भारत पर शाासन करने का हमारा खानदानी अधिकार है यही सोच कर यूपीए के कार्यकाल में जी भर कर धपले आैर धोटाले हुए।
मनरेगा ने 2009 में सत्ता दिला दी। उपलब्धियों के बजाय नाकामयाबिय ज्यादा होने पर भी सत्ता मिल गर्इ।
लूट से देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से लडखडा गर्इ, राजकोष का घाटा बढता गया। बेरोजगारी, मंहगाई आैर भ्रष्टाचार अमर.बेल की तरह बढती गई। पुरे देश के लोगो का सुख चैन छिन गया।
सब जान कर भी प्रधानमंत्री जो सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्री मानता है। आंख बंद कर , कान बंद कर , मुंह बंद कर बैठा रहा यानी गांधी के तीन बंदर की तरह।
जब पूरे देश का ध्यान करोडो की हेरा फेरी पर गया तो प्रधानमंत्री ने कहा मै कुछ नहीं जानता। मैने कुछ नहीं किया। सरकार के प्रवक्ता कहते रहे सी.ए.जी झूठ बोल रही है। एक पैसे का भी धोटाला नहीं हुआ हे। नेताओं को इस बात पर जरा भी अफसोस नहीं है कि उन्होंने देश की करोड़ो जनता का भरोसा क्यों तोड़ा ?
जनता ने क्यों उनकी पार्टी को सत्ता से उठा कर जमीन पर पटक दिया। पार्टी की आज ऐसी हालत हो गयी है कि वह उठ कर चल भी नहीं पा रही है। केन्द्र की सत्ता गर्इ। अधिकांश राज्यों से सूपड़ा साफ हो गया। फिर भी कांग्रेसी नेताओं को इस बात का अभिमान है कि उन्होंने चाहे जितने पाप किये हों किन्तु भारत की जनता के पास वापस उन्हें सत्ता सौंपने के अलावा कोर्इ विकल्प ही नहीं है।
जो गले तक भ्रष्टाचार के कीचड़ में धंसे हुए हों उन्हें प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं होता है।
देश को जिन्होंने आजतक कुशासन दिया वह एक साल के सुशासन पर सवाल उठा रहे हैं ? सब सामने आ रहा है फिर भी शर्म नहीं है। मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल का हिसाब पूछने से पहले यह बतलाए कि उनके मंत्री दस साल तक अपने कार्यालय में कितने धंटे बैठे।
राजनिति का मतलब अब यह हो गया है कि जो मर्जी आये बकवास कर दो क्यों की लोकतंत्र में बैठे है। यह अब आेछी सोच रह गई है राजनिति अब एक बहुत बडी गाली बन कर रह गई है, क्या कारण रहा यह सब जानते है परन्तु खामोश है। यह कार्य देश की आजादी के बाद से हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी के महंगे सूट पर कटाक्ष जिसका देश की भलाई से कोई भी अर्थ नहीं है। अगर जनता के मन में जगह बनानी है तो जनता की भलाई के बारे में सोचो जनता सिर पर बैठायेगी।
मोदी की विदेश नीति पर सवाल उठा रहे है क्या अपने विदेश मंत्री की वह बात भी याद नहीं, जब वे एक अन्तरराष्ट्रीय मंच पर किसी और विषय का भाषण पढ़ देश की नाक कटवा कर आये थे। उस विदेश मंत्री के खिलाफ क्या किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने एक वर्ष में एक भी छुट्टी नहीं ली और एक भी निजी यात्रा नहीं की।
किन्तु यदि वे राहुल के पिछले दस सालों का रिकार्ड़ देखे तो पता चलेगा की , उसने अपना अधिकांश समय देश में नहीं विदेश में बिताया था और निजी यात्राएं की थी।
संसद में सबसे कम बोलने का रिकार्ड़ भी उनके नाम है। मां-बेटे ने वायुसेना के विमानों का उपयोग कर कर्इ निजी व गोपनीय विदेश यात्राएं की थी।
दस वर्षों में देश भर में सैंकड़ों बम विस्फोट हुए, हजरो निर्दोष नागरिक मारे गये, किन्तु प्रशासन अपाहिज बना रहा। बाटला हाऊस और अक्षरधाम प्रकरण को फर्जी मुठभेड़ बता कर आतंकियों के प्रति सहानुभूति दर्शायी।
ताज होटल की आतंकी घटना को भगवा आतंकवाद से जोड़ने की निर्लज्जता दिखार्इ। आज आतंकी घटनाएं रुक गर्इ है। क्या इसे सरकार की प्रशासनिक सफलता नहीं माना जा सकता ?
फसले खराब हो गर्इ, फिर भी महंगार्इ नियंत्रण में है। राजकोषीय घाटा कम हो रहा है। सरकार के कामों में अवरोध खड़े करने के बाद भी सरकार पूर्ण प्रतिबद्धता और र्इमानदारी से काम कर रही है, फिर भी सारे सवाल एक साल बाद ही क्यों पूछे जा रहे हैं ?
जबकि सरकार को पांच वर्ष तक काम करने का जनादेश मिला है। कांग्रेसी नेता जिस तरह बावले हो रहे हैं, क्या उससे नहीं लगता कि वे सत्ता के बिना तड़फ रहे हैं ?
उनके सब्र का बांध टूट रहा है।
मनरेगा ने 2009 में सत्ता दिला दी। उपलब्धियों के बजाय नाकामयाबिय ज्यादा होने पर भी सत्ता मिल गर्इ।
लूट से देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से लडखडा गर्इ, राजकोष का घाटा बढता गया। बेरोजगारी, मंहगाई आैर भ्रष्टाचार अमर.बेल की तरह बढती गई। पुरे देश के लोगो का सुख चैन छिन गया।
सब जान कर भी प्रधानमंत्री जो सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्री मानता है। आंख बंद कर , कान बंद कर , मुंह बंद कर बैठा रहा यानी गांधी के तीन बंदर की तरह।
जब पूरे देश का ध्यान करोडो की हेरा फेरी पर गया तो प्रधानमंत्री ने कहा मै कुछ नहीं जानता। मैने कुछ नहीं किया। सरकार के प्रवक्ता कहते रहे सी.ए.जी झूठ बोल रही है। एक पैसे का भी धोटाला नहीं हुआ हे। नेताओं को इस बात पर जरा भी अफसोस नहीं है कि उन्होंने देश की करोड़ो जनता का भरोसा क्यों तोड़ा ?
जनता ने क्यों उनकी पार्टी को सत्ता से उठा कर जमीन पर पटक दिया। पार्टी की आज ऐसी हालत हो गयी है कि वह उठ कर चल भी नहीं पा रही है। केन्द्र की सत्ता गर्इ। अधिकांश राज्यों से सूपड़ा साफ हो गया। फिर भी कांग्रेसी नेताओं को इस बात का अभिमान है कि उन्होंने चाहे जितने पाप किये हों किन्तु भारत की जनता के पास वापस उन्हें सत्ता सौंपने के अलावा कोर्इ विकल्प ही नहीं है।
जो गले तक भ्रष्टाचार के कीचड़ में धंसे हुए हों उन्हें प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं होता है।
देश को जिन्होंने आजतक कुशासन दिया वह एक साल के सुशासन पर सवाल उठा रहे हैं ? सब सामने आ रहा है फिर भी शर्म नहीं है। मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल का हिसाब पूछने से पहले यह बतलाए कि उनके मंत्री दस साल तक अपने कार्यालय में कितने धंटे बैठे।
राजनिति का मतलब अब यह हो गया है कि जो मर्जी आये बकवास कर दो क्यों की लोकतंत्र में बैठे है। यह अब आेछी सोच रह गई है राजनिति अब एक बहुत बडी गाली बन कर रह गई है, क्या कारण रहा यह सब जानते है परन्तु खामोश है। यह कार्य देश की आजादी के बाद से हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी के महंगे सूट पर कटाक्ष जिसका देश की भलाई से कोई भी अर्थ नहीं है। अगर जनता के मन में जगह बनानी है तो जनता की भलाई के बारे में सोचो जनता सिर पर बैठायेगी।
मोदी की विदेश नीति पर सवाल उठा रहे है क्या अपने विदेश मंत्री की वह बात भी याद नहीं, जब वे एक अन्तरराष्ट्रीय मंच पर किसी और विषय का भाषण पढ़ देश की नाक कटवा कर आये थे। उस विदेश मंत्री के खिलाफ क्या किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने एक वर्ष में एक भी छुट्टी नहीं ली और एक भी निजी यात्रा नहीं की।
किन्तु यदि वे राहुल के पिछले दस सालों का रिकार्ड़ देखे तो पता चलेगा की , उसने अपना अधिकांश समय देश में नहीं विदेश में बिताया था और निजी यात्राएं की थी।
संसद में सबसे कम बोलने का रिकार्ड़ भी उनके नाम है। मां-बेटे ने वायुसेना के विमानों का उपयोग कर कर्इ निजी व गोपनीय विदेश यात्राएं की थी।
दस वर्षों में देश भर में सैंकड़ों बम विस्फोट हुए, हजरो निर्दोष नागरिक मारे गये, किन्तु प्रशासन अपाहिज बना रहा। बाटला हाऊस और अक्षरधाम प्रकरण को फर्जी मुठभेड़ बता कर आतंकियों के प्रति सहानुभूति दर्शायी।
ताज होटल की आतंकी घटना को भगवा आतंकवाद से जोड़ने की निर्लज्जता दिखार्इ। आज आतंकी घटनाएं रुक गर्इ है। क्या इसे सरकार की प्रशासनिक सफलता नहीं माना जा सकता ?
फसले खराब हो गर्इ, फिर भी महंगार्इ नियंत्रण में है। राजकोषीय घाटा कम हो रहा है। सरकार के कामों में अवरोध खड़े करने के बाद भी सरकार पूर्ण प्रतिबद्धता और र्इमानदारी से काम कर रही है, फिर भी सारे सवाल एक साल बाद ही क्यों पूछे जा रहे हैं ?
जबकि सरकार को पांच वर्ष तक काम करने का जनादेश मिला है। कांग्रेसी नेता जिस तरह बावले हो रहे हैं, क्या उससे नहीं लगता कि वे सत्ता के बिना तड़फ रहे हैं ?
उनके सब्र का बांध टूट रहा है।
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