नाथूराम गोडसे का जन्म भारत के महाराष्ट्र राज्य में पुणे के निकट बारामती नामक स्थान पर चित्तपावन मराठी परिवार में हुआ। इनके पिता विनायक वामनराव गोडसे पोस्ट आफिस में काम करते थे और माता लक्ष्मी गोडसे एक गृहणी थी नाथूराम के जन्म का नाम रामचन्द्र था। बाद में ये नाथूराम विनायक गोडसे के नाम से प्रसिद्ध हुए।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन से प्रभावित होकर हाईस्कूल के बीच में ही अपनी पढाई-लिखाई छोड दी तथा उसके बाद कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली।
जीवन : प्रारम्भिक दिनो में नाथूराम अखिल भारतीय कांग्रेस से जुडे रहे थे परन्तु बाद में गांधी के द्वारा लगातार और बार-बार हिन्दुओं के विरुद्ध भेदभाव पूर्ण नीति अपनाये जाने तथा मुस्लिम तुष्टीकरण किये जाने के कारण वे गांधी के प्रबल विरोधी हो गये, और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संध में शामिल हो गये सन् 1930 में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा में चले गये। उन्होने अग्रणी तथा हिन्दू राष्ट्र नामक दो समाचार पत्रो का सम्पादन भी किया। वे मुहम्मद अली जिन्ना की अलगवाववादी विचार धारा का विरोध करते थे।
1940 में हैदराबाद के शासक निजाम ने राज्य में रहने वाले हिन्दुओं पर बलात जजिया कर लगाने का निर्णय लिया जिसका हिन्दू महासभा ने विरोध करने का निर्णय लिया। हिन्दू महासभा के अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर के आदेश पर हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओ का पहला जत्था नाथूराम गोडसे के नेतृत्व में हैदराबाद गया। हैदराबाद के निजाम ने इन सभी को बन्दी बना लिया और कारावास में कठोर दण्ड दिये परन्तु बाद में हारकर उसने अपना निर्णय वापस ले लिया।
1947 में भारत का विभाजन और विभाजन के समय हुई साम्प्रदायिक हिंसा ने नाथूराम को अत्यन्त उद्वेलित कर दिया। तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए बीसवी सदी की उस सबसे बडी त्रासदी के लिये गांधी ही सर्वाधिक उत्तरदायी समझ में आये। विभाजन के बाद पाकिस्तान ने भारत के कशमीर पर आक्रमण कर दिया उसी समय पाकिस्तान को 55 करोड रुपये देने के लिए गांधी ने अनशन कर भारत सरकार पर दबाव बनाया। गांधी के इस निर्णय और अन्य गलत निर्णयों से खफा हो कर नाथूराम गोडसे और उनके कुछ साथियों ने गांधी वध का निर्णय लिया। जो एक राष्ट्रभक्त के नाते सही था।
किन्तु प्रथम प्रयास विफल रहा - गांधी वध की योजनानुसार नई दिल्ली के बिरला हाउस पहुॅच कर 20 जनवरी1948 को मदनलाल पाहवा ने गांधी की प्रार्थना-सभा में बम फेंका। योजना के अनुसार बम विस्फोट से उत्पन अफरा तफरी के समय ही गांधी को मारना था परन्तु उस समय उनकी पिस्तोल जाम हो गयी वह गोली चल न सकी। नाथूराम गोडसे और उनके बाकी साथीयों वहा से भागकर पुणे वापस चले गये जबकि मदनलाल पाहवा को पुलिस ने पकड लिया।
शस्त्र की व्यवस्था एंव हिन्दू तथा सिख शरणार्थियों की देखरेख के लिए एंव गांधी को मारने के लिये नाथुराम पुणे से दिल्ली वापस आये और वहा पर पाकिस्तान से सब कुछ खो कर आये हुए हिन्दू तथा सिख जो की शरणार्थि हो चुके थे के शिविरों में धूम रहे थे। उसी दौरान उनको एक शरणार्थी मिला जिससे उन्होने एक इतालवी कम्पनी की बैराटा पिस्तौल ली। नाथूराम ने अवैध शास्त्र रखने का अपराध न्यायालय में स्वीकार भी किया था।
30जनवरी1948 को नाथूराम गोडसे दिल्ली के बिडला भवन में प्रार्थना सभा के समय से 40 मिनट पहले पहुच गये। जसे ही गांधी प्राथना-सभा के लिये परिसर में दाखिल हुए नाथूराम ने पहले उन्हे हाथ जोडकर प्रणाम किया उसके बाद बिना कोई बिलम्ब किये अपने पिस्तोल से तीन गोलियॉ मार कर गांधी का अंत कर दिया। गोडसे ने उसके बाद भागने का कोई प्रयास नहीं किया, ओर अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया।
हत्या का अभियोग -
नाथूराम पर गांधी की हत्या के लिये अभियोग पंजाब उच्च न्यायालय में चलाया गया था। इसके अतिरिक्त उन पर 17 अन्य अभियोग भी चलाये गये। किन्तु इतिहासकारेा के मतानुसार सत्ता में बैठे लोग भी गांधी की हत्या के लिये उतने ही जिम्मेवार थे जितने कि नाथूराम गोडसे या उनके साथी।
नाथूराम पर गांधी की हत्या के लिये अभियोग पंजाब उच्च न्यायालय में चलाया गया था। इसके अतिरिक्त उन पर 17 अन्य अभियोग भी चलाये गये। किन्तु इतिहासकारेा के मतानुसार सत्ता में बैठे लोग भी गांधी की हत्या के लिये उतने ही जिम्मेवार थे जितने कि नाथूराम गोडसे या उनके साथी।
हमारी सोच : यदि पूर्ण दृष्टि से यदि विचार किया जावे तो मदनलाल पाहवा को इस बात के लिये पुरस्कार दिया जाना चाहिये था ना कि दण्डित क्योकि उसने तो हत्याकाण्ड से दस दिन पूर्व उसी स्थान पर बम फोडकर सरकार को सचेत किया था कि गांधी जिन्हे बडी श्रद्धा से नेहरु बापू कहा करते थे अब सुरक्षित नहीं है उन्हे कोई भी प्रार्थना सभा में जाकर मार सकता है।
क्या यह दायित्व नेहरु जो देश के प्रधान मंत्री थे अथवा सरदार पटेल जो भारत के गृहमंत्री थे उनका नहीं था ?
क्योकि नेहरु को वह सब प्राप्त हो गया (प्रधानमंत्री पद) था जो उसे चाहिये था फिर गांधी की जरुरत उसे कहा थी। आखिर 20जनवरी1948 को पाहवा द्वारा गांधी की प्रार्थना सभा में बम विस्फोट के ठीक 10 दिन बाद उसी समूह के एक सदस्य ने गांधी के सीने में 3 गोलीया उतार दी। यह सवाल सरकार के पास 1984 में उठाया गया था जो आज तक अनुतरित है।
क्या यह दायित्व नेहरु जो देश के प्रधान मंत्री थे अथवा सरदार पटेल जो भारत के गृहमंत्री थे उनका नहीं था ?
क्योकि नेहरु को वह सब प्राप्त हो गया (प्रधानमंत्री पद) था जो उसे चाहिये था फिर गांधी की जरुरत उसे कहा थी। आखिर 20जनवरी1948 को पाहवा द्वारा गांधी की प्रार्थना सभा में बम विस्फोट के ठीक 10 दिन बाद उसी समूह के एक सदस्य ने गांधी के सीने में 3 गोलीया उतार दी। यह सवाल सरकार के पास 1984 में उठाया गया था जो आज तक अनुतरित है।
गांधी वध के कारण -
मुक्दमें के दौरान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ कर सुनाने की अनुमति मांगी थी कोर्ट ने यह अनुमति स्वीकार कर ली। नाथूराम गोडसे का यह न्यायालय के समक्ष वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया था कि आम आदमी को कभी यह मालूम न पडे की गांधी का बध सही था या गलत।
नाथूराम गोडसे ने न्यायालय के समक्ष गांधी वध के जो 150 कारण बतलाये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित है -
मुक्दमें के दौरान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ कर सुनाने की अनुमति मांगी थी कोर्ट ने यह अनुमति स्वीकार कर ली। नाथूराम गोडसे का यह न्यायालय के समक्ष वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया था कि आम आदमी को कभी यह मालूम न पडे की गांधी का बध सही था या गलत।
नाथूराम गोडसे ने न्यायालय के समक्ष गांधी वध के जो 150 कारण बतलाये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित है -
- सन् 1919 में अमृतसर के जलियॉवाला बाग के गोली काण्ड से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाये। गांधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से स्पष्ट मना कर दिया।
- भगत सिंह व उनके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गांधी की और देख रहा था, कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु दण्ड से बचायें, किन्तु गांधी ने भगत सिंह के कार्य को हिंसा कह कर अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस मांग को अस्वीकार कर दिया।
- 6मई1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को दिये गये अपने सम्बोधन में गांधी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपने आहूति देने की प्रेरणा दी।
- मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओ के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गांधी ने खिलाफत आन्दोलन को समर्थन देने की धोषणा की तो भी केरल के मोपला मुसलमानो द्वारा वहां के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमे लगभग 1500 हिन्दू मारे गये व 2000से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गांधी ने इस हिंसा का विरोध तक नहीं किया वरन् खुदा के बहादुर बंदो की बहादुरी के रुप में वर्णन किया।
- 1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गये शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दु रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी, इसकी प्रतिर्कियास्वरुप गांधी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दू मुस्लिम एकता के लिये अहितकारी धोषित किया।
- गांधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरु गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देषभक्त कहा।
- मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओ के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गांधी ने खिलाफत आन्दोलन को समर्थन देने की धोषणा की। तब भी केरल के मोपला मुसलमानो द्वारा वहां के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दू मारे गये
- गांधी ने जहां एक और कशमीर के हिन्दू राजा हरि सिंह को कशमीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोडने व काशी जाकर प्रायशिचत करने का परामर्ष दिया, वही दूसरी और हैदराबाद के निजाम के शासन का हिन्दू बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
- यह गांधी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आजम की उपाधि दी।
- कांग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिये सन्1931 में बनी समिति ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गांधी की जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
- कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी पट्टाभि सीतारमयया का समर्थन कर रहे थे अतः सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पद त्याग दिया।
- लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल के पक्ष में बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गांधी की जबरदस्त जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरू को दिया गया।
- 14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत था, किन्तु गांधी ने वहॉ पहुच कर प्रस्ताव को समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उसने आम आदमी के बीच कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
- जवाहरलाल की अध्यक्षता में मंत्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुननिर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गांधी जो कि मंत्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13जनवरी1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदो का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण करवाने के लिए दबाब डाला
- पाकिस्तान से आये विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गांधी ने उन उजडे हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियां व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड बाहर ठिठुरती सर्दी में राते बिताने आैर मरने के लिये मजबूर किया।
- 22अक्टुबर1947 को पाकिस्तान ने कशमीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड रुपये देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने आक्रमण के द्ष्टिगत यह राशि न देने का निर्णय किया व काफी विरोध हुआ किन्तु गांधी ने उसी समय यह राशि तुरन्त पाकिस्तान को दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरुप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गई।
नाथूराम गोडसे ने अपने धर वालो से अन्त समय में कहा की -
’’ यदि अपने देश के प्रति भक्तिभाव रखना कोई पाप है तो मैने यह पाप किया है और यदि यह पुण्य है तो उसके द्वारा अर्जित पुण्य पद पर मै अपना नम्र अधिकार व्यक्त करता हूॅ ’’
एंव इस बात को मै सदा बिना छिपाये कहता हूॅ कि मेै गांधी के सिद्धांतो के विरोधी सिद्धांतो का प्रचार कर रहा हुॅं मेरा यह पुर्ण विशवास रहा है कि अहिंसा का अत्यधिक प्रचार हिन्दू धर्म को अत्यन्त निर्बल बना देगा और अन्त में यह धर्म ऐसा भी नहीं रहेगा कि वह दुसरी जातियों से विशेषकर मुसलमानो के अत्याचारो का प्रतिशेध कर सके।
मै गांधी के अहिंसा सिद्धान्तों का उतना विरोधी नहीं जितना उनके मुस्लिम प्रेम का, गांधी के किये कार्यो से हिन्दू धर्म कि अधिकाधिक हानि हो रही थी, 32 वर्षो से गांधी मुसलमानो के पक्ष में जो कार्य कर रहे थे और अन्त में पाकिस्तान को 55 करोड दिलाने के लिए अनशन करने का निष्चय किया, तब मैने भी निशचय कर लिया कि गांधी को समाप्त कर देना चाहिये मुझे मौत से डर नहीं लेकिन भारत माता के लिये, व हिन्दुत्व के लिये बिना कुछ किये मर जाउ वो असहनीय है।
मै गांधी के अहिंसा सिद्धान्तों का उतना विरोधी नहीं जितना उनके मुस्लिम प्रेम का, गांधी के किये कार्यो से हिन्दू धर्म कि अधिकाधिक हानि हो रही थी, 32 वर्षो से गांधी मुसलमानो के पक्ष में जो कार्य कर रहे थे और अन्त में पाकिस्तान को 55 करोड दिलाने के लिए अनशन करने का निष्चय किया, तब मैने भी निशचय कर लिया कि गांधी को समाप्त कर देना चाहिये मुझे मौत से डर नहीं लेकिन भारत माता के लिये, व हिन्दुत्व के लिये बिना कुछ किये मर जाउ वो असहनीय है।
’’ मेरी अस्थियॉं तब तक नहीं प्रवाहित करना जब तक सिन्धु नदी भारत ध्वज के तले ना बहने लगे ’’
प्रशन जो सोचने के लिए मजबूर करते है -
क्या आप जानते है कि -
30जनवरी को यदि गांधी को मारा नहीं होता तो 3फरवरी 1948 को देश का एक आैर विभाजन होना पक्का था।
जिन्ना की मांग थी कि पशिचम पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत समय लगता है आैर हवाई जहाज से जाने की सभी की आैकात नहीं तो हमको बिल्कुल बीच भारत से एक कोरिडोर बना कर दिया जाए जो --
- लाहोर से ढाका तक जाता हो ।
- दिल्ली के पास से जाता हो।
- जिसकी चौडाई कम से कम 10 मील यानि 16 किलोमीटर हो
- इस को दोनो आैर सिफर् मुस्लिम बस्तियां ही बनेगी।
इन परिस्थितियों मै सभी हिन्दुस्तानी इस सत्य से परिचित थे कि एक आैर विभाजन निशिचत है।
" यदि देश-भक्ति पाप है तो मै मानता हू मैने पाप किया है। यदि प्रशंसनीय है तो मै अपने आपको उस प्रंशसा का अधकिारी समझता हू। मुझे विश्वास है कि मनुष्यों द्वारा स्थापित न्यायालय के ऊपर न्यायालय हो तो उसमें मेरे काम को अपराध नहीं समझा जाएगा। मैने देशा आैर जाति की भलाई के िलए यह काम किया। मैने उस पर गोली चलाई जिसकी नीति से हिन्दुआें पर घोर संकट आए, हिन्दू नष्ट हुए। " यह वाक्य न्यायालय में कहे थे।
जस्टीस खोसला ने फैसले में लिखा था " I have however no doubt that had the audience of that day been constituted into a jury and entrusted with the task of deciding Godse's appeal, they would have brought in a verdict of 'not guilty' by overwhelming majority "
JUSTICE KHOSLA ( The murder of the Gandhi (page 234) )
अब आप ही सोचे कि नाथूराम देश भक्त थे या कातिल फैसला आप का ..............
पढे
भगत सिंह , सुख देव , राजगुरु
सुखदेव द्वारा गाँधी के नाम लिखी चिट्ठी
गांधी के बारे में सोच
गांधी वध क्यों किताब डाउनलोड करे
आप ही सोचे गांधी को क्या कहा जा सकता है................................................?
- कांग्रेस ने न्यायालय के समक्ष नाथुराम के वक्तव्य को भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित क्यों कर दिया ?
- उनकी लिखी किताब रखने पर क्यों प्रतिबंध लगाया। जाहीर है कि आम हिन्दुस्तानी को सच्चाई मालुम पड जाती।
- क्या सिर्फ गांधी के कारण ही देश आजाद हुआ ? सब जगह आज तक डिडोरा पीटा जाता है कि गांधी के कारण देश आजाद हुआ।
- क्या कोई भी हुकुमत आदाेंलन से भय खाती थी, या क्रान्तिकारीयों से भय खाती थी ?
- क्या जो मातृभूमि के लिये शहीद हुए थे उनका कोई वजूद नहीं है ?
- नाथूराम गोडसे को सह-अभियुक्त नारायण आप्टे के साथ 15नवम्बर1949 को पंजाब की अम्बाला जेल में फॉसी पर लटका कर मार दिया गया।
" यदि देश-भक्ति पाप है तो मै मानता हू मैने पाप किया है। यदि प्रशंसनीय है तो मै अपने आपको उस प्रंशसा का अधकिारी समझता हू। मुझे विश्वास है कि मनुष्यों द्वारा स्थापित न्यायालय के ऊपर न्यायालय हो तो उसमें मेरे काम को अपराध नहीं समझा जाएगा। मैने देशा आैर जाति की भलाई के िलए यह काम किया। मैने उस पर गोली चलाई जिसकी नीति से हिन्दुआें पर घोर संकट आए, हिन्दू नष्ट हुए। " यह वाक्य न्यायालय में कहे थे।
जस्टीस खोसला ने फैसले में लिखा था " I have however no doubt that had the audience of that day been constituted into a jury and entrusted with the task of deciding Godse's appeal, they would have brought in a verdict of 'not guilty' by overwhelming majority "
JUSTICE KHOSLA ( The murder of the Gandhi (page 234) )
अब आप ही सोचे कि नाथूराम देश भक्त थे या कातिल फैसला आप का ..............
पढे
भगत सिंह , सुख देव , राजगुरु
सुखदेव द्वारा गाँधी के नाम लिखी चिट्ठी
गांधी के बारे में सोच
गांधी वध क्यों किताब डाउनलोड करे
No comments:
Post a Comment
धन्यवाद
Note: Only a member of this blog may post a comment.