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21 October 2015

इस्लाम की आलोचना

इस्लाम के जन्म से ही उसकी आलोचना होती रही है। सबसे पहले सन् १००० ई में भी पहले ईसाइयों के द्वारा इसकी आलोचना शुरू हुई। वो इस्लाम को इसाईयत का एक परिवर्तित रूप या नया सम्प्रदाय के रूप में मानते थे।  बाद में मुस्लिम-विश्व से भी आलोचना के स्वर निकलने लगे और साथ ही साथ यहूदी लेखक एवं चर्च से जुड़े इसाई इसकी आलोचना करते पाये गये।
  
आधुनिक काल में हिन्दूसिखजैननास्तिक तथा इस्लाम के अन्दर और बाहर के लोग विविध मुद्दों को लेकर इसकी आलोचना करते हैं।

आलोचना के मुख्य बिन्दु

  • इस्लाम द्वारा आलोचना को सहन न करना,
  • इस्लाम में  दूसरे धर्म के प्रति दुर्व्यवहार की व्यवस्था,
  • इस्लाम के नये सम्प्रदायों के प्रति नीति
  • इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद  के जीवन के अनैतिक पक्षों की भी बहुत आलोचना होती रहती है। यह अनैतिकता उनके नीजी व सार्वजनिक दोनो जीवन में देखने को मिलती है।
  • मुसलमानों की धार्मिक पुस्तक कुरान की विश्वसनीयता एवं नैतिकता को लेकर भी सवाल खड़े किये जाते हैं।
  • आधुनिक इस्लामी राष्ट्रों में मानव अधिकारों के हनन को लेकर भी आलोचबा होती है।
  • इस्लाम में महिलाओं की स्थिति पर भी इस्लाम आलोचना का शिकार होता है।
  • हाल के दिनों में इस बात के लिये इस्लाम की आलोचना हुई है कि मुसलमान पश्चिमी देशों के समाज में घुल-मिल पाने में अक्षम रहे हैं।
  • इस्लाम को आतंकवादी मजहब कहा जाता है और सांख्यिकीय आधार पर इसके अनुयायी आतंकवादी एवं हिंसक कार्यवाहियों में लिप्त पाये जाते हैं।
  • मुसलमान जब अल्पमत में होते हैं तो अशान्त (turbulent) होते हैं तथा बहुमत में होने पर असहनशील (intolerant).
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