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21 December 2015

तीन ग्रह नहीं है आधुनिक वैज्ञानिकों की खोज, सर्वप्रथम वेद व्यास ने पहचाना था इन्हें !

आपको ये पता होगा कि प्राचीनतम काल में योगी-महर्षि वस्तुतः वैज्ञानिक गतिविधियों में संलग्न होते थे ! उनके द्वारा बहुत गहन अनुसंधान किया जाता था जिसे आप तपस्या भी कह सकते हैं ! इसी तपस्या के बल पर वे चौंकाने वाले तथ्यों की खोज करने में सक्षम होते थे ! आइए आज हम आपको कुछ ऐसी नई जानकारियां देते हैं, जिन्हें जानकर आपको भारतीय पौराणिक कथाओं और ज्ञान-विज्ञान पर अगाध निष्ठा हो जाएगी !

विज्ञान की दृष्टि से ही नहीं वरन् ज्योतिष के क्षेत्र में भी सौर मंडल बेहद अहम भूमिका निभाता है ! सौर मंडल के ग्रहों के अनुरूप ही ब्रह्मांड का कार्य सुचारू रूप से चलता है यहां तक कि ग्रह भी अन्य ग्रहों के प्रभाव से अछूते नहीं रहते ! धरती, जो कि सौरमंडल का ही एक ग्रह है भी अन्य ग्रहों के प्रभाव से अनछुआ नहीं है !

यह तो हुआ वैज्ञानिक पक्ष लेकिन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी सभी 12 राशियां भी इन ग्रहों से प्रभावित होती हैं ! उल्लेखनीय है कि कई हजार साल पहले जब सौरमंडल की खोज नहीं हुई थी तब तक यही माना जाता था कि ऐसी कोई भी व्यवस्था है ही नहीं ! लेकिन जैसे-जैसे सौर मंडल के अस्तित्व से जुड़े राज खुलने लगे, वैसे-वैसे यह महसूस किया जाने लगा कि इसके बिना धरती क्या इंसान का भी कोई वजूद नहीं है !

कथित तौर पर सौर मंडल की खोज के कई वर्षों बाद वैज्ञानिकों ने यूरेनस, नेप्च्यून और प्लूटो की खोज की थी ! दस्तावेजों के अनुसार 13 मार्च, 1781 ईसवी को विलियम हर्शल ने टेलिस्कोप के जरिए यूरेनस को खोजा था ! वहीं कुछ महीनों बाद जर्मनी के खगोल शास्त्री जोहान गैल और उनके शिष्य हेनरिक लूइस ने नेप्च्यून के अस्तित्व से पर्दा हटाया ! प्लूटो की खोज तो खैर आधुनिक युग में की गई है ! इसलिए यह सौर मंडल का सबसे कम उम्र का ग्रह कहा जाता है !

लेकिन पौराणिक दस्तावेज इन सभी बातों को बहुत पीछे छोड़ देते हैं ! आपको पता होगा कि वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत में स्वयं उन्होंने इन तीनों ग्रहों का वर्णन किया था ! हालांकि वेद व्यास ने इन तीनों ग्रहों को अलग-अलग नाम दिए थे लेकिन अपने ग्रंथ की रचना के दौरान उन्होंने इन तीनों ग्रहों को अलग-अलग नाम दिए थे ! 

वेद व्यास ने महाभारत की एक पंक्ति में उल्लेख किया है ‘एक हरे-सफेद रंग का ग्रह चित्रा नक्षत्र के पास से गुजरा है’ ! इसके अलावा सत्रहवीं शताब्दी के मध्य वाराणसी में रहने वाले महान पंडित नीलकंठ चतुर्धर को भी यूरेनस या श्वेत के बारे में जानकारी थी ! उल्लेखनीय है कि यूरेनस का रंग हरे और सफेद का मिश्रण है ! महाभारत को अपने शब्दों में बयां करते हुए नीलकंठ ने इस बात का जिक्र किया था कि श्वेत या महापात (ऐसा ग्रह जिसकी कक्षा सबसे बड़ी हो), खगोलशास्त्र का बेहद महत्वपूर्ण और चर्चित ग्रह है ! इसके अलावा नीलकंठ ने यह भी जिक्र किया था कि श्वेत ग्रह शनि या सैटर्न के पार है ! वहीं श्याम (नील और सफेद रंग का मिश्रण) या नेपच्यून ज्येष्ठा नक्षत्र में था और यह ग्रह धुएं से भरा है ! अब आप सोचेंगे कि व्यास को इन ग्रहों के रंग का कैसे पता चला तो इसका जवाब भी महाभारत में छिपा है ! महाभारत के अंदर शीशों और सूक्ष्म दृष्टि का जिक्र भी किया गया है ! इसके अलावा पौराणिक साहित्यों में दूरबीनी यंत्र का भी जिक्र है, जिसकी सहायता से दूर की चीजों को देखा जा सकता था !

इसलिए यह माना जा सकता है कि उस दौर में भी लेंस और टेलिस्कोप की सुविधा मौजूद थी ! महाभारत काल के दौरान कृत्तिका और यह तीक्ष्ण ग्रह एक-दूसरे के संयोजन में थे ! कुरुक्षेत्र युद्ध के 16वें दिन यह कहा गया कि सातों ग्रह, सूर्य से दूर जा रहे हैं, चूंकि राहु और केतु जिनके पास शरीर नहीं सिर्फ परछाई है, को नजरअंदाज किया जा सकता है ! यह कथन स्पष्ट करता है कि महाभारत काल के दौरान भी अन्य तीन ग्रहों यूरेनस, नेप्च्यून और प्लूटो अस्तित्व में थे ! महर्षि व्यास के अनुसार सभी सातों ग्रह बेहद प्रभावशाली और महत्वपूर्ण थे ! लेकिन प्लूटो, जो कि धरती से काफी दूर था, धरती पर ज्यादा प्रभाव नहीं डाल सकता था इसलिए इसे नजरअंदाज ही किया जाता था !

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