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25 March 2015

पुलिस

पुलिस  शुद्ध हिन्दी में आरक्षी यह एक सुरक्षा बल होता है जिसका उपयोग देश की अन्दरूनी नागरिक सुरक्षा के लिये किया जाता है। गृहरक्षा विभाग के अन्तर्गत आने वाला विभाग  देश की कानून व्यवस्था को संभालने का काम  पुलिस के हाथ ही होता है। 

आपराधिक गतिविधियों को रोकने, अपराधियों को पकड़ने, अपराधियों के द्वारा किये जाने वाले अपराधों की खोजबीन करने, देश की आंतरिक सम्पत्ति की रक्षा करने और जो अपराधी हैं और उनका अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य जुटाना ही पुलिस का  कार्य है। अपराधी घोषित करने के बाद पुलिस संबन्धित व्यक्ति को अदालत को सौंपती है। लेकिन किसी अपराधी को सजा देना पुलिस का काम नही होता है।

भारतीय पुलिस का इतिहास :
प्राचीन भारत में इतिहास में दंडधारी शब्द का उल्लेख आता है। भारतवर्ष में पुलिस शासन के विकास-क्रम में उस काल के दंडधारी को वर्तमान काल के पुलिस जन के समकक्ष माना जा सकता है।  प्राचीन भारत का स्थानीय शासन मुख्यत: ग्रामीण पंचायतों पर आधारित था। गाँव के न्याय एवं शासन संबंधी कार्य ग्रामिक नामी एक अधिकारी द्वारा संचलित किए जाते थ। इसकी सहायता और निर्देशन ग्राम के वयोवृद्ध करते थे। यह ग्रामिक राज्य के वेतनभोगी अधिकारी नहीं होते थे वरन् इन्हें ग्राम के व्यक्ति अपने में से चुन लेते थे। ग्रामिकों के ऊपर 5-10 गाँवों की व्यवस्था के लिए "गोप" एवं लगभग एक चौथाई जनपद की व्यवस्था करने के लिए "गोप" एवं लगभग एक चौथाई जनपद की व्यवस्था करने के लिए "स्थानिक" नामक अधिकारी होते थे। प्राचीन यूनानी इतिहासवेतताओं ने लिखा है कि इन निर्वाचित ग्रामीण अधिकारियों द्वारा अपराधों की रोकथाम का कार्य सुचारु रूप से होता था और उनके संरक्षण में जनता निर्भय होकर रहती थी।

मुगल काल में भी ग्राम पंचायतों और ग्राम के स्थानीय अधिकारियों की परंपरा रही। मुगल काल में ग्राम के मुखिया मालगुजारी एकत्र करने, झगड़ों का निपटारा आदि करने का महत्वपूर्ण कार्य करते थे और निर्माण चौकीदारों की सहायता से ग्राम में शांति की व्यवस्था स्थापित रखे थे।

चौकीदार दो श्रेणी में विभक्त थे- (1) उच्च, (2) साधारण। उच्च श्रेणी के चौकीदार अपराध और अपराधियों के संबंध में सूचनाएँ प्राप्त करते थे और ग्राम में व्यवस्था रखने में सहायता देते थे। उनका यह भी कर्तव्य था कि एक ग्राम से दूसरे ग्राम तक यात्रियों को सुरक्षापूर्वक पहुँचा दें। साधारण कोटि के चौकीदारों द्वारा फसल की रक्षा और उनकी नापजोख का कार्य करता जाता था। गाँव का मुखिया न केवल अपने गाँव में अपराध शासन का कार्य करता था वरन् समीपस्थ ग्रामों के मुखियों को उनके क्षेत्र में भी अपराधों के विरोध में सहायता प्रदान करता था। शासन की ओर से ग्रामीण क्षेत्रों की देखभाल फौजदार और नागरिक क्षेत्रों की देखभाल कोतवाल के द्वारा की जाती थी।
सन् 1765 में जब अंग्रेजों ने बंगाल की दीवानी हथिया ली तब जनता का दायित्व उनपर आया। वारेन हेस्टिंग्ज़ ने सन् 1781 तक फौजदारों और ग्रामीण पुलिस की सहायता से पुलिस शासन की रूपरेखा बनाने के प्रयोग किए और अंत में उन्हें सफल पाया।

लार्ड कार्नवालिस का यह विश्वास था कि अपराधियों की रोकथाम के निमित्त एक वेतन भोगी एवं स्थायी पुलिस दल की स्थापना आवश्यक है। इसके जनपदीय मजिस्ट्रेटों को आदेश दिया गया कि प्रत्येक जनपद को अनेक पुलिस क्षेत्रों में विभक्त किया जाए और प्रत्येक पुलिस क्षेत्र दारोगा नामक अधिकारी के निरीक्षण में सौंपा जाय। इस प्रकार दारोगा का उदय हुआ। बाद में ग्रामीण चौकीदारों को भी दारोगा के अधिकार में दे दिया गया।

वर्तमान काल में हमारे देश में अपराध-निरोध संबंधी कार्य की इकाई, जिसका दायित्व पुलिस पर है, थाना अथवा पुलिस स्टेशन है। थाने में नियुक्त अधिकारी एवं कर्मचारियों द्वारा इन दायित्वों का पालन होता है। सन् 1861 के पुलिस ऐक्ट के आधार पर पुलिस शासन प्रत्येक प्रदेश में स्थापित है।  सन् 1861 के ऐक्ट के अनुसार जिलाधीश को जनपद के अपराध संबंधी शासन का प्रमुख और उस रूप में जनपदीय पुलिस के कार्यों का निर्देशक माना गया है।

इस प्रकार मूलत: वर्तमान पुलिस शासन की रूपरेखा का जन्मदाता लार्ड कार्नवालिस था।



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