Translate

आप के लिए

हिन्दुस्तान का इतिहास-.धर्म, आध्यात्म, संस्कृति - व अन्य हमारे विचार जो आप के लिए है !

यह सभी को ज्ञान प्रसार का अधिकार देता है। यह एेसा माध्यम है जो आप के विचारों को समाज तक पहुचाना चाहाता है । आप के पास यदि कोई विचार हो तो हमे भेजे आप के विचार का सम्मान किया जायेगा।
भेजने के लिए E-mail - ravikumarmahajan@gmail.com

28 November 2015

स्तंभेश्वर महादेव - शिव पुत्र कार्तिकेय ने की थी स्थापना , दिन में दो बार नज़रों से ओझल होता है यह मंदिर

गुजरात में वडोदरा से 85 किमी दूर स्थित जंबूसर तहसील के कावी-कंबोई गांव का यह मंदिर अलग ही विशेषता रखता है। 


स्तंभेश्वर नाम का यह मंदिर दिन में दो बार सुबह और शाम को पल भर के लिए ओझल हो जाता है और कुछ देर बाद उसी जगह पर वापस भी आ जाता है। 


ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है और मंदिर तक कोई नहीं पहुंच सकता। यह प्रक्रिया सदियों से चली आ रही है। मंदिर अरब सागर के बीच कैम्बे तट पर स्थित है। इस तीर्थ का उल्लेख ‘श्री महाशिवपुराण’ में रुद्र संहिता भाग-2, अध्याय 11, पेज नं. 358 में मिलता है।




मंदिर में स्थित शिवलिंग का आकार 4 फुट ऊंचा और दो फुट के व्यास वाला है। इस प्राचीन मंदिर के पीछे अरब सागर का सुंदर नजारा दिखाई पड़ता है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खासतौर से पर्चे बांटे जाते हैं, जिसमें ज्वार-भाटा आने का समय लिखा होता है। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को परेशानियों का सामना न करना पड़े।




पौराणिक मान्यता:

राक्षक ताड़कासुर ने अपनी कठोर तपस्या से शिव को प्रसन्न कर लिया था। जब शिव उसके सामने प्रकट हुए तो उसने वरदान मांगा कि उसे सिर्फ शिव जी का पुत्र ही मार सकेगा और वह भी छह दिन की आयु का। शिव ने उसे यह वरदान दे दिया था। वरदान मिलते ही ताड़कासुर ने हाहाकार मचाना शुरू कर दिया। देवताओं और ऋषि-मुनियों को आतंकित कर दिया। अंतत: देवता महादेव की शरण में पहुंचे। शिव-शक्ति से श्वेत पर्वत के कुंड में उत्पन्न हुए शिव पुत्र कार्तिकेय के 6 मस्तिष्क, चार आंख, बारह हाथ थेकार्तिकेय ने ही मात्र 6 दिन की आयु में ताड़कासुर का वध किया।


जब कार्तिकेय को पता चला कि ताड़कासुर भगवान शंकर का भक्त था, तो वे काफी व्यथित हुए। फिर भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा कि वे वधस्थल पर शिवालय बनवा दें।  इससे उनका मन शांत होगा। भगवान कार्तिकेय ने ऐसा ही किया,  फिर सभी देवताओं ने मिलकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की, जिसे आज स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है।

श्चिम भाग में स्थापित स्तंभ में भगवान शंकर स्वयं विराजमान हुए. तब से ही इस तीर्थ को स्तंभेश्वर कहते हैं. यहां पर महिसागर नदी का सागर से संगम होता है. स्तंभेश्वर के मुख्य मंदिर के नजदीक ही भगवान शिव का एक और मंदिर तथा छोटा सा आश्रम भी है जो समुद्र तल से 500 मी. की ऊंचाई पर है.


यहां पर श्रद्धालुओं के लिए हर तरह की सुविधाएं मौजूद हैं जैसे- कमरे, छोटी सी रसोई जो साल भर पारंपरिक गुजराती भोजन मुफ्त में प्रदान करती है. इस मंदिर का वातावरण बहुत शांत और आध्यात्मिक रहता है.
अगर कोई श्रद्धालु ध्यान और योगा में दिलचस्पी रखता है तो यह बेहतर स्थल है. यहां के आश्रम में एक रात रुकने पर श्रद्धालु को रात्रि के शांत वातावरण में भगवान शिव के संपूर्ण वैभव के दर्शन मिल सकते हैं !!





No comments:

Post a Comment

धन्यवाद

Note: Only a member of this blog may post a comment.