Translate

आप के लिए

हिन्दुस्तान का इतिहास-.धर्म, आध्यात्म, संस्कृति - व अन्य हमारे विचार जो आप के लिए है !

यह सभी को ज्ञान प्रसार का अधिकार देता है। यह एेसा माध्यम है जो आप के विचारों को समाज तक पहुचाना चाहाता है । आप के पास यदि कोई विचार हो तो हमे भेजे आप के विचार का सम्मान किया जायेगा।
भेजने के लिए E-mail - ravikumarmahajan@gmail.com

30 October 2015

एक जानकारी *नक़ली नोटों के कारोबार की" जो पूरे देश से छुपा ली गई...

आखिर क्यों ?

क्यों जनता को जानने का कोई हक नहीं ?  

क्या जनता सिर्फ वोट दे कर नेता लोगो को गद्दी पर बैठाने के लिए है ?

आपको आज़ाद , हिन्दुस्तान या भारत के सबसे बड़े आपराधिक षड्यंत्र के बारे में बताते हैं, कहानी है रिज़र्व बैंक के माध्यम से देश के अपराधियों द्वारा नक़ली नोटों का कारोबार करने की।

देश के रिज़र्व बैंक के वाल्ट पर सी.बी.आई ने छापा डाला।  वहां पांच सौ और हज़ार रुपये के नक़ली नोट मिले। वरिष्ठ अधिकारियों से सी.बी.आई ने पूछताछ भी की। सी.बी.आई ने नेपाल-भारत सीमा के साठ से सत्तर विभिन्न बैंकों की शाखाओं पर छापा डाला था, जहां से नक़ली नोटों का कारोबार चल रहा था। इन बैंकों के अधिकारियों ने सी.बी.आई से कहा कि उन्हें ये नक़ली नोट भारत के रिजर्व बैंक से मिल रहे हैं। इस पूरी घटना को भारत सरकार ने देश से और देश की संसद से छुपा लिया।
  
देश अंधेरे में और देश को तबाह करने वाले रोशनी में हैं। 


नक़ली नोटों के कारोबार ने देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह अपने जाल में जकड़ लिया है। आम जनता के हाथों में नक़ली नोट हैं, पर उसे पता तक नहीं है।
बैंक में नक़ली नोट मिल रहे हैं, ए.टी.एम से नक़ली नोट निकल रहे हैं।
असली-नक़ली नोट पहचानने वाली मशीन नक़ली नोट को असली बता रही है। 

देश में क्या हो रहा है, यह समझ के बाहर है। एक तहक़ीक़ात से यह पता चला है कि जो कंपनी भारत के लिए करेंसी छापती रही, वही ५०० और १००० के नक़ली नोट भी छाप रही है। 

क्या यह अंदेशा  गलत है कि देश की सरकार और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया जाने-अनजाने में नोट छापने वाली विदेशी कंपनी के पार्टनर बन चुके हैं ?  
स ख़तरनाक साजि़श पर देश की सरकार और एजेंसियां क्यों चुप हैं ?


अगस्त २०१० में सी.बी.आई की टीम ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के वाल्ट में छापा मारा। सी.बी.आई के अधिकारियों का दिमाग़ उस समय सन्न रह गया, जब उन्हें पता चला कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के ख़ज़ाने में नक़ली नोट हैं। रिज़र्व बैंक से मिले नक़ली नोट वही नोट थे, जिसे पाकिस्तान की खु़फिया एजेंसी नेपाल के रास्ते भारत भेज रही है।

 सवाल यह है कि भारत के रिजर्व बैंक में नक़ली नोट कहां से आए ? 

क्या आई.एस.आई की पहुंच रिज़र्व बैंक की तिजोरी तक है या फिर कोई बहुत ही भयंकर साजि़श है, जो हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था को खोखला कर रही / चुकी है। 

सी.बी.आई इस सनसनीखेज मामले की तहक़ीक़ात कर रही है। बैंक कर्मचारियों से सी.बी.आई ने पूछताछ भी की है। महीनों बीत जाने के बावजूद किसी को यह पता नहीं है कि जांच में क्या निकला ? 

वित्त मंत्रालय को देश को बताना चाहिए कि बैंक अधिकारियों ने जांच के दौरान क्या कहा? उनके खिलाफ क्या कार्यवाही हुई ?

नक़ली नोटों के इस ख़तरनाक खेल पर सरकार, संसद और जांच एजेंसियां क्यों चुप है तथा संसद अंधेरे में क्यों है?

अब सवाल यह है कि -   सी.बी.आई को मुंबई के रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया में छापा मारने की ज़रूरत क्यों पड़ी? 

रिजर्व बैंक से पहले नेपाल बॉर्डर से सटे बिहार और उत्तर प्रदेश के क़रीब ७०-८० बैंकों में छापा पड़ा। इन बैंकों में इसलिए छापा पड़ा, क्योंकि जांच एजेंसियों को ख़बर मिली है कि पाकिस्तान की खु़फि़या एजेंसी आई.एस.आई नेपाल के रास्ते भारत में नक़ली नोट भेज रही है। बॉर्डर के इलाक़े के बैंकों में नक़ली नोटों का लेन-देन हो रहा है। 

आई.एस.आई के रैकेट के ज़रिए ५०० रुपये के नोट २५० रुपये में बेचे जा रहे हैं। छापे के दौरान इन बैंकों में असली नोट भी मिले और नक़ली नोट भी। जांच एजेंसियों को लगा कि नक़ली नोट नेपाल के ज़रिए बैंक तक पहुंचे हैं, लेकिन जब पूछताछ हुई तो सी.बी.आई के होश उड़ गए। कुछ बैंक अधिकारियों की पकड़-धकड़ हुई। 
इन  बैंक अधिकारीयों ने  सबूत दिये आैर बताया कि उन्हें नक़ली नोटों के बारे में कोई जानकारी नहीं, क्योंकि ये नोट रिजर्व बैंक से आए हैं। यह किसी एक बैंक की कहानी होती तो इसे नकारा भी जा सकता था, लेकिन हर जगह यही पैटर्न मिला। यहां से मिली जानकारी के बाद ही सी.बी.आई ने फ़ैसला लिया कि अगर नक़ली नोट रिजर्व बैंक से आ रहे हैं तो वहीं जाकर देखा जाए कि मामला क्या है। सी.बी.आई रि़जर्व बैंक ऑफ इंडिया पहुंची, यहां उसे नक़ली नोट मिले। 

हैरानी की बात यह है कि रिज़र्व बैंक में मिले नक़ली नोट वही नोट थे, जिन्हें आई.एस.आई नेपाल के ज़रिए भारत भेजती है।

रिज़र्व बैंक आफ इंडिया में नक़ली नोट कहां से आए, इस गुत्थी को समझने के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश में नक़ली नोटों के मामले को समझना ज़रूरी है - 
दरअसल हुआ यह कि आई.एस.आई की गतिविधियों की वजह से यहां आए दिन नक़ली नोट पकड़े जाते हैं। मामला अदालत पहुंचता है। बहुत सारे केसों में वकीलों ने अनजाने में जज के सामने यह दलील दी कि पहले यह तो तय हो जाए कि ये नोट नक़ली हैं। इन वकीलों को शायद जाली नोट के कारोबार के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं था, सिर्फ कोर्ट से व़क्त लेने के लिए उन्होंने यह दलील दी थी। कोर्ट ने जब्त हुए नोटों को जांच के लिए सरकारी लैब भेज दिया, ताकि यह तय हो सके कि ज़ब्त किए गए नोट नक़ली हैं। रिपोर्ट आती है कि नोट असली हैं। 
मतलब यह कि असली और नक़ली नोटों के कागज, इंक, छपाई और सुरक्षा चिन्ह सब एक जैसे हैं। अगर ये नोट असली हैं तो फिर ५०० का नोट २५० में क्यों बिक रहा है।

तसल्ली नहीं हुई तो जांच के लिए, फिर इन्हीं नोटों को टोक्यो और हांगकांग की लैब में भेजा गया, वहां से भी रिपोर्ट आई कि ये नोट असली हैं।  फिर इन्हें अमेरिका भेजा गया , नक़ली नोट कितने असली हैं, इसका पता तब चला, जब अमेरिका की एक लैब ने यह कहा कि ये नोट नक़ली हैं। लैब ने यह भी कहा कि दोनों में इतनी समानताएं हैं कि जिन्हें पकड़ना मुश्किल है और जो विषमताएं हैं, वे भी जानबूझ कर डाली गई हैं और नोट बनाने वाली कोई बेहतरीन कंपनी ही ऐसे नोट बना सकती है। अमेरिका की लैब ने जांच एजेंसियों को पूरा प्रूव दे दिया और तरीक़ा बताया कि कैसे नक़ली नोटों को पहचाना जा सकता है। इस लैब ने बताया कि इन नक़ली नोटों में एक छोटी सी जगह है, जहां छेड़छाड़ हुई है।

इसके बाद ही नेपाल बॉर्डर से सटे बैंकों में छापेमारी का सिलसिला शुरू हुआ। नक़ली नोटों की पहचान हो गई, लेकिन एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि नेपाल से आने वाले ५०० एवं १००० के नोट और रिज़र्व बैंक में मिलने वाले नक़ली नोट एक ही तरह के कैसे हैं। 

जिस नक़ली नोट को आई.एस.आई भेज रही है, वही नोट रिजर्व बैंक में कैसे आया ?


दोनों जगह पकड़े गए नक़ली नोटों के काग़ज़, इंक और छपाई एक जैसी क्यों है। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि भारत के ५०० और १००० के जो नोट हैं, उनकी क्वालिटी ऐसी है, जिसे आसानी से नहीं बनाया जा सकता है और पाकिस्तान के पास वह टेक्नोलॉजी है ही नहीं। 

इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि जहां से ये नक़ली नोट आई.एस.आई को मिल रहे हैं, वहीं से रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया को भी सप्लाई हो रहे हैं।
अब दो ही बातें हो सकती हैं
  • यह जांच एजेंसियों को तय करना है कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों की मिलीभगत से नक़ली नोट आये ।   या फिर.......
  • हमारी अर्थव्यवस्था ही अंतरराष्ट्रीय मा़फि़या गैंग की साजि़श का शिकार हो गई है। 

अब सवाल उठता है कि ये नक़ली नोट छापता कौन है -

डे ला रू नाम की कंपनी नोट छापती है।  कंपनी के मालकि नाम है  रोबेर्टो ग्योरी , इस आदमी को दुनिया भर में करेंसी किंग के नाम से जाना जाता है।  क्योंकि दुनिया की करेंसी छापने का ९० फी़सदी बिजनेस इस कंपनी के पास है। यह कंपनी दुनिया के कई देशों कें नोट छापती है।
रोबेर्टो़  दो देशों की नागरिकता रखता है, इटली और स्विट्जरलैंड।  
  
जो जानकारी हासिल हुई, उससे यह साबित होता है कि नक़ली नोटों के कारोबार की जड़ में यही कंपनी है। डे ला रू कंपनी का सबसे बड़ा करार रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ था, जिसे यह स्पेशल वॉटरमार्क वाला बैंक नोट पेपर सप्लाई करती रही है। पिछले कुछ समय से इस कंपनी में भूचाल आया हुआ है। जब रिजर्व बैंक में छापा पड़ा तो डे ला रू के शेयर लुढ़क गए। यूरोप में ख़राब करेंसी नोटों की सप्लाई का मामला छा गया। 
इस कंपनी ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को कुछ ऐसे नोट दे दिए, जो असली नहीं थे। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की टीम इंग्लैंड गई, उसने डे ला रू कंपनी के अधिकारियों से बातचीत की। नतीजा यह हुआ कि कंपनी ने की अपनी यूनिट में उत्पादन और आगे की शिपमेंट बंद कर दी।  
डे ला रू कंपनी के अधिकारियों ने भरोसा दिलाने की बहुत कोशिश की, लेकिन रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने यह कहा कि कंपनी से जुड़ी कई गंभीर चिंताएं हैं। अंग्रेजी में कहें तो सीरियस कंसर्नस। टीम वापस भारत आ गई।

डे ला रू कंपनी की २५ फीसदी कमाई भारत से होती है। इस ख़बर के आते ही डे ला रू कंपनी के शेयर धराशायी हो गए। यूरोप में हंगामा मच गया, लेकिन हिंदुस्तान में न वित्त मंत्री ने कुछ कहा, न ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कोई बयान दिया। रिज़र्व बैंक के प्रतिनिधियों ने जो चिंताएं बताईं, वे चिंताएं कैसी हैं। इन चिंताओं की गंभीरता कितनी है। रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ डील बचाने के लिए कंपनी ने माना कि भारत के रिज़र्व बैंक को दिए जा रहे करेंसी पेपर के उत्पादन में जो ग़लतियां हुईं, वे गंभीर हैं। बाद में कंपनी के चीफ एक्जीक्यूटिव जेम्स हसी को १३ अगस्त, २०१० को इस्ती़फा देना पड़ा। 

ये ग़लतियां क्या हैं ? सरकार चुप क्यों है ? रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया क्यों ख़ामोश है ?

मज़ेदार बात यह है कि कंपनी के अंदर इस बात को लेकर जांच चल रही थी और एक हमारी संसद है, जिसे कुछ पता नहीं है।

५ जनवरी, २०११ को यह ख़बर आई कि भारत सरकार ने डे ला रू के साथ अपने संबंध ख़त्म कर लिए। पता यह चला कि १६,००० टन करेंसी पेपर के लिए रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने डे ला रू की चार प्रतियोगी कंपनियों को ठेका दे दिया। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने डे ला रू को इस टेंडर में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित भी नहीं किया। 

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और भारत सरकार ने इतना बड़ा फै़सला क्यों लिया ? इस फै़सले के पीछे तर्क क्या है? 

सरकार ने संसद को भरोसे में क्यों नहीं लिया। २८ जनवरी को डे ला रू कंपनी के टिम कोबोल्ड ने यह भी कहा कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ उनकी बातचीत चल रही है, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि डे ला रू का अब आगे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ कोई समझौता होगा या नहीं। 
इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी डे ला रू से कौन बात कर रहा है और क्यों बात कर रहा था।  इस पूरे घटनाक्रम के दौरान रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ख़ामोश क्यों  रहा ?

इस दौरान एक सनसनीखेज सच सामने आया -  
डे ला रू कैश सिस्टम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को २००५ में सरकार ने दफ्तर खोलने की अनुमति दी। यह कंपनी करेंसी पेपर के अलावा पासपोर्ट, हाई सिक्योरिटी पेपर, सिक्योरिटी प्रिंट, होलोग्राम और कैश प्रोसेसिंग सोल्यूशन में डील करती है। यह भारत में असली और नक़ली नोटों की पहचान करने वाली मशीन भी बेचती है। 

मतलब यह है कि यही कंपनी नक़ली नोट भारत भेजती है और यही कंपनी नक़ली नोटों की जांच करने वाली मशीन भी लगाती है। शायद यही वजह है कि देश में नक़ली नोट भी मशीन में असली नज़र आते हैं। 

इस मशीन के सॉफ्टवेयर की अभी तक जांच नहीं की गई है, किसके इशारे पर और क्यों? 

जांच एजेंसियों को अविलंब ऐसी मशीनों को जब्त करना चाहिए, जो नक़ली नोटों को असली बताती हैं। सरकार को इस बात की जांच करनी चाहिए कि डे ला रू कंपनी के रिश्ते किन-किन आर्थिक संस्थानों से हैं। नोटों की जांच करने वाली मशीन की सप्लाई कहां-कहां हुई है। 

परन्तु जांच नहीं कराई जा रही है क्यो ?

एक सूत्र ने बताया कि डे ला रू कंपनी का मालिक इटालियन मा़फिया के साथ मिलकर भारत के नक़ली नोटों का रैकेट चला रहा हैपाकिस्तान में आई.एस.आई या आतंकवादियों के पास जो नक़ली नोट आते हैं, वे सीधे यूरोप से आते हैं। भारत सरकार, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया और देश की जांच एजेंसियां अब तक नक़ली नोटों पर नकेल इसलिए नहीं कस पाई हैं, क्योंकि जांच एजेंसियां अब तक इस मामले में पाकिस्तान, हांगकांग, नेपाल और मलेशिया से आगे नहीं देख पा रही हैं। 

जो कुछ यूरोप में हो रहा है, उस पर हिंदुस्तान की सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया चुप है। क्यो ?

अब सवाल उठता है कि जब देश की सबसे अहम एजेंसी ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बताया, तब सरकार ने क्या किया -

  • जब डे ला रू ने नक़ली नोट सप्लाई किए तो संसद को क्यों नहीं बताया गया ?
  • डे ला रू के साथ जब क़रार खत्म कर चार नई कंपनियों के साथ क़रार हुए तो विपक्ष को क्यों पता नहीं चला? 
  • क्या संसद में उन्हीं मामलों पर चर्चा होगी, जिनकी रिपोर्ट मीडिया में आती है। 

अगर जांच एजेंसियां ही कह रही हैं कि नक़ली नोट का काग़ज़ असली नोट के जैसा है तो फिर सप्लाई करने वाली कंपनी डे ला रू पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई ?
सरकार को किसके आदेश का इंतजार है ? 


एक हज़ार नोटों में से दस नोट अगर जाली हैं तो यह स्थिति देश की वित्तीय व्यवस्था को तबाह कर सकती है। हमारे देश में एक हज़ार नोटों में से कितने नोट जाली हैं, यह पता कर पाना भी मुश्किल है, क्योंकि जाली नोट अब हमारे बैंकों और ए.टी.एम मशीनों से निकल रहे हैं।

डे ला रू का नेपाल और आई एस आई कनेक्शन कंधार हाईजैक की कहानी बहुत पुरानी  है, लेकिन इस अध्याय का एक ऐसा पहलू है, जो अब तक दुनिया की नज़र से छुपा हुआ है। इस जहाज में एक ऐसा शख्स बैठा था, जिसके बारे में सुनकर आप दंग रह जाएंगे।  रोबेर्टो ग्योरी  व दो महिलाओं के साथ स़फर कर रहा था। दोनों महिलाएं स्विट्जरलैंड की नागरिक थी

यही कंपनी पाकिस्तान की आई.एस.आई के लिए भी काम करती है। जैसे ही यह जहाज हाईजैक हुआ, स्विट्जरलैंड ने एक विशिष्ट दल को हाईजैकर्स से बातचीत करने कंधार भेजा। साथ ही उसने भारत सरकार पर यह दबाव बनाया कि वह किसी भी क़ीमत पर करेंसी किंग रोबेर्टो ग्योरी और उनके मित्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। 
ग्योरी बिजनेस क्लास में स़फर कर रहा था। आतंकियों ने उसे प्लेन के सबसे पीछे वाली सीट पर बैठा दिया। लोग परेशान हो रहे थे, लेकिन ग्योरी आराम से अपने लैपटॉप पर काम कर रहा था। उसके पास सैटेलाइट पेन ड्राइव और फोन थे.यह आदमी कंधार के हाईजैक जहाज में क्या कर रहा था, यह बात किसी की समझ में नहीं आई है। 

एेसा क्यों हुआ ?

नेपाल में ऐसी क्या बात है, जिससे स्विट्जरलैंड के सबसे अमीर व्यक्ति और दुनिया भर के नोटों को छापने वाली कंपनी के मालिक को वहां आना पड़ा। 
क्या वह नेपाल जाने से पहले भारत आया था। ये सवाल हैं, जिनका जवाब सरकार के पास होना चाहिए। संसद के सदस्यों को पता होना चाहिए, इसकी जांच होनी चाहिए थी। संसद में इस पर चर्चा होनी चाहिए थी। शायद हिंदुस्तान में फैले जाली नोटों का भेद खुल जाता।

नकली नोंटों का मायाजाल -
सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि २००६ से २००९ के बीच ७.३४ लाख सौ रुपये के नोट, ५.७६ लाख पांच सौ रुपये के नोट और १.०९ लाख एक हज़ार रुपये के नोट बरामद किए गए। नायक कमेटी के मुताबिक़, देश में लगभग १,६९,००० करोड़ जाली नोट बाज़ार में हैं। नक़ली नोटों का कारोबार कितना ख़तरनाक रूप ले चुका है, यह जानने के लिए पिछले कुछ सालों में हुईं कुछ महत्वपूर्ण बैठकों के बारे में जानते हैं। इन बैठकों से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि देश की एजेंसियां सब कुछ जानते हुए भी बेबस और लाचार हैं। इस धंधे की जड़ में क्या है, यह हमारे ख़ुफिया विभाग को पता है। नक़ली नोटों के लिए बनी ज्वाइंट इंटेलिजेंस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि भारत नक़ली नोट प्रिंट करने वालों के स्रोत तक नहीं पहुंच सका है। नोट छापने वाले प्रेस विदेशों में लगे हैं। इसलिए इस मुहिम में विदेश मंत्रालय की मदद लेनी होगी, ताकि उन देशों पर दबाव डाला जा सके। १३ अगस्त, २००९ को सीबीआई ने एक बयान दिया कि नक़ली नोट छापने वालों के पास भारतीय नोट बनाने वाला गुप्त सांचा है, नोट बनाने वाली स्पेशल इंक और पेपर की पूरी जानकारी है। इसी वजह से देश में असली दिखने वाले नक़ली नोट भेजे जा रहे हैं। सीबीआई के प्रवक्ता ने कहा कि नक़ली नोटों के मामलों की तहक़ीक़ात के लिए देश की कई एजेंसियों के सहयोग से एक स्पेशल टीम बनाई गई है। १३ सितंबर, २००९ को नॉर्थ ब्लॉक में स्थित इंटेलिजेंस ब्यूरो के हेड क्वार्टर में एक मीटिंग हुई थी, जिसमें इकोनोमिक इंटेलिजेंस की सारी अहम एजेंसियों ने हिस्सा लिया। इसमें डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, इंटेलिजेंस ब्यूरो, आईबी, वित्त मंत्रालय, सीबीआई और सेंट्रल इकोनोमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रतिनिधि मौजूद थे। इस मीटिंग का निष्कर्ष यह निकला कि जाली नोटों का कारोबार अब अपराध से बढ़कर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन गया है। इससे पहले कैबिनेट सेक्रेटरी ने एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई थी, जिसमें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, आईबी,     डी.आर.आई, ई.डी, सी.बी.आई, सी.ई.आई.बी, कस्टम और अर्धसैनिक बलों के प्रतिनिधि मौजूद थे। इस बैठक में यह तय हुआ कि ब्रिटेन के साथ यूरोप के दूसरे देशों से इस मामले में बातचीत होगी, जहां से नोट बनाने वाले पेपर और इंक की सप्लाई होती है।
अब सवाल उठता है कि इतने दिनों बाद भी सरकार ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की ?
जांच एजेंसियों को किसके आदेश का इंतजार है ?

एक फिल्म में सही कह गया की मेरा हिन्दुस्तान महान परन्तु 100 में से 99 वें बेईमान ।।
...............................................
...................................

No comments:

Post a Comment

धन्यवाद

Note: Only a member of this blog may post a comment.