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01 September 2015

हिन्दुस्तान की गुलामी की शुरुआत यहा से हुई थी


अजमेर नगर की स्थापना 12 वीं शताब्दी में चैहान शासक अजयदेव ने की थी।

अजमेर राजस्थान में नया बाजार में स्थित संग्रहालय के मुख्य द्वार के ऊपर बना झरोखा अपना ऐतिहासिक महत्व रखता है।

मुगल बादशाह जहांगीर ने १० जनवरी १६१६ को इग्लैण्ड के राजा जेम्स प्रथम के राजदूत टामस रो को इसी झरोखे में बैठ कर ब्रिटिश व्यापारियों को भारत में व्यापार करने की अनुमति प्रदान की थी। 

कोई नहीं जानता था कि व्यापारी के वेश में आए अंग्रेज ही धीरे-धीरे अपनी कूटनीति और चालबाजियों व षडयंत्रों से पूरे भारत के शासक बन जाएगें। 

बादशाह जाहांगीर १८ नवम्बर १६१३  से  १० नवम्बर १६१६ तक इसी किले में रहा। वह नित्य इसी झरोखे से प्रजा को दर्शन देता और यही से न्याय किया करता था।
 हिन्दुस्तान

इस किले के निर्माण से पहले यह एक प्रचीन दुर्ग था। सन् १५७० में उसी चतुर्भुजनुमा  दुर्ग को अकबर ने दुबारा  बनवाया,  इसे पूरा होने में तीन वर्ष लगें।

अकबर के समय में इस दुर्ग को मुगल किला , अकबरी किला आदि नामो से जाना जाता था। इस दुर्ग का मुख्य दरवाजा ८४ फीट ऊंचा तथा ४३ फीट चौडा है। इस दरवाजे का निर्माण जांहागीर के समय में करवाया गया था। इस दरवाजे के सामने हाथियों की लडाई के लिए विशाल मैदान था। इस मैदान में बादशाहों के मनोरंजन के लिए और भी कई तरह के आयोजन किए जाते थे।

१९वी शताब्दी के मराठा सूबेदार इसी दुर्ग में रहा करते थे। ब्रिटिश राज में इस किले को शस्त्रागार बनाया इस कारण इसे मैगजीन कहा जाने लगा। सन् १८६३ तक यह दुर्ग ब्रिटिश शस्त्रागार के रुप में रहा। ब्रिटिश शासन में यहा तहसील कार्यालय संचालित होने लगा। सन् १९०३ में तहसील कार्यालय स्थानंतरीत कर दिया गया तथा यहा राजपूताना संग्रहालय की स्थापना की गई देश की आजादी के उपलक्ष्य में १५ अगस्त १९४७ को इसी मैगजीन पर राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर स्वतंत्रता की धोषणा की थी।
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