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14 April 2018

गांधी को राष्ट्र-पिता बोलना क्या हमारे राष्ट्र का अपमान नहीं है ?

पिता का अर्थ होता है - 
जन्मदाता,  किसी भी शख्स के वजूद की पहचान,  पालनहार !
  
देश में जन्मा हर व्यक्ति देश को अपनी मां मानता है और राष्ट्र देश से प्रेम रखने वाला हर व्यक्ति भारत माता की जय के नारे लगाता है।
  
भारत देश लाखों साल पहले से ही मौजुद है। दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम से देश का नाम भारत हुआ।

भारत में जन्मे हर व्यक्ति की भारत मां है तो थोडे समय पहले २ अक्टुबर १८६९ को जन्मा गांधी देश का राष्ट्रपिता कैसे हो गया ?

सबसे बडा सवाल है कि -  

गांधी राष्ट्रपिता कैसे हो गया ? 
किसने पहली बार गांधी को राष्ट्रपिता बोला ?

30 जनवरी, 1948 को गांधी का वध होने के बाद प्रधानमंत्री नेहरू ने रेडियो पर राष्ट्र को संबोधित किया और कहा कि ‘राष्ट्रपिता अब नहीं रहे।  
  • गांधी का झूठा महिमामंडन कर जबरदस्ती राष्ट्रपिता बना दिया।
   
क्या गांधी ने भारत की स्थापना की थी ?

भारत राष्ट्र में जन्मा हर व्यक्ति राष्ट्रपुत्र है,   गांधी ने भी तो इसी देश में जन्म लिया था। राष्ट्र में जन्मा राष्ट्रपुत्र हो सकता है राष्ट्र का पिता नहीं। 
गांधी ना तो हमारे देश का जन्मदाता था  और  न ही वजूद की पहचान आैर  न ही पालनहार था।

राष्ट्र से बडा कोई नहीं हो सकता।

गांधी पाकिस्तान का राष्ट्रपिता हो सकता है क्योंकि गांधी ने पाकिस्तान बनवाया भारत नहीं।

गांधी को राष्ट्रपिता कहना राष्ट्र का अपमान है। क्योंकि  भारत को हम सभी भारत माता कहते है।

सूचना के अधिकार के तहत  पुछे गए सवाल   " गांधी को 'राष्ट्रपिता' क्यों कहा जाता है और क्या उन्हें यह उपाधि दी गई है. "  के जवाब में मंत्रालय ने कहा कि -   गांधी को ऐसी कोई उपाधि नहीं दी गई है।

देश का संविधान शैक्षिक और सैन्य उपाधि के अलावा कोई और उपाधि देने की इजाजत नहीं देता।.

अधिकारिक रुप से गांधी राष्ट्रपिता नहीं है। 

कैसे मान लिया जाए की 
  • गांधी ने देशवासियों को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना सिखाया।
  • बिना किसी हिंसा के अंग्रेजी हुकूमत से भारत को आजादी दिलवाई। 
  • गांधी ने देश के क्रांति कारी वीरों को अंग्रेजों को खुश करने के लिए आंतकवादी तक बतलाया।

 एक गाना बनाया गया जिसमें कहा गया है कि -  

" दे दी आजादी हमें बिना खड्ग बिना ढाल के सागरमति के संत तुने कर दिया कमाल " 

आप सभी जानते है कि मात्र शांति का भाषण देने से आजादी नहीं मिली , कई वीरों ने अपना लहु बहाया था। 



एक चटुकार पत्रकार ने  बापू कह दिया तो कांग्रेस ने गांधी के वध के बाद बापू कहना चालू कर दिया।

(सन् 1857 में राष्ट्रध्वज की सलामी के समय जगह-जगह में यह गीत गाया जाता था। मूल गीत 57 क्रांति-अखबार च् पयामे-आजादी छ में छपाया गया था। जिसकी एक नकल ब्रिटिश म्युजियम लंदन में आज भी मौजूद है।)


"हम है इसके मालिक, हिन्दुस्तान हमारा,
पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा।
ये है हमारी मिल्कियत, हिन्दुस्तान हमारा,
इसकी रू हानियत से, रौशन है जग सारा;
कितना कदीम कितना नईम, सब दुनिया से न्यारा,
करती है जरखेज जिसे, गंगो-जमन की धारा।"

देश के क्रांति कारीयों के सशस्त्र विद्रोह के कारण देश आजाद हुआ न की गांधी की वजह से देश आजाद हुआ 

कैसा दुर्भाग्य है जिन शहीदों के प्रयत्नों व त्याग से हमें स्वतंत्रता मिली, उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला। अनेकों को स्वतंत्रता के बाद भी गुमनामी का अपमानजनक जीवन जीना पड़ा। ये शब्द उन्हीं पर लागू होते हैं -

उनकी तुरबत पर नहीं है एक भी दीया,
जिनके खूँ से जलते हैं ये चिरागे वतन।
जगमगा रहे हैं मकबरे उनके,
बेचा करते थे जो शहीदों के कफन।।
1948 में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री एटली ने भी यह स्वीकारा है कि भारत से ब्रिटेन के हटने की वजह गांधी नहीं,  सुभाष चंद्र बोस थे,  जिनकी वजह से ब्रिटिश नौ सेना में मौजूद भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था। ब्रिटिश सेना में मौजूद 25 लाख भारतीय सैनिक सुभाष चंद्र बोस के ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा” के आहवान पर अपनी जान की बाजी लगाने को तैयार थे।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन् 1857 में शुरू हुआ था। 

सशस्त्र क्रांति का प्रगतिशील युग 
इस युग को ‘भगतसिंह-चन्द्रशेखर आजाद युग’ के नाम से जाना जाता है। भगतसिंह क्रांतिपथ के मील के पत्थर की भाँति थे। इन लोगों ने ‘हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ’ का नाम बदलकर ‘हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ’ कर दिया। इनके प्रगतिशील कार्य थे —
(१) अखिल भारतीय स्तर पर क्रांति संगठन खड़ा करना,
(२) क्रांति संगठन को धर्मनिरपेक्ष स्वरूप प्रदान करना,
(३) समाजवादी समाज की स्थापना का संकल्प करना,
(४) क्रांतिकारी आंदोलन को जन आंदोलन का स्वरूप प्रदान करना,
(५) महिला वर्ग को क्रांति संगठन में प्रमुख स्थान प्रदान करना।

इस युग में भारत की आजादी के लिए जो प्रयत्न किए गए, वे अहिंसात्मक आंदोलनकारियों और क्रांतिकारियों द्वारा मिलजुलकर किए गए। इस आंदोलन के दो प्रमुख चरण थे-

अगस्त क्रांति   सन् 1942 का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’
सन् 1942 में व्यापक जनक्रांति फूट पड़ी। ब्रिटिश शासन ने 9 अगस्त सन् 1942 को महात्मा गाँधी और सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार करके जेलों में डाल दिया। गाँधी जी द्वारा ‘करो या मरो’ का नारा दिया जा चुका था जो कि उस सदी का सबसे बडा झूठ था। 
सशस्त्र क्रांति के समर्थक, जो ‘सत्याग्रह आंदोलन’ में विश्वास नहीं रखते थे, वे भी इस आंदोलन में कूद पड़े और तोड़-फोड़ का कार्य करने लगे। संचार व्यवस्था भंग करने के लिए तार काट दिए गए और सेना का आवागमन रोकने के लिए रेल की पटरियाँ उखाड़ी जाने लगीं। ब्रिटिश शासन ने निर्ममतापूर्वक इस आंदोलन को कुचल डाला। हजारों लोग गोलियों के शिकार हुए। 
अब खुद ही सोचे की अगर अहिसां पर विशवास था तो यह सब आम हिन्दुस्तानियों ने क्यों किया ?

दक्षिण-पूर्व एशिया में आजाद हिंद आंदोलन

द्वितीय विश्वयुद्ध के दिनों से ही भारत के क्रांतिकारी नेता सुभाषचंद्र बोस अपनी योजना के अनुसार ब्रिटिश जासूसों की आँखों में धूल झोंककर अफगानिस्तान होते हुए जर्मनी जा पहुँचे। जब विश्वयुद्ध दक्षिण-पूर्व एशिया में उग्र हो उठा और अंग्रेज जापानियों से हारने लगे, तो सुभाषचंद्र बोस जर्मनी से जापान होते हुए सिंगापुर पहुँच गए तथा आजाद हिंद आंदोलन के सारे सूत्र अपने हाथ में ले लिये। उन्हें ‘नेताजी’ के संबोधन से पुकारा जाने लगा। आजादहिंद आंदोलन के प्रमुख अंग थे—आजाद हिंद संघ, आजाद हिंद सरकार, आजाद हिंद फौज, रानी झाँसी रेजीमेंट, बाल सेना, आजाद हिंद बैंक और आजाद हिंद रेडियो।
आजाद हिंद फौज ने कई लड़ाइयों में अंग्रेजी सेनाओं को परास्त किया तथा मणिपुर एवं कोहिमा क्षेत्रों तक पहुँचने और भारतभूमि पर तिरंगा झंडा फहराने में सफलता प्राप्त की।

नेताजी सुभाष के विषय में सुना गया कि मोरचा बदलने के क्रम में विमान दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण 18 अगस्त 1945 को फारमोसा द्वीप के ताइहोकू स्थान पर उनकी मृत्यु हो गई। यह बात कांग्रेस कह रही है जबकी हकीकत कुछ आैर है।
आखिर  क्या वजह थी कि सुभाष चंद्र बोस को इतिहास से गायब कर दिया गया -
नेहरू-गांधी-ब्रिटिश की तिकड़ी ने देश को सही मायने में आजादी दिलाने वाले इस सच्‍चे देशभक्त को हमारी नजर से ओझल कर दिया। कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में जब सुभाष के खिलाफ गांधी ने पटटाभि सितारमैया को खड़ा किया, उसी वक्‍त स्पष्ट हो गया कि आजादी पाने का यह दो रास्ते है। सुभाष अध्यक्ष पद पर जीत कर यह स्थापित करने में कामयाब रहे कि उनका रास्ता ही सर्वमान्य रास्ता है, लेकिन अहिंसक गांधी के अहंकार को इस लोकतांत्रिक निर्णय से जबरदस्त धक्का लगा था। केवल गांधी के अहंकार को शांत करने के लिए सुभाष बाबू ने अध्यक्ष पद छोड़ा। सही मायने में सुभाष चंद्र बोस की अध्यक्ष पद पर जीत हो या फिर बाद में सरदार पटेल की जीत–  दोनों बार गांधी ने लोकतंत्र का गला दबाया–  पहली बार सुभाष को हराने के लिए सर्वसम्मति का रास्ता त्याग कर और दूसरी बार नेहरू को प्रधानमंत्री बनाने के लिए।
यह सुभाष बाबू का भय था जिसके कारण गांधी को 1942 में अंग्रेजों भारत छोडो का नारा देना पडा था और वह आंदोलन भी पूरी तरह से फलॉप हुआ था। सोच कर देखिए न कि यदि गांधी का वह आंदोलन सफल रहता तो अंग्रेजी उसी साल भारत से विदा हो जाते न कि पांच साल तक इंतजार करते रहते। 
द्वितीय विश्व युद्ध में भारत के अंदर सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश की दुर्गति कर दी थी। यदि कुछ समय ब्रिटिश और रुक जाते तो भारतीय सैनिकों के हाथों अंग्रेजों का पराजित होना निश्चित था और इसी पराजय को डालने के लिए गांधी-नेहरू का उपयोग सुभाष चंद्र बोस के खिलाफ किया गया।

गांधी को  राष्ट्रपिता किसने आैर किस आधार पर  बनाया ?
गांधी को राष्ट्रपिता कहना देश राष्ट्र का अपमान नहीं तो और क्या है।
मेरा विनम्र  निवेदन है कि इस विषय में सोचे ............
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