बचपन में इतिहास की किताबों में सिर्फ गाँधी, नेहरु एंड फॅमिली, की गौरव गाथा पढाई जाती रही। हमें कभी यह नहीं पढाया गया कि जवाहर लाल नेहरु को प्रधानमंत्री के रूप में देश के ऊपर जबरदस्ती थोपा गया था।
जबकि 1946 में हुए नामांकन में 15 प्रदेश कांग्रेस समितियों में से 12 ने सरदार पटेल का और 3 ने आचार्य कृपलानी का नाम प्रथम प्रधानमंत्री के लिए अनुमोदित किया था और किसी ने भी नेहरु का नाम प्रस्तावित नहीं किया था। बाद में गाँधी के कहने पर सरदार पटेल और कृपलानी जी ने अपना अपना नाम वापस ले लिया था।
फिर भी नेहरु को हमेशा सरदार पटेल से ज्यादा महान नेता के रूप में चित्रित किया गया।
अब सोचिये कि अगर तब फेसबुक और ट्विटर होता तो आज देश का इतिहास कुछ और होता।
अगर भगत सिंह के पिता और मित्र फेसबुक और ट्विटर पर लिख देते की गाँधी जी ने उनके बेटे की फांसी रुकवाने का प्रयास सिर्फ इसलिए नहीं किया क्योंकि वो भगत सिंह की लोकप्रियता से डरते थे और वो नहीं चाहते थे की देश में कोई भी नेता ऐसा हो जो उनके सिद्धांतों के विपरीत किसी और नए सिद्धांत पर जनता को जागरूक कर दे।
जैसे अर्जुन को द्रोणाचार्य ने सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर साबित करने के लिए एकलव्य के अंगूठे की बलि दे दी थी उसी प्रकार गाँधी ने नेहरु प्रेम के कारण इस देश से भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस और सरदार पटेल जैसे कितने की बलि दे दी।
चाइना वार के समय नेहरु का यह बयान कि “चीन ने जिस ज़मीन पर कब्ज़ा किया है वो बंज़र और बेकार है” आज के ज़माने में आया होता तो क्या वाकई नेहरु की छवि वैसी ही न होती जैसी आज राहुल गांधी की है ?
या इंदिरा की हत्या के बाद हुए सिखों के कत्लेआम के सवाल पर राजीव गाँधी का यह बयान कि “जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो ज़मीन हिलती है” आज के दौर आया होता तो क्या वाकई राजीव को सहानभूति की वही लहर मिल पाती जैसी 1984 में मिली थी?
मूल रूप से देखा जाये तो आज भी देश की परिस्थितियां लगभग वैसी ही हैं जैसी आज़ादी के पहले थी पहले प्रेस की आज़ादी पर प्रतिबन्ध था और सिर्फ वही खबरें छपती थी जो सरकार चाहती थी आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर सरकार का कब्ज़ा है, पैसे के बल पर सिर्फ वो खबरें दिखाई जा रही हैं जिनसे सरकार की छवि को कोई नुकसान न पहुंचे और असली ख़बरों को दबाने के लिए बकवास ख़बरों को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जा रहा है। पर पहले क्रांतिकारियों के पास सोशल मीडिया जैसा कोई माध्यम नहीं था पर अब है। मतलब पूरी बात का लब्बोलुआब यह है की फेसबुक जहाँ एक तरफ अपनी बात को सब तक पहुँचाने का माध्यम है वहीँ ये आने वाले समय बहुत बड़ी क्रांति का सूत्रधार भी बनेगा।
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