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14 July 2016

आरक्षण अंग्रेजो द्वारा हिन्दुआें को तोडने एंव संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्य की प्राप्ति का एक साधन है।

हिन्दुआें की ताकत को तोडने के लिए ब्रिटिश सरकार ने जाति जनगणना करवाई आैर मद्रास प्रेसीडेंसी द्वारा इसे लागू करवाने का प्रयास किया था।

7 अगस्त 1990 हिन्दूआें का काला दिवस जिस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का आदेश दिया था।

भारत के संविधान में जातियों को संरक्षण या आरक्षण देने की बात कहीं भी नहीं कही गई है, बरहाल अनुसूचित जाति शब्द का प्रयोग जरूर हुआ है लेकिन हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि अनुसूचित नाम की कोई जाति भारत में नहीं है।

इतिहास गवाह है कि हिटलर जैसा प्रभावी नेता ने नस्लवाद का जहर फैलाकर जर्मन के जनतंत्र का ही बेड़ा गर्क कर दिया। ठीक उसी तर्ज पर हमारे  नेता जातिवाद का जहर फैला भारतीय लोकतंत्र को खोखला कर तहस-नहस कर रहे हैं 
भारत में आरक्षण के लिये जाति निर्धारण का पैमाना क्या है किसी को भी नही पता बस हम सब आरक्षण की इस अंधी दौड़ में हर कोई अपने को हर कीमत पर सम्मिलित कराना चाहता है।बडे प्रख्यात विद्धवान, अधिवक्ता   कानून के ज्ञाता, देश-प्रेमी आज तक इस बात का पता नहीं लगवा पा रहे है की जाति निर्धारण का पैमाना क्या है। 
वर्ण व्यवस्था मूलतः कर्म आधारित ही थी ।। आज भले ही आरक्षण प्राप्त कलेक्टर, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या अच्छे ओहदे पर हैं लेकिन जन्मजाति से शूद्र है तो संवधिान के अनुसार ‘अनुसूूचित जाति’ के है तो आरक्षण के पूर्ण अधिकारी है,  अब भला इनके बच्चों को आरक्षण की क्या आवश्यकता ?  बस यहीं से आरक्षण की गलत दिशा तय हो गई जानबूझ कर मात्र वोट के लालच में।।


आरक्षण से नुकसान क्या होगा  -
  1. प्रथम तो यह समानता के अधिकार के विपरीत है। (अब बीजेपी समान नागरिक संहिता का मुददा् बना आम आवाम को बेवकुफ बना कर यू.पी. म चुनाव जीतने का प्रयास कर रही है)
  2. आरक्षण किसी की  मदद नहीं कर सकता है , सिर्फ अप्रतिभाआें के भानुमती का पिटारा खुला है सिर्फ आैर सिर्फ प्रतिभाशाली युवाआें को गर्त में डाल दिया  है।
  3. सरकार की इस नीति के कारण पहले से ही प्रतिभा पलायन  में वृद्धि हुई है।  (सरकार अब मेक इन इंण्डिया जैसा लुभावना नारा दे रही है) यह कहा तक उचित है ? मेरा मानना है की प्रतिभाआें को हिन्दुस्तान में रहना ही नहीं चाहिए।।   परन्तु वोटो के लालचीयों मोटी चमडी वालो को इससे कोई फर्क नहीं पडेगा। 
  4. आरक्षण ने चुनावों को जातियों को एक-दूसरे के खिलाफ बदला लेने के गर्त में डाल दिया है और इसने भारतीय हिन्दू समाज को विखंडित कर रखा है। क्योंकी मेरा मानना है की यह धर्म के हत्यारे है।
  5. हमारे इन नेताआें से पूछो की राष्ट्र बड़ा या जाति बड़ी ? आज के हिसाब से जाति बडी राष्ट्र की एेसी की तैसी।।देश प्रेम इनमें दूर-दूर तक नहीं है यह कुर्सी प्रेमी है।
आैर भी कई अनगिनत नुकसान है।

विधान सभा, संसद और सड़क से लेकर क़ानून की अदालतों में इसका जोरदार विरोध, कई छात्रों ने आत्महत्या की इसके बावजूद भी भारत की न्यायपालिका ने हमेशा जाति आधारित आरक्षण को संविधान सम्मत घोषित किया। 

कारण स्पष्ट है की - न्यापालिका सरकार के कब्जे में है। इस तरह की न्यायपालि का पर क्या भरोसा किया जा सकता है।

जब छात्र आत्महत्या कर रहे थे व जोरदार विरोध हो रहा था उस समय एक हिन्दूस्तान की हस्ती महेन्द्र सिंह टिकैट ( उत्तर प्रदेश के किसान नेता तथा भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष) ने लोगो से आवाहन किया था की वह आत्महत्या न करे बल्कि उनहे मारे जो इसे लागू करवा रहे है, सत्ता के भूखे नेता गली के छुट भैये नेता कई दिनों तक डर से भूमिगत हो गये थे।।

ज्यादातर हिन्दू  ही अंग्रेजों को हिन्दूस्तान से भगाने के लिए क्रान्ति कर रहे थे।  हिन्दू जाति से बदला लेने के उदेशय से अंग्रेजों ने जाति जनगणना करवाई।  जिससे हिन्दूआें को बाट दिया जाये। वो योजना उनकी सफल हुई।

अंग्रजों द्वारा रची गई साजिश -

हर हिन्दूस्तानी जानता है की अंग्रेज कितने कमीने- मक्कार फितरती थे। अंग्रेजों के हिन्दुस्तान छोडने के बाद हिन्दू चैन से न बैठे यह योजना उनकी सफल हो गई। अंग्रेजों ने इस तरह की साजिश को अंजाम दिया।

आज भी आरक्षण प्राप्त लोग, इसे लागू करने के पीछे एक बड़ा कारक अँगरेज़ सरकार को मानते है।  एक अंग्रेज लेखक ने सही कहा था कि जिन लोगों के हाथों में आप सत्ता सौंप रहे हैं, वे मात्र 30-40 साल में सब कुछ चौपट करके रख देंगे। आज हालत यही है।


पढे आैर समझे

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