
भगवान शिव ने पांडवो को लिंग रूप में दर्शन दिए थे :

पांचो भाई भगवान श्री कृष्ण के कथनानुसार काली ध्वजा हाथ में लिए काली गाय का अनुसरण करने लगे। इस क्रम में वो सब कई दिनों तक अलग अलग जगह गए लेकिन गाय और ध्वजा का रंग नहीं बदला। लेकिन जब वो वर्तमान गुजरात में स्तिथ कोलियाक तट पार पहुंचे तो गाय और ध्वजा का रँग सफ़ेद हो गया। इससे पांचो पांडव भाई बहुत खुश हुए और वही पर भगवान शिव का ध्यान करते हुए तपस्या करने लगे।
भगवान भोले नाथ उनकी तपस्या से खुश हुए ओर पांचो भाइयों को लिंग रूप में अलग-अलग दर्शन दिए। वही पांचो शिवलिंग अभी भी वही स्थित हैं। पांचो शिवलिंग के सामने नंदी की प्रतीमा भी हैं। पाँचों शिवलिंग एक वर्गाकार चबूतरे पर बने हुए है। तथा यह कोलियाक समुद्र तट से पूर्व की औऱ 3 किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्थित है। इस चबूतरे पर एक छोटा सा पानी का तालाब भी हैं जिसे पांडव तालाब कह्ते हैं। श्रदालु पहले उसमे अपने हाथ पाँव धोते है और फिर शिवलिंगो की पूजा अर्चना करते है।
चुकी यहाँ पर आकर पांडवो को अपने भाइयों के कलंक से मुक्ति मिली थी इसलिए इसे निष्कलंक महादेव कहते है।
प्रत्येक अमावस के दिन इस मंदिर में भक्तों की विशेष भीड़ रहती है। हालांकि पूर्णिमा और अमावस के दिन ज्वार अधिक सक्रिय रहता है फिर भी श्रद्धालु उसके ऊतर जाने इंतज़ार करते है और फिर भगवान शिव का दर्शन करते है। लोगो की ऐसी मान्यता है कि यदि हम अपने किसी प्रियजन की चिता कि राख शिवलिंग पर लगाकार जल में प्रवाहीत कर दें तो उसको मोक्ष मिल जाता है। मंदिर में भगवान शिव को राख़, दूध, दही और नारियल चढ़ाये जाते है।
सालाना प्रमुख मेला 'भाद्रवी' भावनगर के महाराजा के वंशजो के द्वारा मंदिर कि पताका फहराने से शुरू होता है और फिर यही पताका मंदिर पर अगले एक साल तक फहराती है। और यह भी एक आश्चर्य की बात है की साल भर एक ही पताका लगे रहने के बावज़ूद कभी भी इस पताका को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। यहाँ तक की 2001 के विनाशकारी भूकम्प में भी कोई नुकसान नहीं हुआ जबकी यहाँ 50000 लोग मारे गए थे।
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