विक्रम संवत हिन्दू पंचांग में समय गणना की प्रणाली का नाम है। यह संवत ५७ ई.पू। आरम्भ हुआ। सम्राट विक्रमादित्य ने इसे बनाया था। कालिदास इस महाराजा के एक रत्न माने जाते हैं।
बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ।
महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है । यह बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिसनक्षत्र में होता है। उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष सौर वर्ष से ११ दिन ३ घाटी ४८ पल छोटा है। इसीलिए हर ३ वर्ष में इसमें १ महीना जोड़ दिया जाता है।
विक्रम संवत चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन से शुरू होता है।
बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ।
महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है । यह बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिसनक्षत्र में होता है। उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष सौर वर्ष से ११ दिन ३ घाटी ४८ पल छोटा है। इसीलिए हर ३ वर्ष में इसमें १ महीना जोड़ दिया जाता है।
विक्रम संवत चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन से शुरू होता है।
महीनों के नाम
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