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22 June 2015

भगवान श्री कृष्ण व उनकी आठ पत्नियां कौन थीं

शोधकर्ताओं ने खगोलीय घटनाओं, पुरातात्विक तथ्यों आदि के आधार पर कृष्ण जन्म और महाभारत युद्ध के समय का सटीक वर्णन किया है। 

ब्रिटेन में कार्यरत न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलीय घटनाओं के संदर्भ में कहा कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व  हुआ था। उस वक्त भगवान कृष्ण 55-56 वर्ष के थे। उन्होंने अपनी खोज के लिए टेनेसी के मेम्फिन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर डॉ. नरहरि अचर द्वारा 2004-05 में किए गए शोध का हवाला भी दिया।

पुराणों के अनुसार 8वें अवतार के रूप में विष्णु ने यह अवतार 8वें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के 28वें द्वापर में श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से 8वें पुत्र के रूप में मथुरा के कारागार में जन्म लिया था। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के 7 मुहूर्त निकलने के बाद 8वें मुहूर्त में हुआ। तब रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि थी जिसके संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज से 5125 वर्ष पूर्व) को जन्म हुआ। ज्योतिषियों के अनुसार रात 12 बजे उस वक्त शून्य काल था।

श्री कृष्ण की 8 ही पत्नियां थीं -
रुक्मणि,  जाम्बवन्ती,  सत्यभामा,  कालिन्दी,  मित्रबिन्दा,  सत्या,  भद्रा और लक्ष्मणा।
रुक्मिणी-कृष्ण :
विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी के 5 भाई थे - रुक्म, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली। रुक्मिणी सर्वगुण संपन्न तथा अति सुन्दरी थी। उसके शरीर में लक्ष्मी के शरीर के समान ही लक्षण थे अतः लोग उसे लक्ष्मी-स्वरूपा कहा करते थे।

भीष्मक और रुक्मिणी के पास जो भी लोग आते-जाते थे, वे सभी श्रीकृष्ण की प्रशंसा किया करते थे। श्रीकृष्ण के गुणों और उनकी सुंदरता पर मुग्ध होकर रुक्मिणी ने मन ही मन तय कर लिया था कि वह श्रीकृष्ण को छोड़कर अन्य किसी को भी पति रूप में स्वीकार नहीं करेगी। उधर, श्रीकृष्ण को भी इस बात का पता हो चुका था कि रुक्मिणी परम रूपवती होने के साथ-साथ सुलक्षणा भी है। किंतु रुक्म चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ हो।

शिशुपाल रुक्मिणी से विवाह करना चाहता था। रुक्मणि के भाई रुक्म का वह परम मित्र था। रुक्म अपनी बहन का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था। रुक्म ने माता-पिता के विरोध के बावजूद अपनी बहन का शिशुपाल के साथ रिश्ता तय कर विवाह की तैयारियां शुरू कर दी थीं। रुक्मिणी को जब इस बात का पता लगा, तो वह बड़ी दुखी हुई। उसने अपना निश्चय प्रकट करने के लिए एक ब्राह्मण को द्वारिका श्रीकृष्ण के पास भेजा। अंतत: रुक्म और शिशुपाल के विरोध के कारण ही श्रीकृष्ण को रुक्मिणी का हरण कर उनसे विवाह करना पड़ा।

शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का था। श्रीकृष्ण ने अपनी बुआ को वचन दिया था कि मैं इसके 100 अपराध क्षमा कर दूंगा। कालांतर में शिशुपाल ने अनेक बार श्रीकृष्ण को अपमानित किया और उनको गाली दी, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें हर बार क्षमा कर दिया। अत: एक यज्ञ समारोह में उसने श्रीकृष्ण को भरी सभा में अपमानित करने की सारी हदें पार कर दीं, तब श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया।

श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के 10 पुत्र :
प्रद्युम्न,  चारुदेष्ण,  सुदेष्ण,  चारुदेह,  सुचारू,  चरुगुप्त,  भद्रचारू,  चारुचंद्र,  विचारू  और  चारू।

जाम्बवती-कृष्ण : 
स्यमंतक मणि को इंद्रदेव धारण करते हैं। कहते हैं कि प्राचीनकाल में कोहिनूर को ही स्यमंतक मणि कहा जाता था। कई स्रोतों के अनुसार कोहिनूर हीरा लगभग 5,000 वर्ष पहले मिला था और यह प्राचीन संस्कृत इतिहास में लिखे अनुसार स्यमंतक मणि नाम से प्रसिद्ध रहा था। दुनिया के सभी हीरों का राजा है कोहिनूर हीरा। यह बहुत काल तक भारत के क्षत्रिय शासकों के पास रहा फिर यह मुगलों के हाथ लगा। इसके बाद अंग्रेजों ने इसे हासिल किया और अब यह हीरा ब्रिटेन के म्यूजियम में रखा है। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है कि कोहिनूर हीरा ही स्यमंतक मणि है? यह शोध का विषय हो सकता है। यह एक चमत्कारिक मणि है।

भगवान श्रीकृष्ण को इस मणि के लिए युद्ध करना पड़ा था। उन्हें मणि के लिए नहीं, बल्कि खुद पर लगे मणि चोरी के आरोप को असिद्ध करने के लिए जाम्बवंत से युद्ध करना पड़ा था। दरअसल, यह मणि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के पिता सत्राजित के पास थी और उन्हें यह मणि भगवान सूर्य ने दी थी। एक दिन किसी समारोह में श्रीकृष्ण ने सत्राजित से यूं ही कह दिया था कि इसे अक्रूरजी को प्रदान कर दें, लेकिन सत्राजित ने इससे इंकार किया था। बस इसी कारण से कृष्ण पर चोरी का इल्जाम लग गया।

सत्राजित ने यह मणि अपने देवघर में रखी थी। वहां से वह मणि पहनकर उनका भाई प्रसेनजित आखेट के लिए चला गया। जंगल में उसे और उसके घोड़े को एक सिंह ने मार दिया और मणि अपने पास रख ली। सिंह के पास मणि देखकर जाम्बवंतजी ने सिंह को मारकर मणि उससे ले ली और उस मणि को लेकर वे अपनी गुफा में चले गए, जहां उन्होंने इसको खिलौने के रूप में अपने पुत्र को दे दी। इधर, दीर्घकाल तक उसके वापस न आने पर सत्राजित को लगा कि कृष्ण ने उसे मारकर मणि हस्तगत कर ली होगी। सत्राजित ने श्रीकृष्ण पर अप्रत्यक्ष रूप से आरोप लगा दिया कि यह मणि उन्होंने चुराई है। इससे राज्यभर में कृष्ण की बदनामी होने लगी।

तब श्रीकृष्ण को यह मणि हासिल करने के लिए जाम्बवंतजी से युद्ध करना पड़ा। बाद में जाम्बवंत जब युद्ध में हारने लगे तब उन्होंने अपने प्रभु श्रीराम को पुकारा और उनकी पुकार सुनकर श्रीकृष्ण को अपने रामस्वरूप में आना पड़ा। तब जाम्बवंत ने समर्पण कर अपनी भूल स्वीकारी और उन्होंने मणि भी दी और श्रीकृष्ण से निवेदन किया कि आप मेरी पुत्री जाम्बवती से विवाह करें।

जाम्बवती-कृष्ण के पुत्र-पुत्री :
साम्ब,  सुमित्र,  पुरुजित, शतजित,  सहस्त्रजित,  विजय,  चित्रकेतु,  वसुमान,  द्रविड़  और  क्रतु। साम्ब के कारण ही कृष्ण कुल का नाश हो गया था। साम्ब ने दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से विवाह किया था।

सत्यभामा-कृष्ण :
भगवान उस मणि को लेकर वापस आते हैं और जब वो मणि सत्राजित को दी गई तो सत्राजित को बड़ा दुख हुआ, ग्लानि भी हुई, लज्जा भी आई कि मैंने श्रीकृष्णजी पर नाहक ही हत्या और चोरी का आरोप लगाया। उसने श्रीकृष्ण ने क्षमा मांगी और कहा कि मैं अपनी ग्लानि को मिटाना चाहता हूं। इसके लिए मेरी पुत्री सत्यभामा को मैं आपको सौंपता हूं। आप उसे स्वीकार करिए और उसने कहा यह मणि भी आप रखिए दहेज में। कृष्ण ने कहा- यह मणि तो आफत का काम है और 2-2 मणियां मिल गईं एक मणि के चक्कर में। यह मैं नहीं रख सकता यह आप ही रखिए। ये आफत की मणि है। 

मणि के कारण राजा सत्राजित की पुत्री श्रीकृष्ण की 3 महारानियों में से 1 बनीं। सत्यभामा के पुत्र का नाम भानु था। सत्यभामा को एक और जहां अपने सुंदर होने और श्रेष्ठ घराने की राजकुमारी होने का घमंड था वहीं देवमाता अदिति से उनको चिरयौवन का वरदान मिला था जिसके चलते वह और भी अहंकारी हो चली थी।

नरकासुर के वध के पश्चात एक बार श्रीकृष्ण स्वर्ग गए और वहां इन्द्र ने उन्हें पारिजात का पुष्प भेंट किया। वह पुष्प श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मिणी को दे दिया। देवी सत्यभामा को देवलोक से देवमाता अदिति ने चिरयौवन का आशीर्वाद दिया था। तभी नारदजी आए और सत्यभामा को पारिजात पुष्प के बारे में बताया कि उस पुष्प के प्रभाव से देवी रुक्मिणी भी चिरयौवन हो गई हैं। यह जान सत्यभामा क्रोधित हो गईं और श्रीकृष्ण से पारिजात वृक्ष लेने की जिद्द करने लगी। 

सत्यभाभा के पूर्व जन्म की कथा : सत्यभामा ने एक दिन श्रीकृष्ण से पूछ लिया कि मैंने कौन से ऐसे कार्य किए हैं जिसकी वजह से मुझे आपकी पत्नी बनने का अवसर मिला है। मेरे आंगन में कल्पवृक्ष है। जिसके बारे में संसारी लोग जानते भी नहीं हैं। इस पर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को कल्पवृक्ष के नीचे ले जाकर उनके पूर्व जन्म की कथा सुनाई। 

सत्यभामा पहले जन्म में सुधर्मा नाम के ब्राह्मण की कन्या गुणवती थी जिसका विवाह सुधर्मा ने अपने शिष्य चंद्र से कर दिया था। कालांतर में सुधर्मा अपने दामाद चंद्र के साथ जंगल में गए हुए थे। वहां किसी राक्षस ने दोनों को मार दिया। सूचना मिलने पर गुणवती ने बहुत शोक किया। दरिद्रता के कारण घर का सामान बेचकर पिता-पति का अंतिम संस्कार करना पड़ा। उसके बाद जीवन निर्वाह का साधन मिलने पर गुणवती ने स्वयं को भगवान विष्णु के चरणों में समर्पित कर दिया।

कार्तिक मास आने पर गुणवती ने नियमपूर्वक व्रत-पूजन आरंभ किया। इस बीच गुणवती को कठिन ज्वर हो गया। स्वास्थ्य ठीक होने के बावजूद गुणवती ने पूजन-अर्चन नहीं छोड़ा और गंगा में स्नान करते समय प्राण-पखेरू उड़ गए। श्रीकृष्ण ने बताया कि इसी पुण्य के फल से सत्यभामा को पटरानी बनने का सौभाग्य मिला है।

सत्यभामा-कृष्ण के पुत्र-पुत्री :
भानु,  सुभानु,  स्वरभानु,  प्रभानु,  भानुमान,  चंद्रभानु,  वृहद्भानु,  अतिभानु,  श्रीभानु  और  प्रतिभानु।

कालिन्दी-कृष्ण : 
पांडवों के लाक्षागृह से कुशलतापूर्वक बच निकलने पर सात्यिकी आदि यदुवंशियों को साथ लेकर श्रीकृष्ण पांडवों से मिलने के लिए इंद्रप्रस्थ गए। युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रौपदी और कुंती ने उनका आतिथ्‍य-पूजन किया।

इस प्रवास के दौरान एक दिन अर्जुन को साथ लेकर भगवान कृष्ण वन विहार के लिए निकले। जिस वन में वे विहार कर रहे थे वहां पर सूर्य पुत्री कालिन्दी, श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने की कामना से तप कर रही थी। कालिन्दी की मनोकामना पूर्ण करने के लिए श्रीकृष्ण ने उसके साथ विवाह कर लिया। कालिन्दी खांडव वन में रहती थी। यहीं पर पांडवों का इंद्रप्रस्थ बना था।

कालिंदी-कृष्ण के पुत्र-पुत्री : 
श्रुत,  कवि,  वृष,  वीर,  सुबाहु,  भद्र,  शांति,  दर्श,  पूर्णमास  और  सोमक।

मित्रविन्दा -कृष्ण :
एक दिन कृष्ण वन विहार के दौरान अर्जुन के साथ उज्जयिनी गए और वहां की राजकुमारी मित्रविन्दा को स्वयंवर से वर लाए।

मित्रविन्दा- श्रीकृष्ण के पुत्र-पुत्री : 
वृक,  हर्ष,  अनिल, गृध्र,  वर्धन,  अन्नाद,  महांस,  पावन,  वह्नि  और  क्षुधि।

सत्या -कृष्ण:
एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कौशल के राजा नग्नजित के 7 बैलों को एकसाथ नाथ कर उनकी कन्या सत्या से पाणिग्रहण किया। सत्या के पुत्र का नाम वीर था। 

सत्या-श्रीकृष्ण के पुत्र-पुत्री : 
वीर,  चन्द्र,  अश्वसेन,  चित्रगुप्त,  वेगवान,  वृष,  आम,  शंकु,  वसु  और  कुंति।

भद्रा - कृष्ण:
सत्या के बाद उनका कैकेय की राजकुमारी भद्रा से विवाह हुआ। 

भद्रा-श्रीकृष्ण के पुत्र-पुत्री : 
संग्रामजित,  वृहत्सेन,  शूर,  प्रहरण,  अरिजित,  जय,  सुभद्र,  वाम,  आयु  और  सत्यक।

लक्ष्मणा -कृष्ण: 
भद्र देश की राजकुमारी लक्ष्मणा भी कृष्ण को चाहती थी, लेकिन परिवार कृष्ण से विवाह के लिए राजी नहीं था तब लक्ष्मणा को श्रीकृष्ण अकेले ही हरकर ले आए। लक्ष्मणा के पिता का नाम वृहत्सेना था। 

लक्ष्मणा-कृष्ण के पुत्र: 
प्रघोष,  गात्रवान,  सिंह,  बल,  प्रबल,  ऊर्ध्वग,  महाशक्ति,  सह,  ओज  और  अपराजित।

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