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27 November 2015

कैलाश मानसरोवर जहा सूर्य की किरणें पड़ते ही सुनहरा हो जाता है , बनती है ॐ की आकृति

''हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थान प्रचक्षते॥- (बृहस्पति आगम) अर्थात : हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।

कैलाश मानसरोवर : 
कैलाश पर्वत और मानसरोवर को धरती का केंद्र माना जाता है। यह हिमालय के केंद्र में है। मानसरोवर वह पवित्र जगह है, जिसे शिव का धाम माना जाता है। मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं। यह हिन्दुओं का लिए प्रमुख तीर्थ स्थल है। 

संस्कृत शब्द मानसरोवर, मानस तथा सरोवर को मिल कर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- मन का सरोवर।

कैलाश क्षेत्र : 

इस क्षेत्र को स्वंभू कहा गया है। वैज्ञानिक मानते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप के चारों और पहले समुद्र होता था। इसके रशिया से टकराने से हिमालय का निर्माण हुआ। यह घटना अनुमानत: 10 करोड़ वर्ष पूर्व घटी थी।


इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का अद्भुत समागम होता है, जो ‘ॐ’ की प्रतिध्वनि करता है।
इस पावन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक प्रतिबिंबित होती है। कैलाश पर्वत की तलछटी में कल्पवृक्ष लगा हुआ है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है।


भगवान शिव के दर्शन करने हर साल हजारों श्रद्धालु इन कठिन रास्तों की परवाह किए बिना कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाते हैं। कैलाश मानसरोवर यात्रा में हर कदम बढ़ाने पर दिव्यता का अहसास होता है। ऐसा लगता है मानो एक अलग ही दुनिया में आ गए हों। 
कैलाश मानसरोवर का नाम सुनते ही मन में श्रद्धा और भक्ति की भावना जागृत हो जाती है। वहा जाना कठिन होता है। 












सूर्य की पहली किरणें जब कैलाश पर्वत पर पड़ती हैं तो एेसा लगता है की सोने का पहाड हो । इसके अलावा कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान  पर्वत पर बर्फ से बने  साक्षात ॐ  के दर्शन होते है। 


कैलाश मानसरोवर का महत्व- 
कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर है। सदियों से देवता, दानव, योगी, मुनि और सिद्ध महात्मा यहां तपस्या करते आए हैं। 
जो व्यक्ति मानसरोवर (झील) की धरती को छू लेता है, वह ब्रह्मा के बनाये स्वर्ग में पहुंच जाता है और जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है, उसे भगवान शिव के बनाये स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है। जनश्रुति यह भी है कि ब्रह्मा ने अपने मन-मस्तिष्क से मानसरोवर बनाया है। 
मानसरोवर संस्कृत के मानस (मस्तिष्क) और सरोवर (झील) शब्द से बना है। मान्यता है कि ब्रह्ममुहुर्त (प्रात:काल 3 - 5 बजे) में देवता गण यहां स्नान करते हैं. ग्रंथों के अनुसार, सती का हाथ इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह झील तैयार हुई।  
इसलिए इसे 51 शक्तिपीठों में से भी एक माना गया है. गर्मी के दिनों में जब मानसरोवर की बर्फ पिघलती है, तो एक प्रकार की आवाज भी सुनाई देती है। श्रद्धालु मानते हैं कि यह मृदंग की आवाज है। एक किंवदंती यह भी है कि नीलकमल केवल मानसरोवर में ही खिलता और दिखता है।

क़ैलाश मानसरोवर की यात्रा- 

हर वर्ष मई-जून महीने में भारत सरकार के सौजन्य से की जाती है।  क़ैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए तीर्थयात्रियों को भारत की सीमा लांघकर चीन में प्रवेश करना पड़ता है क्योंकि यात्रा का यह भाग चीन में है। कैलाश पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 20 हजार फीट है। यह यात्रा अत्यंत कठिन मानी जाती है। कहते हैं जिसको भोले बाबा का बुलावा होता है वही इस यात्रा को कर सकता है। सामान्य तौर पर यह यात्रा 28 दिन में पूरी होती है। कैलाश पर्वत कुल 48 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। कैलाश पर्वत की परिक्रमा वहां की सबसे निचली चोटी दारचेन से शुरू होकर सबसे ऊंची चोटी डेशफू गोम्पा पर पूरी होती है। यहां से कैलाश पर्वत को देखने पर ऐसा लगता है, मानों भगवान शिव स्वयं बर्फ से बने शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इस चोटी को हिमरत्न भी कहा जाता है।

भारत और चीन की नदियों का उद्गभ स्‍थल है : कैलाश पर्वत की चार दिशाओं से चार नदियों का उद्गम हुआ है ब्रह्मपुत्र, सिंधू, सतलज व करनाली । इन नदियों से ही गंगा, सरस्वती सहित चीन की अन्य नदियां भी निकली है।

कैलाश के चारों दिशाओं में विभिन्न जानवरों के मुख है जिसमें से नदियों का उद्गम होता है, पूर्व में अश्वमुख है, पश्चिम में हाथी का मुख है, उत्तर में सिंह का मुख है, दक्षिण में मोर का मुख है।

हालांकि कैलाश मानसरोवर से जुड़ें हजारों रहस्य पुराणों में भरे पड़े हैं। शिव पुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण आदि में कैलाश खंड नाम से अलग ही अध्याय है जहां कि महिमा का गुणगान किया गया है। यहां तक पहुंचक ध्यान करने वाले को मोक्ष प्राप्त हो जाता है। भारतीय दार्शनिकों और साधकों का यह प्रमुख स्थल है। यहां की जाने वाली तपस्या तुरंत ही मोक्ष प्रदान करने वाली होती है।


मौत का सफर : स्वर्ग जैसे इस स्थान पर सिर्फ ध्यानी और योगी लोग ही रह सकते हैं या वह जिसे इस तरह के वातावरण में रहने की आदत है। यहां चारों तरफ कल्पना से भी ऊंचे बर्फीले पहाड़ हैं। जैसे कुछ पहाड़ों की ऊंचाई 3500 मीटर से भी अधिक है। कैलाश पर्वत की ऊंचाई तो 22028 फुट हैं। आपको 75 किलोमीटर पैदल मार्ग चलने चलने और पहाड़ियों पर चढ़ने के लिए तैयार रहना रहना होगा। इसके लिए जरूरी है कि आपका शरीर मजबूत और हर तरह के वातावरण और थकान को सहन करने वाला हो। 

हालांकि मोदी सरकार ने चीन से बात करने अब नाथुरा दर्रा से यात्रा करने की अनुमति ले ली है, तो अब कार द्वारा भी वहां पहुंचा जा सकेगा। फिर भी 10-15 किलोमिटर तक तो पैदल चलने के लिए तैयार रहें। कार से जाएं या पैदल यह दुनिया का सबसे दुर्गम और खतरनाक स्‍थान है। यहां सही सलामत पहुंचना और वापस आना तो शिव की मर्जी पर ही निर्भर रहता है। नीचे एक बार खाईयों में झांकने पर जमीन नजर नहीं आती है।

आवश्यक सलाह : 

यहां पर ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम हो जाती है, जिससे सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ आदि परेशानियां प्रारंभ हो सकती हैं। इन परेशानियों की वजह शरीर को नए वातावरण का प्रभावित करना है। यहा का तापमान शू्न्य से नीचे -2 सेंटीग्रेड तक हो जाता है। इसलिए सेंटीग्रेड ऑक्सीजन सिलेंडर भी साथ होना जरूरी है। साथ ही एक सीटी व कपूर की थैली आगे पीछे होने पर व सांस भरने पर उपयोग की जाती है। आवश्यक सामग्री, गरम कपड़े आदि रखे और अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार घोड़े पिट्टू किराए से लें।

उत्तराखंड से शुरु होने वाली यात्रा :


भगवान शिव के इस पवित्र धाम की यह रोमांचकारी यात्रा भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों द्वारा आयोजित की जाती है। इधर इस सीमा का संचालन भारतीय सीमा तक कुमाऊं मण्डल विकास निगम द्वारा की जाती है, जबकि तिब्बती क्षेत्र में चीन की पर्यटक एजेंसी इस यात्रा की व्यवस्था करती हैं। अंतरराष्‍ट्रीय नेपाल-तिब्बत-चीन से लगे उत्तराखंड के सीमावर्ती पिथौरागढ़ के धारचूला से कैलाश मानसरोवर की तरफ जाने वाले दुर्गम व 75 किलोमीटर पैदल मार्ग के अत्यधिक खतरनाक होने के कारण यह यात्रा बहुत कठिन होती है।

लगभग एक माह चलने वाली पवित्रम यात्रा में काफी दुरुह मार्ग भी आते हैं अक्टूबर से अप्रैल तक इस क्षेत्र के सरोवर व पर्वतमालाएं दोनों ही हिमाच्छादित रहते हैं। सरोवरों का पानी जमकर ठोस रूप धारण किए रहता है। जून से इस क्षेत्र के तामपान में थोड़ी वृद्धि शुरू होती है।

नेपाल के रास्ते यहां तक पहुंचने में करीब 28 से 30 दिनों तक का समय लगता है। अर्थात यह यात्रा यदि कोई व्यवधान नहीं हुआ तो घर से लेकर पुन: घर तक पहुंचने में कम से कम 45 दिनों की होती है।

अब हिमाचल-सिक्कीम से : 


चीन से कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए हिमाचल प्रदेश के शिपकी ला पास से होकर गुजरने वाले मार्ग को मानसरोवर यात्रा के लिए खोले जाने के लिए चर्चा हुई है। हिमाचल के किन्नौर से गुजरने वाला यह मार्ग मौजूदा उत्तराखंड के यात्रा मार्ग के मुकाबले कम दूरी का है। आप सीधे सिक्किम पहुंचकर भी यात्रा शुरू कर सकते हैं। कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए नाथुला दर्रा भारत और तिब्बत के बीच एक बड़ा आवा-जाही का गलियारा था जिसे 1962 के युद्ध के बाद बंद कर दिया गया।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि नाथुला के रास्ते से कई सुविधाएं हैं। इससे मोटर से कैलाश मानसरोवर तक यात्रा की जा सकती है, इससे विशेषकर बूढे तीर्थयात्रियों को लाभ होगा। तीर्थयात्रा कम समय में पूरी की जा सकेगी और भारत से काफी संख्या में तीर्थयात्री वहां जा सकेंगे। कई मायनों में यह नया रास्ता बरसात के मौसम में भी सुरक्षित होगा।

1. भारत से सड़क मार्ग। भारत सरकार सड़क मार्ग द्वारा मानसरोवर यात्रा प्रबंधित करती है। यहां तक पहुंचने में करीब 28 से 30 दिनों तक का समय लगता है। यहाँ के लिए सीट की बुकिंग एडवांस भी हो सकती है और निर्धारित लोगों को ही ले जाया जाता है, जिसका चयन विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है।

२. वायु मार्ग: वायु मार्ग द्वारा काठमांडू तक पहुंचकर वहां से सड़क मार्ग द्वारा मानसरोवर झील तक जाया जा सकता है।

3. कैलाश तक जाने के लिए हेलिकॉप्टर की सुविधा भी ली जा सकती है। काठमांडू से नेपालगंज और नेपालगंज से सिमिकोट तक पहुंचकर, वहां से हिलसा तक हेलिकॉप्टर द्वारा पहुंचा जा सकता है। मानसरोवर तक पहुंचने के लिए लैंडक्रूजर का भी प्रयोग कर सकते हैं।

4. काठमांडू से लहासा के लिए ‘चाइना एयर’ वायुसेवा उपलब्ध है, जहां से तिब्बत के विभिन्न कस्बों- शिंगाटे, ग्यांतसे, लहात्से, प्रयाग पहुंचकर मानसरोवर जा सकते हैं।

5. लेकिन अब नाथुरा दर्रा वाला मार्ग जब खोल दिया जाएगा तो उपरोक्त रास्तों के अलावा आप उत्तराखंड के बजाय सिक्किम या हिमाचल से भी यह यात्रा शुरु कर सकते हैं। उक्त दोनों राज्यों के पर्यटन मंत्रालयों से इस संबंध में संपर्क किया जा सकता है।


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