पुराणों में वर्णित है, जो केदारखण्ड आते है उनका केवल एक ही मकसद होता है कि वह केवल अपने पुज्य देवता के दर्शन करने के लिए आते हैं।
यह मंदिर विश्व के सबसे खूबसूरत मंदिरों में से एक है। लोग यहां केवल प्रायश्चित के लिए आते हैं।
आदि कैलाश की परिक्रमा शुरू करने पर शिन-ला मार्ग से डारमा पहुंचते हैं और वापस आने के लिए कूथी याकंती घाटी वाला रास्ता प्रयोग करते हैं। यहां से आगे चलकर आप काली गंगा पहुंचते हैं। इन सब जगहों के दर्शन के बाद ही आपकी आदि कैलाश यात्रा पूरी मानी जाती है।
यह परिक्रमा बहुत मुश्किल से पूरी होती है क्योंकि शिन-ला मार्ग बहुत ऊचांई पर होने के साथ-साथ बर्फ से ढका रहता है। इसके बावजूद यहां आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या हर वर्ष बढ़ रही है। अधिकतर तीर्थयात्री जौलिंगकोंग मार्ग से बैलगाडी द्वारा काली गंगा पहुंचते हैं। यहां आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए शुरू में संसाधनों का अभाव था। लेकिन सरकार और तीर्थयात्रियों के प्रयासों से काफी बाधाओं को हटा दिया गया है।
आदि कैलाश को छोटा कैलाश के नाम से जाना जाता है और पार्वती सरोवर को गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है। इन दोनों तीर्थस्थलों को कैलाश पर्वत और तिब्बत की मानसरोवर झील के समतुल्य माना जाता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा के बाद आदि कैलाश यात्रा को सबसे अधिक पवित्र यात्रा माना जाता है। रास्ते में मनमोहक ओम पर्वत पड़ता है। इस पर्वत की खासियत यह है कि यह गौरी कुंड जितना ही सुन्दर है और इस पर्वत पर जो बर्फ जमी हुई है वह ओम के आकार में है। इस स्थान मे वह शक्ति है जो यहां आने वाले नास्तिक को भी आस्तिक में बदल देती है। गुंजी तक इस तीर्थस्थल का रास्ता भी कैलाश मानसरोवर जसा ही है। गुंजी पहुंचने के बाद तीर्थ यात्री लिपू लेख पास पहुंच सकते हैं। इसके बिल्कुल पीछे चीन पडता है। आदि कैलाश यात्रा करने के लिए परमिट की आवश्यकता होती है। इस परमिट को धारचुला के न्यायधीश के कार्यालय से प्राप्त किया जा सकता है। परमिट प्राप्त करने के लिए पहचान-पत्र और अपने गंतव्य स्थलों की सूची न्यायधीश को देनी होती है। आदि कैलाश यात्रा के लिए बहुत सारी औपचारिकताएं पूरी करनी होती है। जिनमें बहुत सारी पासपोर्ट साइज फोटो की आवश्यकता होती है। अत: आपके पास कई पासपोर्ट साइज फोटो होनी चाहिए। परमिट प्राप्त करने के बाद बुद्धि के रास्ते गुंजी पहुंचना होता है। इसके बाद जौलिंगकोंग के लिए आगे की यात्रा शुरू की जा सकती है। जौलिंगकोंग से आदि कैलाश और पार्वती सरोवर थोडी ही दूर पर है। वहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। आदि कैलाश तीर्थस्थल कुमांउ के पिथौरागढ जिले में है। यह तिब्बत की सीमा के निकट है।
आदि कैलाश पहुंचने के लिए रेल मार्ग अच्छा विकल्प है। काठगोदाम रेलवे स्टेशन इसके सबसे नजदीक है। यहां पहुंचने के बाद आदि कैलाश के लिए टैक्सी और बसें ली जा सकती हैं। रेलवे स्टेशन से आदि कैलाश 190 किमी. दूर है। यहां पहुंचने के लिए लगभग 7 घंटे लगते हैं। पिथौरागढ देश के विभिन्न भागों से अच्छी तरह जुडा हुआ है। यहां आने के लिए सडक मार्ग भी अच्छा विकल्प है। यहां निजी वाहनों और सार्वजनिक वाहनों द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। आदि कैलाश तीर्थस्थल भारत और नेपाल की सीमा से सटा हुआ है। सामान उठाने के लिए तवा घाट से कूली और सैर कराने के लिए गाइड किराये पर लिए जा सकते हैं।
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