफल की खासियते ये रही है सरल डिजाइन, काफी छोटा साइज तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन करने में आसानी, मिखाइल कलाश्निकोव ने इस बात से हमेशा इनकार किया है की उनकी राइफल जर्मन एस.टी.जी 44 की नक़ल है, हालांकि सारे सबूत उनके ख़िलाफ़ है,  इस राइफल को पहले की समस्त राइफल तकनीको का मिश्रण मान सकते है, 
*  इसके लोकिंग डिजाइन को एम 1 ग्रांड राइफल से लिया गया है, 
* इसका ट्रिगर और सेफ्टी लोक रेमिंगटन राइफल माडल 8 से लिया गया। 
* गैस सिस्टम और बाहरी डिजाइन एस.टी.जी.44 से लिया गया है।

कलाश्निकोव की टीम की पहुँच इन सभी हथियारों तक थी और इस प्रकार उसे पहिये का पुन आविष्कार करने की जरूरत नही थी, ख़ुद उन्होने माना था कि किसी चीज का आविष्कार करने से पहले उस क्षेत्र में मौजूद हर चीज का अध्यन कर लेना चाहिए और मैंने ख़ुद इस चीज को अनुभव किया है।

फीचर
इस राइफ़ल की खासयित है इसका सरल डिजाइन, छोटा आकार और बहुत कम लागत में बड़ी संख्या में निर्माण करने की सुविधा, इसकी कठोरता और भरोसे-मंदी मिथक बन चुकी है, इसे आर्कटिक जैसी सर्दी पड़ने वाले इलाके को ध्यान में रखकर बनाया गया था इसमे बहुत ज्यादा कचरा फसने के बाद भी ये काम कर सकती है। 
सोवियत सेना इसे समूह में प्रयोग करने वाला हथियार मानती थी, इस का सामान्य जीवन काल २० से ४० साल माना जाता है जो इसके रख-रखाव पर निर्भर करता है, कुछ एके ४७ के साथ संगीन भी लगा के दी जाती है।

इस राइफल में निशाने लेने में आसानी हेतु एक लोहे का गेज पीछे की तरफ लगा होता है, राइफल के अगले सिरे पर भी निशाना लगाने में सुहलियत देने के लिए गेज लगा होता है, इनको समायोजित करने के उपरांत प्रयोगकर्ता २५० मीटर तक निशाना आसानी से लगा सकता है इसके अंदरूनी भागो जैसे गैस चेम्बर, बोर आदी पर क्रोमियम की प्लेटिंग की जाती है जिस से इस राइफल की जिन्दगी बढ़ जाती है और इसमे जंग नही लगता है।

आपरेटिंग 
इस राइफल को सेमी आटोमेटिक और आटोमेटिक दोनों तरीको से चलाया जा सकता है, इस गैस आप्रेताद राइफल में रीकोइल तकनीक से पुराने कारतूस गिरते जाते है और इसके झटके से नए कारतूस आ जाते है।

कारतूस
इस राइफल में 7.62*39 मिलीमीटर के कारतूस आते है जो 710 मीटर प्रति स्कैन्ड की गति से जाते है ये अधिकतम ४०० मीटर की दूरी पर जाते है।

* निर्माता  -इज़्माश
* वजन     4.3 kg (9.5 lb) रिक्त मैगज़ीन सहित
* लंबाई 870 mm (34.3 in) लकड़ी के पुट्ठे सहित
* Barrel length  415 मिमी (16.3 इंच)
* Cartridge 7.62x39mm M43
* दूरी जहाँ तक अस्त्र मार कर सके 100–800 sight adjustments m
* फ़ीड करने के लिए प्रणाली  30-round detachable box
* मैगज़ीन, also compatible with 40-round box or 75-round drum 


AK47 is not open for public to purchase.





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